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Monday, September 10, 2012

तीर्थो के आयाम


तीर्थ क्या है
तीर्थ के क्या प्रयोजन है
इसे समझे बिना तीर्थ करना निरर्थक है
तीर्थ करने से हमारी मुक्ति नही होती
अपितु तीर्थ हमे मुक्ति का मार्ग बताते
तीर्थो को ही ईश्वर मान लेना त्रुटि होगी
ईश्वर तो हमारे चित्त मे चिन्तन मे
आत्मा  रुपी दर्पन मे होता है
तीर्थो मे जब हम पहुंचाते है पुण्य हेतु नदियो मे स्नान करते है
तो हमे जन समूह की विशालता के एवम ईश्वरीय प्रतीको के समक्ष
अपनी लघुता की अनुभूति होती है
जिससे अहं भावना का नाश होता है
तीर्थो मे कई प्रकार होते है
प्रथम चार धाम यात्रा अर्थात देश की चारो और सीमावर्ती स्थानों की यात्रा
दूसरा द्वादश ज्योर्तिलिंग और बावन शक्तिपीठ
अर्थात देश में बिखरे प्राचीन साधना केंद्र शक्ति सम्पन्न क्षेत्रों की यात्रा
इस उपरोक्त सभी प्रकार के तीर्थ स्थलों की यात्रा करने से न केवल मात्र
अध्यात्मिक अनुभूतियाँ होती है हमें अपने देश की भौगोलिक स्थितियों का भी ज्ञान होता है
सांस्कृतिक विविधता से भी परिचित होते है
आधुनिक काल में पर्यटन रोजगार का प्रमुख क्षेत्र है
प्राचीन काल जब हमारे देश मे आवागमन  के साधन विद्यमान  नही थे
तब देश की विशाल जन संख्या निरंतर तीर्थ यात्राओं के कारण भ्रमणरत रहती थी
इसका तात्पर्य यह है की हमारे पूर्वज ,ऋषि ,महर्षि ,अध्यात्मिक गुरुओ का सोच
समय से बहुत आगे था
हमारे पूर्वजो ने हमारे देश की चारो दिशाओं के निवासीयो एक सूत्र मे पिरोने
हेतु देश के चारो दिशाओं मे चार-धाम स्थापित किये थे
द्वादश ज्योर्तिलिंग ,बावन शक्तिपीठ की संरचना भी इसी उद्देश्य को ध्यान मे रख कर की गई थी
यदि हम गंभीरता से सोचे तो हमें यह ज्ञात होगा की  सभी प्रकार की तीर्थ यात्राओं को करने के बाद
शायद ही देश ऐसा कोई कोना शेष रहेगा जिससे हम परिचित न हो सके
क्या हम जानते है की महान व्यक्ति से हम किसी प्रकार से मिल सके उनका सानिध्य
पा सके तो वह भी तीर्थ के सामान ही होता है
ऐसे महान संतो को जैन धर्म में तीर्थंकर के रूप में संबोधित किया जाता है