व्यक्ति हो वस्तु हो या हो कोई प्राणी
उसका महत्त्व उसकी उपयोगिता से होता है
उपयोगिता एक बार किसी व्यक्ति द्वारा प्रमाणित कर दी जाए
उपयोगिता एक बार किसी व्यक्ति द्वारा प्रमाणित कर दी जाए
तब उसकी अनुपस्थिति एक प्रकार की रिक्तता
और अभाव की अनुभूति देती है
जो व्यक्ति परिवार समाज परिवेश में
अपनी उपयोगिता प्रमाणित नहीं कर पाया हो
वह महत्वहीन हो जाता उसके रहने या रहने से
किसी को कोई अंतर नहीं पड़ता
व्यक्ति की उपयोगिता ही उसका मुल्य निर्धारित करती है
व्यक्ति की उपयोगिता ही उसका मुल्य निर्धारित करती है
इसलिए हमें अपना सही मूल्यांकन करना हो तो
यह विश्लेषण करना होगा की हमारी उपयोगिता क्या है
जिस व्यक्ति ने स्वयम का मूल्यांकन और विश्लेषण नहीं किया
उस व्यक्ति में सुधरने की कोई संभावना नहीं होती
ऐसा व्यक्ति न तो किसी के काम आ पाता है
और नहीं स्वयं के काम का रह पाता है
इसलिए जीवन व्यक्ति के उत्थान का सबसे सरलतम मार्ग यह है
हम परिवार समाज और परिवेश के लिए उपयोगी बने
हम परिवार समाज और परिवेश के लिए उपयोगी बने
एक बार हमारी उपयोगिता प्रमाणित हो जावेगी
तब लोगो को हमारी उपस्थिति अनुपस्थिति का अहसास होगा
तब हमारा व्यक्तित्व अमुल्य हो जावेगा