कर्मशील लोग कर्म को पूजा मानते है
परन्तु अकर्मण्य और निकम्मे लोग
कर्म को शर्म का विषय मानते है
कोई सा भी काम उनको दे दो
कोई सा भी काम उनको दे दो
उन्हें लगता है
वे जिस काम के लिए बने
वो यह काम नहीं है जो उन्हें दिया गया है
जिस काम को करने के लिए
उनका इस जगत में आविर्भाव प्रादुर्भाव हुआ है
वह एक विशेष और अद्भुत कार्य है
जिसके लिए ईश्वर ने उनका चयन किया है
इसलिए वे दूसरा काम क्यों करे?
छोटे मोठे काम करने में उन्हें संकोच होता है
छोटेपन का अहसास होता है
उनका संकल्प है कि
वे जब भी कोई काम करेंगे, बड़ा काम करेंगे
उनके काम से उन्हें पहचाना जाएगा
तब लोगो को पता चलेगा कि
यह बड़े काम का आदमी है
ऐसी सोच के बल पर वे कितने ही
छोटे छोटे कामो को करने से बच जाते है
और अपने इस आदर्श वाक्य का
कि " अकर्मण्ये साधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन "
को चरितार्थ कर
स्वयं को कृतार्थ समझते है
इसी विचार धारा से प्रेरित हो
इसी विचार धारा से प्रेरित हो
उन्होंने कितनी हाथ में आई
छोटी छोटी नोकरिया छोड़ दी उन्होंने
यह अतिशयोक्ति नहीं होगी लात मार दी
उन्होंने ऐसी नोकरिया जो
उन्हें छोटेपन का अहसास दिलाती थी
बड़े बड़े विषयो पर लंबे लंबे व्याख्यान
बड़े बड़े विषयो पर लंबे लंबे व्याख्यान
चर्चाये परिचर्चाएं में जो उन्हें सुख मिलता है
वे बड़प्पन के अहसास से भरपूर है
बहुत अच्छा लगता है
उन्हें यह सुनकर कि
अपने देश इस प्रतिभा का कोई पारखी नहीं
इसलिए प्रतिभाये विदेश पलायन कर रही है