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Tuesday, March 20, 2012

PARSURAM BHAG - 4










परशुराम भाग - 4 


अपनी पुत्री के विवाह के कुछ समय पश्चात राजा गधिक सपत्निक अपनी पुत्री राजकुमारी से मिलने उसकी कुशल शेम लेने रिचिक ऋषि के आश्रम पहुचे.

अपने परिजनों के आगमन की सुचना पाकर राजकुमारी को अत्यंत प्रसन्नता हुई गधिक ने जेसे ही रिचिक के आश्रम की सीमा  मैं प्रवेश किया तो वे चकित रह गये आश्रम के चारो और एक दिव्या आभा चमक रही थी चारो और शुद्ध वातावरण था, वातावरण मैं अध्यात्मिकता और सकारात्मक उर्जा का वास था.
राजा गधिक और उनकी पत्नी की  समस्त चिंताए समाप्त हो गई .
रिचिक ने अपने स्वसुर और स्वास को अभिनन्दन किया,  पुत्री का अपने परिजनों से मिलन हुआ सभी प्रसन्न थे चलो पुत्री एकांत मैं चल कर बाते करते हैं (माता ने कहा)
गधिक ने रिचिक से कहा चलिए हम भी एकांत मैं चल कर कुछ वार्तालाप करते हैं आप मुझे कुछ ज्ञान उपदेश दीजिये
(ज्ञान आयु के बंधन से मुक्त होता हैं वो आयु की सीमओं से परे होता हैं इस लिए आज राजा गधिक अपने  से कम आयु और रिश्ते मैं अपने जमाई से ज्ञान उपदेश की मांग कर रहें हैं)

माँ ने पुत्री से कहा बेटी  तू प्रसन्न तो हैं ना ? 
माँ मैं सकुशल हूँ अतिप्रसन्न हूँ. 
तेरी ग्रहस्ती केसी चल रही हैं ? हमे नाना नानी बनने का सुख कब मिलेगा?
माँ सब कुछ ठीक हैं परन्तु.
परन्तु! क्या हुआ पुत्री निसंकोच बोलो . माँ ये आज भी सन्यासी की भाति ही व्यवहार करते हैं. इसलिए अभी मुझे पुत्र रत्न की कोई आसा दिखाई नहीं देती.
माता चिंतित हो गई ये तो बड़ा ही चिंता का विषय हैं. 
पुत्री  तू चिंता मत कर मेरी बात ध्यान से सुन तू अपने पति (रिचिक) की कठोर सेवा  कर  जब वो प्रसन्न हो कर तुहे कुछ देना चाहे तो वर मैं उनसे पुत्र मांग लेना और हाँ तेरे पिता के बाद राज्य सम्भालने वाला भी कोई नहीं हैं वर मैं अपने लिए एक भाई( गधिक के लिए पुत्र) भी मांग लेना ........................ '  
जब वो एक हजार दिव्या अस्व प्रकट कर सकते हैं तो वर मैं तुझे और मुझे एक पुत्र भी दे सकते हैं.

(संकट के समय मे जब कोई समस्या हो तो अपने बड़ो को अवश्य बता देना चाहिए वे वे सदा आपके हित की ही बात करेंगे)