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Saturday, March 3, 2012

भगवान् गणेश एवम भगवान् कार्तिकेय

भगवान् गणेश एवम भगवान् कार्तिकेय दोनों भगवन शिव एवं माता पार्वती के पुत्र थे,
 किन्तु भगवान गणेश माता पार्वती के अधिक निकट थे
 एवं भगवन कार्तिकेय भगवान् शिव के अधिक निकट थे
इसका कारण यह था कि
भगवान् कार्तिकेय शिवजी के तेज से  उतपन्न हुए थे
और उत्पन्न होने के पश्चात शिवजी का तेज माँ गंगा में प्रवाहित हुआ था
 जिनका पालन पोषण ऋषि पुत्रियों द्वारा  किया गया था
 जबकि भगवान् गणेश माता पार्वती कि शिव जी के प्रति उत्पन्न प्रीती
जो उनके स्नान के दौरान मैल के स्वरुप मैं भौतिक रूप मैं प्रकट हुई थी
इसका तात्पर्य यह है कि गणेश जी शिवजी के प्रति माता पार्वती के मन मैं बसी प्रीत के द्योतक थे
तथा भगवान् कार्तिकेय शिवजी के तप से एवं तेज से उत्पन्न सदविचारों एवं शुभसंकल्पों कि परिणिति थे
, भगवन गणेशजी सदा शिवजी एवं पार्वतीजी के निकट रहे
जबकि भगवान् कार्तिकेय शिव पूजा के प्रचार एवं प्रसार हेतु निरंतर उनके माता पिता
अर्थात शिवजी एवं पार्वतीजी से  दूर रहकर गतिशील रहे
भगवान् श्री गणेश मूषक वाहन पर सवार रहते थे
भगवान्  कार्तिकेय मयूर वाहन पर सवार रहते थे,
 उल्लेखनीय हैं कि  मूषक अर्थात चूहा मयूर अर्थात मोर कि अपेक्षा अत्यंत धीमी गति से चलायमान रहता है,
 मयूर  तेज गति से चलने वाला पक्षी तो होता ही है साथ ही वह तेज गति से उड़ता भी है
इसका अर्थ यह है कि गणेश देव  रूपी प्रीती को सदा गृहस्थ व्यक्ति को  अपने घर में रखना चाहिए
इसलिए गणेश देव कि विवाह के प्रसंग में पूजा कि जाती है,
 कार्तिकेय जी रूपी तेज ओज  जो शिवजी के सदविचारों एवं शुभसंकल्पों के प्रतीक हैं
को सदा तीव्र गति से गतिशील रहना चाहिए
क्योंकि उनके गतिशील रहने से समाज में शिव का भाव अर्थात कल्याण कि भावना बनी रहती है