व्यक्ति कितना ही ईमानदार हो कितना ही विरक्त हो
वह सभी प्रकार के मोह त्याग सकता है
पद और यश के मोह से मुक्त नहीं हो सकता
सन्यासी हो चाहे सामान्य व्यक्ति
कौन व्यक्ति पद कि आकांक्षा नहीं रखता
कौन व्यक्ति नहीं चाहता कि
निरन्तर उसका यश प्रकाशित होता रहे
इतिहास के पृष्ठों पर उसका नाम सुशोभित हो
संन्यास धारण करने पर भी व्यक्ति
संत महंत मंडलेश्वर महामंडलेश्वर शंकराचार्य
संत महंत मंडलेश्वर महामंडलेश्वर शंकराचार्य
गिरी पुरी कि और अग्र सर होने कि कर्मरत रहता है
सामान्य व्यक्ति भी एक ही दशा में न रहते हुए
वर्त्तमान स्थिति से उत्तम स्थिति कि प्राप्त करना चाहता है
सामाजिक क्षैत्र में कार्य करने वाले समाज सेवी भी
लोकेषणा कि भावना तो रखते ही है
लोकेषणा की भावना से मुक्त होना
हर किसी के लिए सम्भव नहीं है
उपरोक्त परिस्थितियो में भी वर्त्तमान में ऐसे व्यक्ति
जो किसी पद या किसी यश कि अपेक्षा किये बिना
समाज के विभिन्न क्षैत्रो में कर्म रत है
ऐसे व्यक्ति भी विदयमान है
बस उन्हें देखने परखने कि दृष्टि हमारी होनी चाहिए
वास्तव में कर्मयोगी है सच्चे सन्यासी है
पूरी निष्ठा से कर्म करने के बावजूद
वे कोई भी श्रेय व् पद लेने कि इच्छा नहीं रखते है
ऐसे मौन साधको मौन तपस्वियों सच्चे कर्मयोगियों
के कारण ही हमारा समाज और देश उपकृत हो सकता है