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Tuesday, December 31, 2013

आप किसे पाना चाहते हो ?

संसार में ईर्ष्या भी है प्रीत भी
 यह आप पर निर्भर है कि आप किसे पाने चाहते हो 
संसार में आनंद भी है अवसाद भी 
यह आप पर निर्भर है आप किसे पाना चाहते हो 
संसार में लोभ भी है संतोष भी
 यह आप पर निर्भर है कि आप किसे पाना चाहते हो 
संसार में भोग और रोग भी है योग भी  
यह आप पर निर्भर है कि आप किसे पाना चाहते हो
संसार में  संस्कार भी है विकार भी
 यह आप पर निर्भर है कि  किस और जाना चाहते हो 
संसारिक सम्बन्धो में सौहार्द भी है कलह भी 
यह आप पर निर्भर है कि आप किसे निभाना चाहते हो 
सबंधो में स्वार्थ भी है परमार्थ भी है 
यह यह आप पर निर्भर है  
आप किस भाव को अपने व्यक्तित्व में समाना चाहते हो 
संसार में सम्भावना भी है शून्य भी 
 यह आप पर निर्भर है कि आप किसे पाना चाहते हो



Saturday, December 28, 2013

आत्म परीक्षण

व्यक्ति कितना ही कमजोर हो 
वह खुद को शक्तिशाली ही समझता है 
व्यक्ति कितना ही मूर्ख हो 
वह खुद को बुध्दिमान समझता है 
व्यक्ति कितना ही अल्पज्ञानी हो 
वह स्व यम को विद्वान समझता है 
व्यक्ति कितना ही अकुशल हो 
वह स्व यम को प्रवीण समझता है 
व्यक्ति कितना ही कटु भाषी हो 
वह स्व यम को मृदु भाषी मानता है 
व्यक्ति कितना ही अशिष्ट और असभ्य हो 
वह स्व यम को  शिष्ट और दूसरो को अशिष्ट समझता है
 चाहे संतान कितनी मुर्ख हो 
माता पिता को दुनिया में सम्पूर्ण प्रतिभा 
अपनी संतान में दिखाई देती है
व्यक्ति कितना ही दुष्ट हो 
  वह विश्व में सबसे अधिक धर्मात्मा स्व यम को मानता है 
व्यक्ति कितना ही कायर हो 
दुनिया का वीर पुरुष स्व यम को मानता है 
इस दुनिया में ऐसी कोई स्त्री नहीं होगी 
जो कुरूप होने के बावजूद स्व यम को सुन्दर न माने 
ऐसा इसलिए है कि 
व्यक्ति स्व यम का परिक्षण नहीं करना चाहता है 
अपनी आलोचना उसे बुरी लगती  है 
दुसरे व्यक्तियो द्वारा रखी गई परीक्षा प्रणाली उसे अधूरी लगती  है 
इसलिए स्व यम के आलोचक स्व यम बनो 
भ्रान्तियो के आधार पर ही न सपने बुनो

Thursday, December 26, 2013

संन्यास और भक्ति

वृत्ति का सम्बन्ध व्यवसाय और कार्य से है 
प्रवृत्ति का सम्बन्ध स्व भाव से है 
निवृत्ति वह शब्द है जिसे पाकर मुक्त होना है
मुक्ति कहा है यहाँ 
हर तरफ चिंताये  और चिताये है 
भस्म तन को ही होना है  
विरक्ति में वैराग्य है त्याग है
भक्ति का सम्बन्ध समर्पण से है
समर्पण क्या त्याग से बड़ा है ?
त्याग से संन्यास है और समर्पण से भक्ति
संन्यास से मुक्ति है और भक्ति से शक्ति 
संन्यास में उपाय है और भक्ति निरुपाय है 
बिन उपाय सब कुछ भक्ति से ही मिलता है 
भक्ति में भावनाए है भावुक विव्ह्वीलता है
इसलिए हे मनुज तुम भक्त बनो 
रहो पूर्णतया  समर्पित न यूं ही विरक्त बनो

Monday, December 16, 2013

क्षमताये और साधन

व्यक्ति कितना ही अकिंचन हो निर्धन हो 
उसके पास भी क्षमताये और साधन है 
यह बात अलग है कि 
व्यक्ति को अपने में निहित क्षमताओ और साधनो का ज्ञान नहीं होता 
जिन व्यक्तियो को स्वयम कि क्षमताओ और साधनो का ज्ञान नहीं होता 
वे सदा अभावो ,असुविधाओ का रोना रोते रहते है
प्रश्न यह है कि 
व्यक्ति को स्वयं में निहित क्षमताओ और साधनो का ज्ञान कैसे हो ?
इस हेतु क्या उपाय किये जाए ?
बिना ईश्वरीय कृपा के यह सम्भव नहीं है 
ईश्वरीय कृपा सभी को प्राप्त नहीं होती है 
जीवन से पलायन करने से नहीं 
ईश्वरीय कृपा ईश्वर द्वारा दिए गए जीवन में आस्था प्रगट करने से होती है 
प्रत्येक विषय और व्यक्ति के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण 
अपनाने से आस्था प्रगट होती है 
बहुत से लोग यथार्थ में हम देखते है 
जिनके पास संसाधनो कि कोई कमी नहीं है 
पर्याप्त क्षमताये विदयमान है  परन्तु उन्हे इस तथ्य कि जानकारी नहीं है 
हमारे चित्त में आत्मा में अन्तः करण  में थोड़ा सा भी ईश्वरीय प्रकाश है 
उस परम दीप्ती और आलोक से हमारे भीतर कि चेतना जाग्रत होने लगती है 
जो हमारी क्षमताओ का समुचित उपयोग 
और उसका विस्तार करने में सहायक होती है

Friday, December 13, 2013

गरीबी क्या है ?

गरीबी क्या है ?
गरीबी को अलग अलग लोगो ने अलग तरह से
 परिभाषित किया है 
गरीबी के लिए मानक निर्धारित किये गए 
गरीबी के लिए तय किया गया है कि एक गरीब 
व्यक्ति कि प्रतिदिन कि आय क्या होनी चाहिए 
परन्तु क्या यही सत्य है कि गरीबी को मात्र व्यक्ति 
कि आय से जोड़ा जाय यदि ऐसा है 
तो प्राचीन काल में जितने भी ऋषि मुनि वनो में रहते थे 
जिनकी कोई आय नहीं थी वन पर निर्भर थे क्या गरीब थे 
बिलकुल नहीं वे तो अध्यात्मिक सत्ता के प्रतीक थे 
राज सत्ता के लिए मार्ग दर्शक थे 
वास्तव में गरीबी का आधार मात्र आय नहीं हो सकता 
स्थान परिवेश जीवन शैली से 
गरीबी कि परिभाषाये निरंतर बदलती रहती है 
गरीबी के लिए मानसिक स्थितिया भी उत्तरदायी होती है
व्यक्ति में संतुष्टि का स्तर क्या है 
किस व्यक्ति कि आवश्यकता किस प्रकार कि है 
यह सब गरीबी को समझने के लिए अनिवार्य है 
पर इन सब बिन्दुओ पर दृष्टिपात कौन करता है 
गरीबी को तो लोगो ने समाज सेवा का माध्यम बना लिया है 
कुछ लोगो के लिए गरीबी रोजगार का साधन है
 ग्रामीण परिवेश में गरीबी के लिए अलग मानक होंगे तो कस्बो में भिन्न 
महानगरीय जीवन शैली में व्यक्ति कि अधिक आय भी 
उसके अभावो को दूर नहीं कर सकती 
इसलिए गरीबी निर्धारण के लिए 
कोई सीधी और सरल रेखा नहीं हो सकती

आम आदमी

वर्त्तमान  में हुए चुनावो में आम आदमी को 
चर्चा का विषय बना दिया है 
आम आदमी के लिए प्रसन्नता का यह विषय है कि 
उसके नाम पर एक राजनैतिक दल का उदय हो गया है 
आम आदमी के साथ समस्या यह रही है कि 
उससे जुडी समस्याओ से जुड़ कर हर कोई राजनीति में 
आगे बढ़ना  चाहता है अपना कद और हैसियत बढ़ाना चाहता है 
पर आम आदमी वही रह जाता है 
और आम आदमी को पायदान बनाने वाला आगे बढ़ जाता है 
आखिर आम आदमी है क्या ?हम आम आदमी किसे कहेंगे ?
आम आदमी कि पहचान क्या है?
 इस दुविधा को दूर करने के लिए 
आम आदमी के हाथ में झाड़ू थमा दी गई है 
और उसके सिर पर टोपी रख दी गई है 
तो क्या मात्र टोपी पहन लेने से कोई आम आदमी हो जाता है 
अब तो लोगो में आम आदमी बनने के लिए प्रतिस्पर्धा होने लगी है
 जो किसी जमाने में ख़ास आदमी बनने के लिए 
हुआ करती  थी अभी तक यह माना जाता था कि 
आम आदमी याने आम +आदमी  अर्थात जो मीठे आम कि तरह 
मीठा जिसको आराम से खाया जा सके 
जिसे सरलता से सभी जगह पाया जा सके 
परन्तु जब से आम आदमी के नाम से 
राजनैतिक दल का उदय हुआ 
यह धारणा भी बदल गयी ऐसी स्थिति बन चुकी है 
कि न तो उगला जा रहा है न ही निगला जा रहा 
आम आदमी के कारण ख़ास आदमी परेशान ही नहीं हैरान है

Tuesday, December 10, 2013

वैचारिक दीवारो में कैद व्यक्ति

जितने व्यक्ति विश्व में भौतिक दीवारो में कैद नहीं है 
उससे कई गुना व्यक्ति वैचारिक दीवारो में कैद है 
व्यक्ति स्वयम द्वारा रची गई वैचारिक दायरे के बाहर 
न तो निकलना चाहता है 
और नहीं कुछ देखना चाहता है 
इसलिए ऐसे व्यक्तियो का चिंतन स्वस्थ  कैसे रह सकता है 
व्यक्ति यदि वैचारिक दृष्टि से कैद रहे तो 
उसका दृष्टिकोण अत्यंत संकुचित रहता है 
वैचारिक कैद से मुक्त होना प्रगति के लिए अत्यंत आवश्यक है 
स्वयम के मत को ही सही मान लेना 
अन्य के विचारो को नहीं सुनना 
व्यक्ति में पूर्वाग्रह और दुराग्रह का कारण है 
जीवन में नए और ताजे विचारो को पाने का यत्न करना 
स्वयम के व्यक्तित्व को सवारने हेतु उपयोगी होता है 
विश्व में महानतम व्यक्तियो कि जीवनियों कि ओर 
  जब  हम दृष्टि पात करते है 
तो उन्होंने अपने विरोधियो के विचारो को भी 
ध्यान से और धैर्य से सुना  है
सभी प्रकार के धर्मो संस्कृतियों सिद्धांतो के साहित्य को पढ़ा  है 
उन्होंने ही नित नए विचारो को पाया है 
और नया ही कुछ गढ़ा  है
 वैचारिक उदारता का तात्पर्य यह नहीं कि 
 हम दिशाहीन हो जाए 
हमारी मौलिकता ही समाप्त हो जाए 
वैचारिक उदारता हमारी इसी में है कि 
हमारे जीवन में चिंतन में नवीन विचार अंकुरित होते रहे
 किसी भी विषय पर सभी दृष्टिकोण से देखे परखे 
इस प्रक्रिया में हम यह पायेगे कि 
हम जिस निष्कर्ष पर पहुचे है वह बिलकुल सही है 
वह सभी मापदंडो के अनुरूप है

Tuesday, December 3, 2013

मित्रो में शत्रु

निष्क्रिय व्यक्तियो के न तो शत्रु होते है न ही आलोचक 
व्यक्ति के चारो और शत्रुओ के संख्या में वृध्दि हो रही हो 
इसका सदा नकारात्मक आशय नहीं निकाला जा सकता 
व्यक्ति जब प्रवाह के प्रतिकूल चलता है 
उत्थान कि और अग्र सर होता है तो 
जाने अनजाने कितनी ही विपदाओ से सामना करना पड़ता है 
न चाहते हुए भी उसके अनगिनत शत्रु बन जाते है 
परन्तु यह भी सत्य है  ऐसे व्यक्ति के जिस अनुपात में शत्रु होते है 
उसी अनुपात में मित्र और समर्थक भी तैयार हो जाते है 
हम  समाज में ऐसे बहुत से ऐसे व्यक्तियो को पहचानते है 
जिनका कोई शत्रु नहीं होता 
फिर ऐसे व्यक्ति के साथ अनपेक्षित घटनाएं घटित होने लगती  है 
इसका कारण यह है 
ऐसे व्यक्ति ने अपने मित्रो कि संख्या में तो काफी वृध्दि कर ली 
पर मित्रो में कौन उसके प्रति शत्रु भाव रखता है 
उसे समझ नहीं पाया परख नहीं पाया 
विश्वास घात कि घटनाएं भी ऐसे व्यक्ति के साथ ही होती है 
जो बहुत अधिक मित्रो से घिरा होता है 
मित्रता के कवच में अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है 
इसलिए इस बात को चिंता नहीं होनी चाहिए कि 
हमारे कितने कम मित्र है 
चिंता इस बात कि होनी चाहिए कि 
हमारे कितने मित्र विश्वसनीय है 
चिंता इस बात कि नहीं होनी चाहिए
 कि हमारे कितने अधिक शत्रु है 
चिंता इस बात कि होनी चाहिए कि 
कही हमारे मित्रो में कोई शत्रु तो नहीं है