Total Pageviews

Tuesday, December 27, 2011

त्रिदेव एवम जीवन दर्शन

त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु महेश के कार्यो में मूलभूत अंतर क्या है 
सामान्य रूप से कहा जाता है ब्रह्मा सृष्टि का  निर्माण करते है 
विष्णु जी पालन तथा शिव जी संहार करते है
किन्तु यह उनके कार्यो का अधूरा परिचय है 
वैसे ब्रह्मा जी के कार्यो परिचय के सम्बन्ध यह कहना महत्वपूर्ण होगा की शब्द को ब्रह्म की संज्ञा दी गई है
ब्रहमा जी ने समय समय पर राक्षसों को वचन देकर वरदान दिए है 
इसलिए उनको वचन का देवता भी कहा जा सकता है 
बोलचाल की भाषा में किसी महत्वपूर्ण वाक्य को ब्रह्म वाक्य कहा जाता है 
अर्थात वह वाक्य जो सत्य हो अटल हो तथा फलीभूत हो  
शब्द में ब्रहम होने का मतलब यह है की जो भी हम बोलते है वह शब्द सुनने वाले पर उच्चारित शब्द के अनुसार प्रतिक्रिया करता है 
चाहे वह सकारात्मक प्रतिक्रिया करे या नकारात्मक प्रतिक्रिया करे यह उस शब्द की प्रकृति पर निर्भर करता है 
इसलिए शब्द में ही ब्रह्म अर्थात ब्रह्मा जी का वास होता है
दुसरे स्थान पर विष्णु का सम्बन्ध कर्म से होता है 
इसका तात्पर्य यह है की जब तक सृष्टि है तब तक जीवन है 
कर्म के बिना जीवन जड़ है कर्म ही जीवन में चेतनता प्रदान करता है
चेतना कई प्रकार की हो सकती है जहा चेतना है वहा कर्म है जहा कर्म है फल है 
सत्कर्म में ईश्वर का अर्थात विष्णु भगवान् का वास होता है 
इसलिए भगवान् विष्णु के सभी अवतारों ने कर्म की आराधना पर बल दिया है 
कर्म शील व्यक्ति के साथ भगवान् विष्णु का आशीर्वाद होता है
भगवान शिव सहिष्णुता तथा उत्तरदायित्व,प्रबंधन  के देवता है 
भगवान् शिव ने माता गंगा के अतिरिक्त ऐसे जीव जन्तुओ तथा भूत प्रेत पिशाचो पशुओ के प्रति भी उत्तरदायित्व का निर्वहन किया जिन्हें सभी देवगण ने त्यक्त कर रखा था 
समस्त राक्षसों के भी आराध्य देव शिव रहे है
जहा तक सहिष्णुता का बात की जाय शिव जी जैसा सहिष्णु देव मिलना असम्भव है 
सामान्य रूप से जिस व्यक्ति को कही सम्मान नहीं मिलता उसे उसके ससुराल में तो सम्मान तो मिलता ही है
किन्तु शिव जी को उनके ससुराल में सार्वजनिक रूप से ससुर द्वारा अपमानित किया गया फिर भी वे मौन रहे
अंत में उनकी पत्नी माता सती को क्रोध आने पर जब हवन कुण्ड माता सती ने आत्मदाह किया
तब जाकर शिव जी धैर्य टूटा इसलिए धैर्य सहिष्णुता एवम दायित्व का पाठ भगवान् शिव से हमें ग्रहण करना चाहिए 
शिव जी प्रबंधन में अद्वितीय थे इसलिए भिन्न भिन्न प्रकार के प्राणी उनके साथ होने के बावजूद उन्होंने सभी के लिए गणा अध्यक्षों की नियुक्ति कर रखी थी 
और स्वयं तपस्या रत रहते थे 
आशय यह है की वर्तमान जीवन में कोई व्यक्ति  शब्द को सिध्द कर हर वचन का मुल्य समझता  है तथा वाणी के माध्यम से शब्द को मुख से बहार निकालता है 
उसकी जिह्वा एवम कंठ में सरस्वती का वास होता है अर्थात शब्द ब्रह्म की अनुगामिनी वाणी स्वरूपा सरस्वती होती है 
कोई यदि जीवन को सत्कर्मो को करते हुए सृजनरत रहता है तो उसे लक्ष्मी स्वरूपा लक्ष्मी की प्राप्त होती है 
लक्ष्मी के बल पर पुन नव कर्मो में रत होता जाता है तो लक्ष्मी बहु गुणित होती जाती है 
इसलिए कर्म के देवता विष्णु की अनुगामिनी लक्ष्मी माता को कहा जाता है 
जो व्यक्ति सहिष्णुता पूर्वक तथा कुशलता पूर्वक अपने दायित्वों का निर्वहन कुशल प्रबंधन के माध्यम से भलीभांति करता है वह अद्भुत शक्ति का अनुभव करता है 
उसे असीम बहु आयामी शक्तिया प्राप्त होती है वह शिव में समाहित होकर शक्ति संपन्न हो जाता है