Total Pageviews

Saturday, November 15, 2014

बचपन

व्यक्ति जब बड़ा हो जाता है तो 
वह अपने बचपन को याद करता है 
बचपन की स्मृतियों में खो जाता है
 बचपन की मस्ती को याद करता है 
कहता है की काश मेरा बचपन वापस लौट आये 
परन्तु उम्र  की दृष्टि से बचपन की आयु प्राप्त करना संभव नहीं है
इसके विपरीत आयु बढ़ती  ही जाती है 
काया जीर्ण शीर्ण और जर्जर होने लगती  है 
प्रश्न यह उठता है की हम बचपन की ओर 
  इतने अधिक आकृष्ट क्यों होते है 
बचपन में व्यक्ति के स्वभाव में 
 सहजता ,सरलता ,चंचलता ,रहती है 
बच्चा परिवार का एक सच्चा सदस्य होता है 
उसके स्वभाव में पक्षी के तरह उन्मुक्तता 
अनंत आकाश में उड़ने की अभिलाषा रहती है
 संत की फकीरी समाई रहती है 
 बच्चे की अनुभूतियाँ और भावनात्मक अभिव्यक्ति  का स्तर
 प्रखर होता है 
क्या बचपन के ये सारे गुण  हम अपने स्वभाव में अंगीकार कर
 किसी भी उम्र में अपने बचपन को नहीं जी सकते
जी सकते है बशर्ते हमें अपने मन के विकार अहंकार
 धूर्तता स्वार्थ भाव को त्यागना पडेगा 
अपने स्वभाव में पारदर्शिता लाना होगी 
फिर हमारे वचन मूल्य वान  हो जायेगे 
हम शारीरिक रूप से स्वस्थ हो सकेंगे 
यह सत्य है की बड़े होने पर व्यक्ति की व्यवसायिक
 और पारिवारिक जिम्मेदारिया बढ़ जाती है 
परन्तु समस्त जिम्मेदारियों का निर्वहन करते हुए 
व्यक्ति को अपने भीतर के बालक को 
ज़िंदा रखना चाहिए

Wednesday, November 5, 2014

सहयोग या सहानुभूति

सहानुभूति बहुत अच्छा भाव है जो मानवीय  भावना को प्रगट करता है
परन्तु अतिरिक्त  सहानुभूति व्यक्ति को कमजोर और भावुक बना देती है
इसी कमजोरी का धूर्त लोग फायदा उठा लेते है
जिस व्यक्ति को किसी के भी सहानुभूति नहीं मिलती वह भीतर से ताकतवर बन जाता है
भीतर की ताकत व्यक्ति की विषम परिस्थितियों में टूटने नहीं देती
इसलिए अतिरिक्त सहानुभूति प्रगट करने वाले व्यक्तियो से 
 सावधान  रहो 
याद रखो हमे किसी की दया या सहानुभूति की आवश्यकता नहीं अपितु सहयोग की आवश्यकता है 

Saturday, October 25, 2014

दीपावली कब सार्थक है

जहा आत्मीयता समाप्त हो जाती है 
वहा ओपचारिकता प्रारम्भ होती है 
आत्मीयता पूर्ण सम्बन्ध निश्छल व्यवहार की आशा रखते है 
कृत्रिम रूप से धारण की गई मधुरता से 
आत्मीय रिश्ते कभी विकसित नहीं किये जा सकते है 
दीपावली और होली जैसे त्यौहार रिश्ते में
 आत्मीयता जाग्रत करने के पर्व है 
जिन रिश्तो में संवाद समाप्त हो चुके है
 उनके बीच संवाद के सेतु बनाये रखने के पर्व है 
वर्तमान में जहा कुछ रिश्ते केवल नाम के रह गए है 
रिश्तो के नाम पर रिश्तो के शव रह गए है 
वहा थोड़ा सा संवाद ही मृत रिश्तो में प्राण फूंक देता है 
दीपावली के फटाके तो रिश्तो में जागृत लाने के प्रतीक है 
मन से सभी प्रकार के भय दूर कर देने का प्रयास है 
इसलिए त्यौहारो में निहित भाव को हम समझ पाये तो
 हमारे त्यौहार सार्थक है 
रिश्तो के भीतर की ऊष्मा को संवाद से बचा पाये तो 
दीपावली सार्थक है  

Tuesday, September 23, 2014

कृतज्ञता

यदि हम किसी के उपकार को याद कर पाये तो 
हम उस व्यक्ति के कृतज्ञ है जिसने हमें उपकृत किया है
 कृतज्ञता   के धरातल पर मनुष्यता पलती  है 
कृतज्ञ  होना अच्छे मनुष्य का लक्षण है 
कृतज्ञता से हम किसी व्यक्ति के ऋण से उऋण हो सकते है 
जिस व्यक्ति में कृतज्ञता का भाव नहीं है 
वह किसी प्रकार की संवेदना और दया का पात्र नहीं है 
संसार में बहुत से ऐसे लोग है 
जो किसी भी व्यक्ति के द्वारा किये  
उपकार को भूल जाते है 
और उसी व्यक्ति की आलोचना करने लगते है 
जिन्होंने बहुत सारे उपकार किये है 
ऎसे लोगो को कृतघ्न कहा जाता है
 दूसरी बार कोई व्यक्ति आवश्यकता पड़ने पर 
कृतघ्न व्यक्ति  की कोई सहायता नहीं करता है
माता पिता  से कृतघ्न पुत्र कपूत कहलाता है 
 गुरु से कृतघ्न शिष्य को ज्ञान भले ही ग्रहण कर ले 
परन्तु गुरु का आशीष नहीं मिलता 
प्राप्त ज्ञान का उपयोग नहीं कर सकता
देश की माटी से कृतघ्न व्यक्ति देश द्रोही 
 आश्रय दाता  से कृतघ्न व्यक्ति विश्वासघाती कहलाता है 
संसार में जो उपकार की  भावना  जो समाप्त हो रही है 
उसका सबसे प्रमुख कारण  कृतघ्नता है
इसलिए जीवन में जिसने भी 
हमारा थोड़ा सा भी उपकार किया है
 उसके प्रति कृतज्ञ अवश्य  रहे


Tuesday, September 9, 2014

प्रीती में आलोक आनंद है

प्रेम के भीतर ईश्वर   है 
इस सच्चाई को जानने के बावजूद 
विशुध्द प्रेम की अभिव्यक्ति को 
कोई स्वीकार नहीं करता 
प्रेम के भीतर 
किसी न किसी   प्रकार की मिलावट 
सभी को चाहिए 
प्रेम विशुध्द  हो तो करुणा पिघलती है 
करुणा में माँ और मानवता है 
संवेदना को  तरलता मिलती है
 मानवीय व्यवहार की सरलता  सच्ची पूजा है 
 प्रेम  के ढाई अक्षर में अद्भुत ऊर्जा है
 प्रीती की दीप्ती पाकर प्रतिभाये उभरती  निखरती है 
प्रीती  में आलोक आनंद है ईर्ष्या कहा ठहरती है

Wednesday, September 3, 2014

हर तालिका तीज व्रत

हर तालिका तीज व्रत सहित कई व्रत कन्याये 
शिव सामान पति पाने की मनोकामना लिए करती  है 
विवाहित महिलाये अपने पति की दीर्घायु के लिए 
शिव को प्रसन्न करने के लिए करती  है 
स्त्रीया शिव सामान पति क्यों चाहती है ?
जबकि शिव जी तो तपस्वी श्मशानवासी है 
शिव के सामान पति प्राप्त करने  से स्त्रीयो को 
उसी प्रकार शक्ति प्राप्त होती है 
जिस प्रकार से माँ पार्वती को प्राप्त हुई थी 
 माँ पार्वती शक्ति स्वरूपा है 
शिव जैसा पति प्राप्त करने का आशय यह है 
की स्त्रियों को पार्वती सामान संतान सुख की प्राप्ति होती है 
शिव के पास धन नहीं था परन्तु वे जब चाहते थे 
 तब धन के देव कुबेर उनकी सेवा के लिए तैयार हो जाते थे 
शिव आराधना से स्त्रीयो को उसी प्रकार से 
अनुचर और सेवक प्राप्त होते है 
जिस प्रकार से माँ पार्वती  को शिव के गण प्राप्त थे


Saturday, August 23, 2014

जितेंद्रीय

व्यक्ति  की कार्य क्षमता  का थकान से 
बहुत गहरा सम्बन्ध होता है 
व्यक्ति थकता क्यों है?
 व्यक्ति या तो बहुत अधिक परिश्रम से थकता है 
या व्यक्ति थकता इसलिए है की 
उसे सम्बंधित कार्य को करने में रूचि नहीं होती 
व्यक्ति को रूचि के अनुसार कार्य करने का अवसर मिले तो 
उसे किये गए कार्य से 
थकान के स्थान पर ऊर्जा प्राप्त होती है 
 जिस व्यक्ति को संगीत में रूचि नहीं उसे संगीत 
सुनने  और जिस व्यक्ति को पढने में रूचि नहीं 
उसे किताब पढने से थकान अनुभव होने लगती  है 
थकान का तन से अधिक मन से सम्बन्ध होता है
 इसलिए थकान भरी अवस्था से मुक्ति पाना हो तो 
हमें अपनी रुचियों में परिवर्तन करना होगा
 या तो हम अपनी वृत्ति के अनुरूप अपनी रूचि बदल ले 
या हम अपनी रूचि के अनुसार अपनी वृत्ति का चयन कर ले
 जितना कठिन व्यक्ति का अपनी रूचि में परिवर्तन है
 उससे अधिक कठिन अपनी रूचि के अनुसार 
वृत्ति या आजीविका का सफलता पूर्वक चयन कर लेना है
 सबसे बेहतर है कि
 हमें अपना स्वभाव अपनी वृत्ति के अनुरूप विकसित करना होगा
यह संभव तभी हो पायेगा 
जबकि हमारा अपनी इन्द्रियों पर संयम हो 
जिसका अपनी इन्द्रियों पर संयम होता है 
वह जितेंद्रीय कहलाता है

Monday, August 4, 2014

शक्ति पीठ की ऊंचाई का रहस्य

हमारे पूर्वजो ने देवीयो के शक्ति पीठ 
ऊँचे पर्वत की चोटियों पर क्यों बनाये है 
क्योकि ऊँचे पर्वत की चोटियों पर चढ़ने में
 अधिक शक्ति की आवश्यकता होती है 
देव स्थान सहज गम्य स्थान पर स्थित हो तो 
मनुष्य को उसका मूल्य ज्ञात नहीं होता है 
व्यक्ति की प्रवृत्ति रहती है की वह उसी स्थान 
और प्रतीकों की और भागता है जो दुर्लभ हो 
प्रत्येक व्यक्ति में शक्ति होती  है 
परन्तु व्यक्ति को अपने भीतर छुपी शक्ति का 
अहसास नहीं होता 
भीतरी शक्ति का अहसास व्यक्ति को 
तभी होता है 
जब अतिरिक्त परिश्रम की आवश्यकता होती है 
पर्यटन के स्थान हो या तीर्थ स्थल 
वे अधिक चहल पहल भरे होते है 
जो अधिक दूर हो दुर्गम राहो से भरपूर हो 
ईश्वरीय तत्व की अनुभूति भी एकांत में होती है
 सहज  रूप मानव रूप में उपलब्ध ईश्वरीय अवतार 
श्रीराम और श्रीकृष्ण का किसने महत्व जाना था
 
 

Saturday, August 2, 2014

त्रिकाल दर्शी

एक व्यक्ति ज्योतिषी के पास पहुंचा 
और प्रश्न किया की मेरा कल कैसा होगा ?
ज्योतिषी ने जन्म कुंडली के आधार पर 
कई प्रकार की कल गणनाएं की
और तरह तरह के विधि विधान बताये 
फिर भविष्य वाणी की 
कई प्रकार के किन्तु परन्तु लगाए
वही व्यक्ति एक संत के पास पहुंचा 
और उसने संत से यही प्रश्न किया 
की महाराज बताइये मेरा कल कैसा होगा 
संत ने जबाब दिया "जैसे तुम्हारे आज कर्म है,
 तुम्हारा कल वैसा ही होगा ,
जैसे  तुम्हारे भूतकाल में कर्म रहे है ,वैसा तुम्हारा वर्तमान है ,
तुम भूतकाल के अपने कर्मो पर दृष्टिपात करो 
,फिर वर्तमान में अपनी स्थिति के सम्बन्ध में विचार करो"
कल भी तुम सत्कर्म न कर भविष्य वक्ताओं के पीछे
 अपना भविष्य खराब कर रहे थे 
 आज भी तुम कठोर परिश्रम न कर 
अपना भविष्य भविष्यवक्ताओं के पीछे घूम कर खराब कर रहे हो 
हमारा आज हमारे भूत और भविष्य का दर्पण है 
यदि हम स्वयं हमारी वर्तमान स्थिति को देख पायेगे तो 
हमारे भूत काल के सारे कर्म याद आयेगे 
और हम हमारे वर्तमान के कर्मो को श्रेष्ठ बना पायेगे 
तो भविष्य में को हम सुखद बना पायेगे
 ऐसा सुनते ही उस व्यक्ति को 
अपनी गलती का अहसास हो गया उसने जान लिया था
 संत और भविष्य वक्ता में क्या अंतर होता है   
भविष्य वक्ता केवल भविष्य के बारे में बताता है
 और उसमे भी कई प्रकार के किन्तु परन्तु लगाता है 
जबकि संत भूत भविष्य के साथ वर्तमान को भी बताता है 
और वह त्रिकाल दर्शी कहलाता है 
 

Tuesday, July 29, 2014

सम्मान और गरिमापूर्वक जीने का अधिकार

जीने के अधिकार में सम्मान और गरिमापूर्वक
 जीवन यापन करने का अधिकार भी शामिल है 
हमें ध्यान रखना चाहिए की हमारी व्यक्तिगत स्वतंत्रता 
किसी व्यक्ति के इस अधिकार को तो नहीं छीन रही है 
संसार में गरीब से गरीब व्यक्ति के लिए 
सबसे अधिक कोई मूल्य वान वस्तु  है
 तो वह सम्मान और गरिमापूर्ण 
जीवन यापन का अधिकार
 हमें चाहिए की हम स्वयं सम्मान पूर्ण जीवन जिए 
और हमारे किसी कृत्य से दूसरे व्यक्ति के आत्मसम्मान 
एवं  सामाजिक सम्मान को क्षति न पहुंचे 
अध्यात्म का मूल सूत्र ही यह है की 
विश्व के समस्त प्राणियों में प्रभु सत्ता का वास है 
इसलिए हम चाहे कितने ही धर्म का आवरण ओढ़  ले
  यदि हमने  अपने जीवन में जाने अनजाने 
चाहे अनचाहे अपने कृत्य से
 किसी व्यक्ति  के सम्मान से जीवन जीने के अधिकार को 
क्षति पहुचाई है तो हम पाखंडी है 
ईश्वर पाखण्ड से की गई पूजा को स्वीकार नहीं करता
 मन आशाये उसी व्यक्ति की पूरी होती है
 जो जीवन में ईश्वरीय गुणों का समावेश कर लेता है

Wednesday, July 16, 2014

शिव पूजा

श्रावण मॉस में शिव पूजा पर 
 अधिक जोर दिया जाता है 
शिव जी को प्रसन्न करने के लिए
 भक्त तरह तरह की साधना और अनुष्ठान करते है 
शिव जी आशुतोष अर्थात शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता है 
परन्तु शिव जी वास्तव में 
वर्तमान की परिस्थितियों से प्रसन्न है 
यदि ऐसा है तो शिव जी से जुड़े तीर्थ केदारनाथ 
पर ध्वंस क्यों हुआ था 
शिव जी को वास्तव में प्रसन्न करना चाहते है तो 
हमें ह्रदय में श्रीराम को बसाना होगा 
क्योकि शिव जी का एक नाम रामेश्वर भी है 
श्रीराम बन कर उनके आचरण को आत्मसात कर 
यदि हम शिव जी की अल्प साधना भी करेंगे 
तो शिव जी सच मुच प्रसन्न होगे 
उल्लेखनीय है की रावण भी शिव भक्त था 
परन्तु उसकी शिव भक्ति में राम जैसी सादगी नहीं थी 
वैभव था शक्ति प्रदर्शन था अहंकार था शिव जी की साधना 
रावण जैसे दुर्गुणों से युक्त व्यक्ति करे तो 
वह शिव पूजा का कितना ही पाखण्ड कर ले
पर सही अर्थो में शिव जी के आशीष 
उसको नहीं मिल पायेगा 
श्रीराम जैसी शिव भक्ति करने से 
जिस प्रकार से श्रीराम जी को शिव जी के अंशावतार 
हनुमान जी प्राप्त हुए थे 
उसी प्रकार से शिव अर्थात  दुसरो के कल्याण करने वाले 
 व्यक्तियों का सानिध्य सहयोग और हमें प्राप्त होगा
इस बिंदु पर दृष्टिपात किया जाना आवश्यक है 

Tuesday, July 8, 2014

अच्छाई का आंदोलन

लोग अच्छाई की बाते करते है
 पर अच्छे व्यक्तियों को पसंद नहीं करते है 
तथा कथित अच्छे लोगो को 
बुरे लोगो में अच्छाई दिखाई देती है 
अच्छे लोगो की अच्छाई उन्हें दिखाई नहीं देती 
क्योकि अच्छे लोगो को अपनी अच्छाई 
प्रचारित करना नहीं आती
 बुरे लोगो बुराइयो को भी अच्छाइयों का 
आवरण पहना कर सस्ती लोकप्रियता अर्जित कर लेते है 
अच्छे लोगो को लोग पसंद करने लगे 
अच्छाइयों को प्रोत्साहित करने लगे 
 बुरे लोगो में भी अच्छा व्यक्ति बनने की प्रेरणा जाग्रत हो जाए
 तब बिना किसी प्रकार के आंदोलन के ही 
सब कुछ अच्छा होने लग जाएगा 
वर्तमान में सारे आंदोलन बुराईयो के विरोध पर आधारित है
 जिससे बुराईया चर्चित हो जाती है
 बुरा बन कर लाभ प्राप्त करने के सारे तरीके से
 लोग अवगत हो जाते है 
बुराईयो का जाने अनजाने विस्तार होता  जाता है 
इस प्रकार के आंदोलन नकारात्मक सोच पर
 आधारित आंदोलन होते है 
हमें एक ऐसे आंदोलन की आवश्यकता है 
जो सकारात्मक सोच पर आधारित हो 
अच्छे व्यक्तियों को प्रोत्साहन 
अच्छे कार्यो की सराहना और सहयोग 
सच्चाई और अच्छाई को बल प्रदान करते है 
शनै :शनै : अच्छाई की जड़े  विस्तार पा जाती है 
बुराई के विरुध्द आंदोलन करने के बजाय 
बुराई को अनावृत्त करने की आवश्यकता है
 क्योकि बुराई किसी भी प्रकार की हो उसे आवरण चाहिए 
बिना आवरण के कोई भी बुरा कार्य नहीं  सकता

Friday, July 4, 2014

सद्गुरु और क्षमतावान शिष्य

गुरु पूर्णिमा  पर शिष्य अपने अपने 
गुरुओ की पूजा करते है 
बहुत से गुरु इस पर्व पर 
शिष्यों को दीक्षा प्रदान करते है 
बहुत ऐसे व्यक्ति जिनके कोई गुरु नहीं है
 वे सद्गुरु की खोज में लगे रहते है 
परन्तु जितना मुश्किल है सद्गुरु का मिल पाना 
उतना ही मुश्किल है 
एक अच्छे गुरु की योग्य शिष्य की तलाश कर पाना
बहुत से गुरु शिष्यों की संख्या में विश्वास करते है
 शिष्यों की गुणवत्ता में नहीं 
बहुत से गुरु यह गर्व अनुभव करते है
 की कोई नामी व्यक्ति उनका शिष्य है 
महत्वपूर्ण यह है गुरु की आध्यात्मिक साधना कितनी है
 वह कितना ज्ञानी  है 
इसी प्रकार से महत्व इस बात का भी है की 
शिष्य की आध्यात्मिक साधना क्या है 
यदि एक ऐसा व्यक्ति जिसकी कोई आध्यात्मिक साधना नहीं है 
और धनी और प्रतिष्ठित हो तो 
उसे जो भी गुरु मिलेगा 
वह उस गुरु पर भार ही होगा
 गुरु की आध्यात्मिक शक्ति का क्षरण ही करेगा 
इसके विपरीत एक ऐसा शिष्य जिसके अध्यात्म का स्तर उन्नत हो 
 वह अपने से अल्प स्तर के व्यक्ति को गुरुता प्रदान करता है 
तो ऐसे शिष्य की आध्यात्मिक शक्तिया  क्षीण होगी 
इसलिए एक सद्गुरु को संभावना से 
परिपूर्ण शिष्य की तलाश रहती है 
यह उसी प्रकार से है जिस प्रकार से एक अच्छे विद्यालय को 
अच्छे छात्रों की तलाश रहती है 

Wednesday, July 2, 2014

पूजा साधना और योग

व्यक्ति पूजा से श्रेष्ठ प्रतीक पूजा है
पूजा से श्रेष्ठ है  योग साधना है 
योग कई प्रकार के होते है 
मुख्यत योग में ज्ञान योग हठ योग नाद योग सहज योग (राजयोग ) कर्म योग  ध्यान योग आदि है 
योग में महत्वपूर्ण यम नियम है 
यम और नियम के बिना समस्त योग व्यर्थ है
यम और नियम आचरण द्वारा की गई साधना है
भौतिक पदार्थो की प्राप्ति हेतु की गई साधना से श्रेष्ठ आत्म कल्याण के लिए की गई साधना  होती है 
आत्म कल्याण के लिए की गई साधना श्रेष्ठ 
लोक कल्याण हेतु की गई साधना होती है

Wednesday, June 25, 2014

दुःख का महत्त्व

महत्त्व इस बात का नहीं की किसने कितना दुःख देखा दैन्य और दरिद्रता पूर्ण परिस्थितियों में जीवन व्यतीत किया महत्व इस बात का है की दुःख देखने के बाद भी व्यक्ति ने परिस्थितियों से संघर्ष किया जीवन में सफलता हासिल की उपलब्धिया अर्जित की  जैसे तैसे जीवन जी लेना आसान है परन्तु जीवन स्वाभिमान और जीना बहुत कठिन है अपमानित होकर तो कई व्यक्ति जीते है परन्तु जीवन में आत्मसम्मान बचा कर सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त करना अत्यंत कठिन है जीवन में श्रम का अत्यधिक महत्व है  परिश्रम का उपदेश करना भी आसान है परन्तु स्वयं परिश्रम करते हुए आदर्श प्रस्तुत करना बहुत कठिन  है

Tuesday, June 24, 2014

मै एक पेड़ हूँ

 मै एक पेड़ हूँ
मुझे पौधे से पेड़ बनने में कई साल लगे
पूरी पीढ़ी मेरे देखते -देखते गुजर गई
बीज से पौधा और पौधे से पेड़ बनने का सफर बहुत लंबा था
जब मै पेड़ बना था पंछीया का बसेरा बना
आते -जाते राही को मेरी छाँव में आश्वस्ति मिलती थी
जब कभी मेरी टहनियों की लकडिया गिरती थी लोग सर्दी में अलाव जला लेते थे
प्रवासी और निर्धन मेरी लकडियो से भोजन पका लेते थे
मेरी पत्तियों की हरियाली वातावरण में प्राण फूक देती थी
सुबह शाम पंछियो की चहचहाट को मैंने सूना है
मैंने सुनी उनकी कई अंतरंग बाते
मैंने बारिश की धार सहा है पर पथिक को बचाया है
मैंने गर्मी की तेज धूप में तप कर राहो को चौराहो को सजाया है
नहीं चाहा की मेरी जड़ो को लोग रोज पानी पिलाये
फिर लोग ने छोटे छोटे बच्चे को मेरे झूलो पर झुलाये

Sunday, June 8, 2014

वामन अवतार में जीवन दर्शन

प्राचीन हिन्दू ग्रंथो में उल्लेख आता है |  
भगवान विष्णु के वामन अवतार 
जो दैत्य वंश के राजा बलि के द्वार पर 
एक बौने ब्राह्मण का रूप धारण करके
 भिक्षा माँगने के लिए गए थे 
और उन्होंने तीन पग धरती मांगी थी
 राजा बलि द्वारा तीन पग धरती दान देते ही
 भगवान विष्णु ने अपना बौना रूप त्याग कर 
विशाल रूप धारण किया इतना विशाल की 
पैर धरती पर थे और मस्तक अनंत आकाश की ऊंचाई पर 
उक्त दृष्टान्त से हमारे व्यवहारिक जीवन का 
बहुत गहरा सम्बन्ध है |  
  सामान्य रूप से जो लोग ऊँचे सपने सजाया करते है|  
   वे यह नहीं जानते की हमें कहा छोटा होना है  
 और कहा बड़ा होना
  हर जगह बड़प्पन के अहंकार में रहना उचित नहीं है 
यदि जीवन में उपलब्धिया प्राप्त करनी हो तो 
अपना स्वरूप लघु कर लेना चाहिए |
  इस सिध्दि का प्रयोग पवन पुत्र हनुमान जी ने कई बार किया 
और वांछित कार्य में सफलता प्राप्त की 
 इसी प्रकार उपरोक्त दृष्टान्त हमे यह भी सिखाता है
 हम कितने ही बड़े व्यक्ति बन जाए 
हमारे पैर  यथार्थ के धरातल पर ही टिके रहना चाहिए 
पर चिंतन का स्तर वामन अवतार के ऊंचाई धारण करने वाले
 मस्तक के साम होना चाहिए

Wednesday, June 4, 2014

रिश्तो की असलियत

सविता और रतन के जो मोहल्ले में 
एक माह पूर्व ही किराए से रहने आये थे 
दोनों में आज काफी कहा सुनी  हो गई थी
 दोनों में हाथा पाई हो जाने से लहू -लुहान हो गए थे 
मोहल्ले के सारे लोग इकठ्ठे हो गए थे 
सविता बोली "मै अपने पति और बच्चो को छोड़ कर
 माता -पिता सारे सम्बन्धो को भूल कर 
रतन तेरे साथ प्रेम के पाश में बंध चली आई" 
और तू एक माह के भीतर ही आपा खो बैठा 
यह सुन कर मोहल्ले के सारे लोग स्तब्ध रह गए 
की वे जिस जोड़े को मोहल्ले का आदर्श परिवार मानते रहे
 वे नैतिक और चारित्रिक दृष्टि से पारिवारिक जिम्मेदारियों से 
भागे हुए महिला पुरुष है 
जिनके बीच दैहिक  तृष्णा के अतिरिक्त
 कोई रिश्ते का सेतु नहीं था जब ऐसी तृष्णा तृप्त हो जाती है
 तो एक माह के भीतर ही 
उनके रिश्तो की असलियत सामने आ जाती है 

Tuesday, June 3, 2014

सुदर्शन चक्र और गरुड़

भगवान विष्णु सज्जनो के सरंक्षण 
तथा दुर्जनो के विनाश हेतु सदा तत्पर रहते थे
इसलिए उनका वाहन गरुड़ है
 गरुड़  की दृष्टि अत्यंत तीव्र रहती है
और गति अत्यंत द्रुत और अद्भुत 
याद करते ही भगवान विष्णु सहायता के लिए
तुरंत पहुँच जाते है 
यह केवल उनके वाहन गरुड़ देवता से संभव है
भगवान विष्णु के हाथो में सुशोभित सुदर्शन चक्र 
जो दुष्टो को दंड देने हेतु
सदा तत्पर रहता है एक बार छोड़ें जाने के बाद
 वह दुष्ट का शिरोच्छेदन के बाद ही लोटता था
शिर अर्थात मस्तिष्क में 
 विचारो और विकारो का स्थान होता है
 सुदर्शन चक्र दुष्ट विचारो
               और विकारो के विरुध्द संघर्ष  का परिचायक है
सुदर्शन अर्थात श्रेष्ठ दर्शन जीवन में 
श्रेष्ठ विचारो का स्थान होना चाहिए 
विचार अच्छे या बुरे हो सकते है 
लड़ाई सदा वैचारिक होनी चाहिए  
अच्छी विचार धारा से जुड़े सज्जन व्यक्तियों का समूह
 जब संगठित होकर कोई प्रयास करता है 
तो वह षडयंत्रो पर आधारित वैचारिक विकृतियों का 
समूल नाश करता है 
वर्तमान में जो भी व्यक्तियों के समूह 
अच्छे विचारो के लिए कार्य कर रहे है 
वे भगवान विष्णु के सुदर्शन चक्र की तरह है