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Wednesday, August 28, 2013

चक्रव्यूह

प्राचीन भारत में युद्ध के दौरान योध्दा 
किसी पराक्रमी वीर को परास्त तथा वध करने के लिए 
 चक्रव्यूह की  रचना करते थे 
यदि  शत्रु पक्ष का योध्दा चक्रव्यूह का भेदन नहीं कर पाता था 
तो युध्द  के पूर्ण होने के पूर्व ही युध्द का निर्णय हो जाता था 
और चक्रव्यूह की चुनौती देने वाला पक्ष विजय हो जाता  था 
चक्रव्यूह  को भेद कर योध्दा को भीतर प्रवेश ही नहीं करना होता था 
अपितु उससे बाहर भी निकलना होता था युध्द के दौरान 
तथा  चक्रव्यूह के भेदन हेतु युध्द नीति के कुछ नियम होते थे
 जिनका पालन प्रत्येक योध्द्दा के लिए अनिवार्य होते थे 
जैसे जब तक किसी योध्द्दा के पास अस्त्र या शस्त्र होते थे
 तब तक उस पर प्रहार किया जाता था निहत्थे योध्दा पर किसी प्रकार का प्रहार किया जाना निषिध्द था चक्रव्यूह को भेदने के लिए योध्दा के पास मात्र बल और सैनिको की संख्या की पर्याप्त नहीं होती थी 
बल्कि योध्दा का शस्त्र -अस्त्र कौशल्य और 
उसकी सूझ -बूझ की आवश्यकता होती थी 
इसलिए बहुत शक्तिशाली योध्दा भी चक्रव्यूह को भेदने में विफल रह जाते थे और सामान्य योध्दा जिसमे शस्त्र -अस्त्र कौशल्य और सूझ -बूझ होती थी
 वह चक्रव्यूह कुशलता पूर्वक भेदकर 
युध्द्द के निर्णय को अपने पक्ष में कर लेते थे
 कहने आशय यह है जीवन की कठिनाइयो 
और जटिल परिस्थतियो पर विजय प्राप्त करने के लिए 
मात्र किसी प्रकार का बल होना ही पर्याप्त नहीं होता 
परिस्थितियों के चक्रव्यूह को भेदने हेतु 
व्यक्ति में उसी प्रकार के गुण होने  चाहिए
 जिस प्रकार के गुण युध्द में रचे जाने वाले 
चक्रव्यूह को भेदने वाले योध्दा में पाए जाते है 

Saturday, August 17, 2013

राजा की भूल -लघु कथा

प्राचीनकाल में एक राजा ने निम्न वर्ण और कुल  की एक  कन्या के रूप से मोहित होकर उससे विवाह कर लिया
 तद पश्चात वह वह कन्या महारानी की तरह 
 राजसी भोग विलास कर महल में रहने लगी 
कालान्तर में कन्या को महल का राजसी वातावरण कचोटने लगा 
शनै शनै उसकी मित्रता महल की दासियों हो गयी
दासियों द्वारा किया जाने वाले महल के छोटे मोटे कार्य भी 
उसके द्वारा किये जाने लगे 
रानी के इस स्वभाव को देखकर दासियों में
 रानी के प्रति सम्मान में कमी आने लगी
 महल में दासियों द्वारा  रानी के आदेशो की 
जाने लगी  रानी अपने कुल के संस्कारों के अनुरूप
 पर पुरुषो के प्रति भी आसक्त होने लगी 
महल में राजा के विरुध्द के षड़यंत्र  रचे जाने लगे 
गुप्तचरों से राजा को  उसके विरुद्ध रचे जा रहे 
षड्यंत्रों तथा उसके कारणो  की जानकारी लगने
पर राजा को अपनी गलती समझ  में  आई 
की विवाह हेतु कन्या का रूप ही नहीं
 उसके गुण कर्म कुल संस्कार भी महत्वपूर्ण होते है

Friday, August 16, 2013

अनुकूलता और प्रतिकूलता

जो लोग निरंतर प्रतिकूलताओ का रोना रोते है
 स्वयं की  असफलताओ के लिए दूसरे व्यक्तियों को दोष देते है 
यह लोगो के लिए यह महत्वपूर्ण है की 
अनुकूलता प्रतिभा को आगे बढ़ने मात्र अवसर ही देती है
जबकि प्रतिकूलता व्यक्ति की प्रतिभा और व्यक्तित्व को परिष्कृत करती  है निखारती है
अनुकूलता और प्रतिकूलता दो प्रकार की परिस्थितियों में पले -बढे दो  प्रकार के व्यक्ति जब  
 एक जैसी उपलब्धि एक साथ हासिल करते है
 तो दोनों का मुल्य भिन्न-भिन्न होता है
कार्य करने की प्रणालियाँ अलग -अलग होती है
 अनुकूलता  में पाई गई उपलब्धी चिर स्थाई नहीं होती
ऐसी उपलब्धि धरातल  की वास्तविकता से परिचय के अभाव में व्यक्ति की अनुभव हीनता ही दर्शाती है
परिणाम स्वरूप कठिन परिस्थितियों में व्यक्ति कितने ऊँचे पद पर आसीन हो जाए
उसे पतन के मार्ग की और ले जाती है
प्रतिकूल परिस्थितियों का पथिक जब अपना लक्ष्य प्राप्त करता है
तो वह यथार्थ की परिस्थितियों से परिचित होने के कारण कठिन और विकट परिस्थितियों में विचलित नहीं होता उसका प्रत्येक निर्णय दूरदशिता पूर्ण होता
अन्तत ऐसा व्यक्ति अनंत उंचाईयों  को प्राप्त करता है
इसलिए व्यक्ति को प्रतिकूलताओ से भयभीत नहीं होना चाहिए

Tuesday, August 6, 2013

माँ दुर्गा में निहित जीवन के सूत्र


http://www.newsonair.nic.in/feature-image/Durga-mata.jpg
माँ  दुर्गा जिनकी नवरात्रि में आराधना की जाती है 

नारी में शक्ति का प्रतीक है 
मात्र माँ दुर्गा की पूजा से ही कोई  महिला 
या  पुरुष शक्तिशाली नहीं हो जाता 
माँ  दुर्गा द्वारा  अतुल पराक्रमी दैत्यों का वध 
किया गया 
रक्त बीज नामक राक्षस 
जिसके हर रक्त की बूँद एक नए राक्षस को जन्म देती थी 
का भी देवी दुर्गा द्वारा संहार किया गया 
आखिर इतनी शक्ति आई कहा से 
नारी समाज के लिए 
यह स्वयं में शक्ति जगाने का सूत्र हो सकता है 
सर्व प्रथम विचार करते है तो पाते है
 शिव साधना इसका प्रथम सूत्र है 
माँ दुर्गा का अंश महाकाली शिव साधक थी 
जिन्होंने कठोर तप  किया था 
दूसरा  सूत्र है अगाध सौन्दर्य की स्वामिनी होने के बावजूद 
चारित्रिक दृढ़ता थी
कथा आती है महिषासुर तथा अन्य  दैत्यों द्वारा
 विवाह के प्रस्ताव भेजे जाने के बावजूद 
उन्होंने शिव के प्रति अपनी निष्ठा  को नहीं छोड़ा था 
तीसरा  सूत्र  है निर्भयता 
 सामान्य रूप से सभी प्राणी सिंह  के डरते  है 
परन्तु माँ  दुर्गा  द्वारा  सिंह  की सवारी की जानी 
यह दर्शाता  है की सच्ची वीरांगना  को 
निर्भीकता  पूर्वक बुराइयो से मुकाबला करना चाहिए 
चौथा  सूत्र है दूर दर्शिता वर्तमान की समझ 
और अतीत से सीख लेने की प्रवृत्ति को अपनाना 
माँ  दुर्गा के शास्त्रों में त्रिशूल भी शामिल है 
जिसके तीनो भाग भूत भविष्य और वर्तमान के द्योतक है 
पांचवा  सूत्र है अच्छे  लोगो का साथ 
माँ  दुर्गा  के साथ सभी दैवीय शक्तिया  थी 
उनके अग्र  भाग में महावीर हनुमान और प्रष्ट भाग में भैरव देव रहते थे 
जिसका  तात्पर्य यह है की अच्छे  और सत्पुरुषो से
 निरंतर  मार्ग दर्शन प्राप्त करना  चाहिए 
और ऐसे सत्पुरुषो के साथ रहने का परिणाम यह होता  है 
की कोई पीठ पीछे भी विश्वासघात नहीं कर पाता  है 
इसलिए दुर्गा  उपासना  के साथ-साथ 
कोई नारी उपरोक्त सूत्रों का पालन करती है तो 
माँ  दुर्गा  के सामान उसे बल की प्राप्ति होती है 


Sunday, August 4, 2013

अभय भाव और वेद

विश्व में शत्रुओ के शमन दमन स्तम्भन 
उच्चाटन मारण  के कितने ही मंत्र है
 कितनी  ही विधिया है कितने ही विधान है 
यहाँ तक की अहिंसा के सिध्दांत पर आधारित
जैन धर्म में में भी प्रमुख मन्त्र ॐ नमो अरिहंताणं ही है 
तंत्र विद्या में कितनी देवी देवताओं की स्तुतिया
शत्रुओ के सर्वनाश के लिए साधको द्वारा की जाती है 
परन्तु व्यवहारिक  जगत में यह देखने में आता है
 की व्यक्ति किसी व्यक्ति शत्रु  मानता है 
यथार्थ में शत्रु कोई और भी हो सकता है 
हम जिसके अनिष्ट की कामना करते है 
उसके स्थान पर ऐसे व्यक्ति का अनिष्ट हो जाता है 
जिसे हम अपना परम हितैषी समझते  है
वास्तव देखा जाए तो हमारी स्थूल दृष्टि 
 शत्रु और मित्र में भेद ही नहीं कर सकती हमें किससे अभय चाहिए
इस विषय पर  अथर्ववेद  का  मन्त्र स्पष्ट करता है
अभयं  मित्रादभयममित्रादभयम ज्ञाताद अभयं परोक्षात अभयं नक्तं भयं दिवां न सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तु 
अथर्व. १९\१५\6
अर्थात हे भगवान हमें अभय प्रदान करो 
मित्रो से अमित्रो से अभय प्रदान करो 
हम जिनको जानते है उनसे अभय प्रदान करो 
हम जिनको नहीं जानते है उनसे भी हमें प्रदान करो 
तथा सभी और हमारे मित्र हो
मित्रता पूर्ण वातावरण से हम घिरे हो