Total Pageviews

Saturday, October 31, 2015

भारत - ऋषि निर्मित राष्ट्र

इस देश में रहने वाले लोगों की एक संस्कृति है। इस संस्कृति के ही कारण यह एक राष्ट्र है। इस राष्ट्र- इस संस्कृति का निर्माण किसने किया ? अन्य देशों मे वहाँ के राजा या सैनिकों के द्वारा राष्ट्रों का निर्माण हुआ है।
परंतु इस राष्ट्र का निर्माण ऋषियों ने किया है। वेद के एक मंत्र से यह स्पष्ट होता है।

भद्रमिच्छन्त : ऋषय: स्वविर्द : तपोदीक्षामुपसेदुरग्रे।
ततो राष्ट्रं बलमोजस्वजातं तस्मैं देवा: उपसन्नु मन्तु।

ऋषि अर्थात जिन्होंने सत्य का साक्षात्कार किया है। ऋषि अर्थात अपने स्वार्थ का चिन्तन ना करते हुए संसार के हित में सोचने वाले। उपरोक्त श्लोक में भी यही बात आयी है। "भद्रमिच्छन्त : ऋषय" विश्व के कल्याण की कामना रखने वाले ऋषियों ने तप किया।
उनके तप से इस राष्ट्र को बल मिला, तेज मिला। इसी कारण देवता भी आकर इस राष्ट्र को नमस्कार करते हैं।

इस देवनिर्मित देश में, ऋषि निर्मित राष्ट्र में, हमारा जीवन गतिमान है। प्रायः लोग 'ऋषि का अर्थ संन्यासी समझते हैं। परंतु ऋषि का अर्थ संन्यासी नहीं है। सभी ऋषि गृहस्थ थे। एक ही ऋषि संन्यासी थे- 'शुक्र' महर्षि। शुक्र महर्षि के अतिरिक्त  प्रायः सभी ऋषि गृहस्थ थे।
हम इन्हीं ऋषियों की सन्तान है। इस कारण अपने देश मे गौत्र का प्रचलन हैं। हमारे गौत्र ऋषियों के नाम पर है। हम सभी के गौत्र ऋषियों के नाम पर होने का अर्थ यही है कि हम उन ऋषियों की संताने हैं। ऋषियों का चिंतन लोक हित के लिए होता है। सामान्य व्यक्ति सिर्फ स्वयं के बारे में सोचता है। लोक हित में ही प्रत्येक व्यक्ति का हित है एेसा ऋषियों का दर्शन है।