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Saturday, June 15, 2013

अस्मिता और आत्मसम्मान

व्यक्ति महिला हो या पुरुष हो 
अकारण आक्षेप  लगने  अपमानित हो जाता है 
व्यक्ति के आत्मसम्मान का मुल्य 
उसकी सम्पन्नता से नहीं आंका जा सकता 
बहुत से ऐसे व्यक्ति समाज में विद्यमान है 
जो अत्यधिक समृध्द होने के बावजूद 
स्वाभिमान शून्य और आत्मसम्मान की 
भावना से विहीन है इसके विपरीत 
बहुत से दरिद्रता पूर्ण परिस्थितियों में जीवन यापन 
करने वाले व्यक्ति आत्मसम्मान के लिए 
जीवन तक न्यौछावर कर देते है 
आत्मसम्मान को आघात पहुचने पर 
या तो वे किसी भी सीमा तक पहुचने से नहीं चुकते 
इतिहास में अनेक ऐसी महिलाए हुई है 
जिन्होंने आत्मसम्मान के लिए जौहर किया 
चित्तोड गढ  में  विजय स्तम्भ के समीप 
स्थल इस तथ्य का साक्षी है 
जहाँ  रानी पद्मिनी ने सैकड़ो अन्य  महिलाओं  के साथ 
अपनी अस्मिता को बचाने के लिए 
अग्नि शिखा  में कूदकर जौहर किया था
 त्रेतायुग में देवी अहिल्या जो गौतम ऋषि की भार्या थी 
इंद्र  के द्वारा  छल से शील भंग किये जाने से
 शापित हुई कहा जाता है की वह 
पाषाण का रूप धारण कर चुकी थी 
जिनका उध्दार मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् श्रीराम ने किया था 
यहाँ पाषाण वत होने का आशय समझना होगा
 क्या वास्तव में अहिल्या पत्थर बन चुकी थी 
पत्थर तो प्रतीक है 
जिस व्यक्ति में संवेदना का भाव समाप्त होता है 
भाव विहीन हो जाता है 
उसे पत्थर दिल ही कहा जाता 
अहिल्या जो आत्मसमान से युक्त महिला थी
 छल से अपनी अस्मिता खो देने के बाद 
पति गौतम ऋषि द्वारा परित्यक्त की जा चुकी थी 
अकारण उपेक्षा और अपमान के कारण 
अपनी सुध-बुध खो चुकी थी 
संवेदनाये खो कर भाव विहीन अर्थात 
पाषाण वत हो चुकी थी
 भगवान् राम जो युग पुरुष थे के द्वारा ऐसी महिला के प्रति 
सहानुभूति प्रकट किये जाने पर 
और सम्मान प्रकट किये जाने पर 
आत्मविश्वास पाकर मानवीय संवेदना से परिपूर्ण चुकी थी
 इसलिए कहते है देवी अहिल्या का श्रीराम द्वारा उध्दार किया गया था 
वर्तमान में अकारण अपनी अस्मिता खो देने वाली 
अह्ल्याये जो पाषाण  वत  हो चुकी है 
के उध्दार हेतु  मर्यादा पुरुषोत्तम की भूमिका  कोई 
निभाने वाला है या नहीं यह ज्वलंत प्रश्न हमारे सामने उपस्थित है 
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