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गणेशोत्सव के अवसर पर गली मोहल्लो मे
उनकी प्रतिमा स्थापित की जाती है
सांस्क्रतिक कार्यक्रम आयोजित किये जाते है
तो समस्त वातावरण मे उल्लास छा जाता है
प्रतिमा को जब विसर्जीत किया जाता है
तो ऐसा प्रतीत होता है मानो जन समूह वृहद् परिवार के लाडले सदस्य को विदा करने
सरोवर के नीर ,नदिया के तीर ,
और सागर अधीर के निकट आ पहुचा
विसर्जन के पश्चात वेदना एवम विरह के स्थान पर
नवीन सर्जना का भाव जन मे समा जाता है
नवीन सर्जना का भाव जन मे समा जाता है
गणेश जी देवता न होकर जनोत्सव के प्रतीक बन चुके है
व्यवसायिक भाग-दौड भरी व्यस्तता मे
सुख चैन का आश्रय गणेश जी के प्रतिमा का
सामीप्य पाकर मिलता है
सामीप्य पाकर मिलता है
गणेश जी के दर्शन पाकर मन की दीनता हीनता
समाप्त हो जाती है
तन मन को परम सन्तुष्टि मिलती है
जीवन मे सुरक्षा एवम आश्वस्ति की भावना लौट आती है
गणेश जी का रुप ही ऐसा है
जिसे देख कर सहज ही
मन मे प्रेम,ममत्व ,करूणा,की भावनाये
प्रस्फुटित हो जाती है
समस्त तनाव दूर हो जाते है
आशाये नव पखेरू लेकर उड़ान भरने लगती है
ऐसा लगता है गणेश जी किसी धर्म के देव न होकर
जीवन के प्रति आस्था के अंकुर है
आस्था के अंकुर भी ऐसे है
जिनमे सर्जनात्मकता भरपूर है
यदि हम गणेश उत्सव पर तन -मन जीवन से
नकारात्मक प्रव्रत्तियो का विसर्जन कर पाये
जीवन मे उल्लास और आनंद भर पाये
सर्जनात्मकता जाग्रत कर पाये
तो गणेश उत्सव सार्थक है