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Saturday, March 5, 2016

अकर्मण्ये साधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन

कर्मशील लोग कर्म को पूजा मानते है 
परन्तु अकर्मण्य और निकम्मे लोग 
कर्म को शर्म का विषय मानते है
कोई सा भी काम उनको दे दो 
उन्हें लगता है 
वे जिस काम के लिए बने 
वो यह काम नहीं है जो उन्हें दिया गया है
 जिस काम को करने के लिए 
उनका इस जगत में आविर्भाव प्रादुर्भाव हुआ है 
वह एक विशेष और अद्भुत कार्य है
 जिसके लिए ईश्वर ने उनका चयन किया है 
इसलिए वे दूसरा काम क्यों करे? 
छोटे मोठे काम करने में उन्हें संकोच होता है 
छोटेपन का अहसास होता है 
उनका संकल्प है कि
 वे जब भी कोई काम करेंगे, बड़ा काम करेंगे
 उनके काम से उन्हें पहचाना जाएगा 
तब लोगो को पता चलेगा कि 
यह बड़े काम का आदमी है 
ऐसी सोच के बल पर वे कितने ही 
छोटे छोटे कामो को करने से बच जाते है 
और अपने इस आदर्श वाक्य का 
कि " अकर्मण्ये साधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन "
को चरितार्थ कर 
स्वयं को कृतार्थ समझते है
इसी विचार धारा से प्रेरित हो 
उन्होंने कितनी हाथ में आई
 छोटी छोटी नोकरिया छोड़ दी उन्होंने 
यह अतिशयोक्ति नहीं होगी लात मार दी 
उन्होंने ऐसी नोकरिया जो 
उन्हें छोटेपन का अहसास दिलाती थी
बड़े बड़े विषयो पर लंबे लंबे व्याख्यान 
चर्चाये परिचर्चाएं में जो उन्हें सुख मिलता है 
वे बड़प्पन के अहसास से भरपूर है 
बहुत अच्छा लगता है
 उन्हें यह सुनकर कि 
अपने देश इस प्रतिभा का कोई पारखी नहीं
 इसलिए प्रतिभाये विदेश पलायन कर रही है