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Wednesday, August 8, 2012

मोह, मोहन एवं सम्मोहन


मोह शब्द  से मोहन बना है
 मोहन से सम्मोहन मोह माया के बन्धनों से मुक्त होना चाहिए 
यह बार बार उपदेशको द्वारा कहा जाता है
 किन्तु मोह वह मानवीय भावना है 
जो मानव मन में सहज रूप से उत्पन्न हो जाती है मोह से मुक्त होना इतना सरल नहीं है 
मोह के कई रूप होते है 
माता पिता का पुत्र से मोह जीव का निर्जीव वस्तुओ से मोह 
व्यक्ति का पद या सम्पत्ति ,स्थान विशेष से मोह
व्यक्ति जब स्वयं को सभी प्रकार के मोह से मुक्त कर लेता है 
तो वह मुक्ति के मार्ग की और अग्रसर होने लग जाता है
 किन्तु जो व्यक्ति लोगो में अपने प्रति मोह जाग्रत न कर पाए 
वह जीवन में असफल होता है 
भगवान् कृष्ण ,भगवान राम ने 
स्वयं को सभी प्रकार के मोह से परे रखा 
परन्तु वे जहा गये आस -पास के सम्पूर्ण परिवेश को 
उन्होंने उनके व्यक्तित्व से मोहित कर लिया 
यहाँ तक की जीव जंतु वृक्ष ,नदी पशु पक्षी इत्यादि 
भगवान् विष्णु के दोनों अवतारों के प्रति 
इस कदर मोहित हो चुके थे की 
उनके बिछुड़ जाने पर व्याकुलता को छुपा न सके 
गोपियों की विरह वेदना ,जटायु का प्राण त्याग देना ,
अयोध्या के वासियों द्वारा श्रीराम के वन गमन पर 
वन की और प्रस्थान करना इसके उदाहरण है 
यही तो भगवान् राम एवं कृष्ण को ईश्वरीय तत्व के रूप में 
स्थापित कर पाए
इसलिए सद गुणी एवं सफल व्यक्ति वह है 
स्वयं की क्षमता से सम्पूर्ण परिवेश को सम्मोहित कर ले 
अपरिचित लोगो में अपने कार्य व्यवहार से अपने प्रति मोह भाव जाग्रत कर सके
ऐसे व्यक्ति को ही मोहन कहा जाता है ऐसा व्यक्ति ही भगवान् कृष्ण सच्चा अनुयायी होता है

ऐसे व्यक्ति पर ईश्वरीय कृपा रूपी अमृत बरसने लगता है