महंगाई
के इस दौर में बाजार में जाकर
खरीददारी करना
बहुत
चुनौती पूर्ण है
विशेष
कर उन व्यक्तियों के लिए और
भी अधिक तकलीफ देह है
जिनके
लिए खरीददारी करना
आवश्यकता
ही नहीं अपितु शौक और जूनून
है
हमारे
समाज और परिवार में परिवेश
ऐसे लोगो की कमी नहीं है
जो
खरीददारी को एक कला का दर्जा
दे चुके है
वे
खरीद दारी को पूजा के सामान
पवित्र कर्म मानते है
भले
ही उनकी क्रय शक्ति कितनी भी
कम हो जाए
पर
वे यह पुनीत कर्म करने से नहीं
चुकते
अल्प
क्रय शक्ति वाले व्यक्तियों
के लिए सब्जी मंडियों से लगा
कर
हाट
बाजार प्राण वायु का कार्य
करते है
छोटी
-छोटी
आवश्यकताओं की वस्तुए
उन्हें
उनकी प्रतिभा परिष्कृत किये
जाने में सहायक होती है
खरीद
दारी किये जानेके उपरान्त
किस व्यक्ति को कितनी मात्र
में
संतुष्टि
हुई यह उनके चहरे पर पढ़ी जा
सकती है
सब्जियों
की खरीद दारी के आनंद तो उन्हें
ऐसे आता है
जैसे
उन्हें कोई गढ़ा हुआ खजाना मिल
गया हो
जब
कभी किसी सब्जी क्रेता से वे
किसी
सब्जी का भाव -ताव
करते है
तो
मानो ऐसा लगता है वे सामने
वाले पर
मनोवैज्ञानिक
विजय प्राप्त करने को उतावले
हो रहे हो
भाव
कितने भी कम हो या ज्यादा हो
वे
अंशत अपनी आशा के अनुरूप कीमत
में
कटौती
करवा पाने में विजय समझते है
इसलिए
ऐसे व्यक्तियों को दूर से आता
देख कर
क्रेता
गण वस्तुओ के मुल्य कृत्रिम
तौर पर बढ़ा लेते है
तथापि
ऐसे व्यक्ति अपनी खरीददारी
को सम्पूर्णता प्रदान करने
का
कोई
अवसर हाथ से जाने नहीं देते
और
क्रेता से भाव ताव करने के
दौरान मुफ्त का
मनोरंजन
प्राप्त कर ही लेते है
ऐसे
व्यक्तियो के जज्बे से महंगाई
भी मारे -मारे
फिरती है