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Tuesday, October 2, 2012

प्रकृति पूजा एवम प्रतिमा विसर्जन

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भारतीय संस्कृति   एवम धर्म मे प्रकृतिपूजा का अत्यधिक महत्व है
सारे व्रत उपवास उत्सव त्यौहार आयोजनों  मे प्रकृति  के
भिन्न -भिन्न रुपो की पुजा की जाती है
किसी उत्सव विशेष पर विशिष्ट वृक्ष की तो किसी त्यौहार पर सूर्य पूजा ,जल पूजा ,नदी पुजा, पर्वत पूजा ,(यथा गोवर्धन पूजा )की जाती है
जीव-जन्तुओ  की भी पुजा के विधान है
जैसे गौ -पुजा ,नाग -पूजा, नरसिंह पूजा ,वराह पूजा इत्यादी
तात्पर्य यह है कि हमारे देश मे प्रक्रति को पूज्य माना गया है
नवरात्री उत्सव एवम गणेश उत्सव ऐसे  आयोजन  है
जिसमे प्रकृति के प्रथ्वी तत्व की प्राण-प्रतिष्ठा,पूजा एवम आराधना  की जाती है
इसीलिये प्राचीन काल मे नव दुर्गा व गणेश देव की प्रतिमाये मिट्टी से शिल्पकार बनाते है
जिन पर प्राक्रतिक रंगो से साज -सज्जा की जाती थी
मिट्टी से तैयार की गई प्रतिमाओं  के समक्ष एक निश्चित समय तक
निश्चित तु मे सामूहिक रुप से की गई साधना से
सम्पूर्ण समाज को देवीय आशीर्वाद प्राप्त होता था
तदउपरान्त प्रतिमा के समारोह पूर्वक जल मे विसर्जन से
नदी,सिंधु ,सरोवर मे प्रदूषण होने के स्थान पर प्रकृति का भी आशीर्वाद प्राप्त होता था
परन्तु वर्तमान मे उत्सव के अर्थ बदल चुके है
उत्सव मे व्यवसायिकता ने क्रत्रिमता ,भौतिकता की चकाचौध ने प्रवेश कर लिया है
उत्सवो से प्रक्रति की पुजा का लोप हो चुका है
मिट्टी की प्रतिमाओं के स्थान प्लास्टर आफ पेरिस की प्रतिमाओं ने ले लिया है
प्राकृतिक रंगो के स्थान पर रसायनिक रंगो का उपयोग प्रतिमाओं की साज -सज्जा हेतु होने लगा है
परिणाम स्वरूप ऐसी प्रतिमाओं के जल मे विसर्जन किये जाने से
समस्त जल के स्त्रोत प्रदूषित होते जा रहे है
दैवीय एवम प्राकृतिक आशीर्वाद  के स्थान पर हमे अभिशप्त होते जा रहे है
उत्सवो से इस विकृति  को यदि शीघ्र ही हमने नही हटाया तो
हमारे समाज और  देश को भारी कीमत चुकानी पडेगी