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Monday, November 25, 2013

व्यवसाय कल्पना आशियाना

व्यक्ति कि कल्पना उसके द्वारा किये गए व्यवसाय और
 कार्य पर निर्भर करती  है यह अनुभव भवन निर्माण में आता है  
व्यक्ति जीवन भर  कि कमाई का उपयोग एक आशियाना 
बनाने में खर्च कर देता है एक बार एक रिटायर्ड स्टेशन मास्टर के 
निवास स्थान पर जाने का प्रसंग आया अवसर था गृह -प्रवेश  का मकान के प्रत्येक कौने से  उन्होंने आगंतुकों को अवगत कराया 
लगता था उन्होंने रेलवे का प्लेटफार्म बना दिया है सीढ़िया ऐसी लग रही थी जैसे  ओवर ब्रिज से एक प्लेटफार्म से दूसरे प्लेटफार्म 
पर जा रहो हो कमरे ऐसे लग रहे थे जैसे रेल के डिब्बे ,मकान का का अग्र  मानो किसी ट्रैन कि प्रतीक्षा कर रहा हो इसी प्रकार एक शिक्षक के मकान कि आकृति विद्यालय या पाठ शाला जैसी प्रतीत हो रही थी सेवानिवृत्ति के पश्चात बोध हो रहा था कि मानो उन्होंने निजी विद्यालय खोल दिया है कमरो का परिचय ऐसे करा रहे थे जैसे कोई कमरा प्रधाना ध्यापक को हो तो कोई कमरा प्रयोगशाला या कोई कक्ष पुस्तकालय  एक बार एक सेवानिवृत्त सैनिक ने उनके भवन के गृह प्रवेश के अवसर पर आमंत्रित किया भोजन के पश्चात मकान कि भौगोलिक स्थिति से परिचित कराया दूसरी मंजिल पर ऊँची ऊँची दिवाले जिन पर कोई छत नहीं थी देखकर लगा कि दुश्मन 
देश कि सेना से प्रतिरक्षा  के लिए बंकर र बना रखा हो कमरो कि आकृति बैरक नुमा लग रही थी 

भ्रम निवारण का उपाय

भ्रम कई प्रकार के होते है
 व्यक्ति का स्वयम कि क्षमता के बारे में भ्रम होना 
स्वयम को अति क्षमतावान और बुध्दिमान मान लेने का भ्रम 
दूसरे व्यक्तियो कि क्षमताओ को अधिक या अल्प 
मान लेने का भ्रम 
दोनों प्रकार के भ्रम का निवारण होना आवश्यक है 
रामायण में जब सीता  जी कि खोज हेतु 
वानर सेना सहित श्रीराम हनुमान लक्ष्मण 
सुग्रीव अंगद सिंधु के किनारे किंकर्त्तव्य  विमूढ़  अवस्था में बैठे थे 
तब यह ज्ञात होने पर कि लंका जो उस पार है
 रावण ने सीता जी  को वहा 
अशोक वाटिका में बंधक बना रखा है 
समुद्र कि चौड़ाई ज्ञात होने पर कि
 समुद्र शत योजन अर्थात चार सौ कोस है 
जांबवान को अपनी वृद्धावस्था को देखते हुए
 समुद्र लांघ जाने में विफल होने का भ्रम था 
अंगद को मात्र अपनी क्षमता को अल्पता  का भ्रम था 
परन्तु हनुमान जी जो न तो अधिक उतावले थे 
और न ही किंकर्त्तव्य विमूढ़ को किसी 
प्रकार का भ्रम नहीं था 
परन्तु हनुमान जी कि क्षमता पर सभी लोगो को विश्वास था 
ऐसे क्षमतावान पराक्रमी पर
  विश्वास  व्यक्त करने का ही परिणाम ही था
 कि सीता रूपी लक्ष्य कि प्राप्त कर सके
आशय यह है जहा भ्रम  रहता है वहा सफलता प्राप्त नहीं होती 
सीता रूपी लक्ष्य तभी प्राप्त होता है 
जहा भ्रम  विहीन विश्वास  से युक्त ऐसी क्षमता विदयमान हो  
जिसे प्रभु राम जैसे ईश का आशीष प्राप्त हो  
इसलिए हनुमान जी के  स्मण  मात्र से सारे भ्रम दूर हो जाते है