किनारा पास है
सांस हार मत पथिक
उजाला पास है
तू हार मत पथिक
तेरा विश्वास में
युगों का बल है बाकी
तू मत निराश हो
भले कठिनाई हो अधिक
सफ़र की है थकन तो क्या
तू आशा का मोती है
तू पथ पर कदम रख दे
बुलाती नवीन ज्योति है
चमक तारो सी है झील मिल
न जाने कब कैसे खोती है
सफलता क्यों नहीं मिलती
फिसलती जाती रेती है
तू नयनो में न भर आंसू
ह्रदय में पीड़ा रहती है
कभी कभी जीवन मे ऐसा समय आता है जब निराशा के काले बादल उजियाले आकाश को घेर लेते है और लगता हे मानो किसी भी पल वो बादल फट पडेगा और सब कुछ तसस नहस हो जाएगा
वक्त जब आखोँ के सामने गुजरता हे तो एक एक पल सर्पदंश सा चुभता हे ।
समय हाथो से रेत की भाँति फिसल जाता हे और खाली हाथ रह जाते हे जो उस बाढ मे बहने से बचने के लिए हारी हुई लडाई लड रहे है जो उस बादल के फटने से आई थी ।
पर अभी आखिरी जंग बाकी हे विजय की सम्भावना यद्दिपी ना के बराबर सी हे पर हे तो सही क्योकि ऐसे वक्त मे जीवन के पथ पर किये गए संर्घष और प्रेरणात्मक अनुभव जो इस जीवन में पुन: ऊर्जा का संचार करते है
जो लडाई को जारी रखने की प्रेरणा देते है आगे जो होगा देखा जाएगा।
बहुत वक्त बीत गया जिन्दगी जद्दोजहत मे तेरी अब तू ही बता मेरा कसूर क्या था,
हर पल तेरा था फिर भी हिसाब माँगा तूने लगता हे तुझे विशवास न मेरा था खैर तेरा भी कसूर नही हे वक्त ही कुछ ऐसा था जब साया ही अपना ना हुआ तो तुझसे भी क्यो गिला करु?