नदिया जल का प्रवाह है
प्रवाह में ही जीवन है प्राण बसते है
प्राण बिन जीवन नहीं होता है
परिवेश श्मशान होता है
पल पल डसते है
जड़ता व्यक्ति को अकर्मण्य और पंगु बना देती है
निष्क्रियता क्षमताये मिटा देती है
सक्रियता बूंद को समुन्दर आस्थाये कंकर को शंकर का रूप देती है
बहती हुई नदिया गहराई लेती है
गहराई में सब कुछ समा लेती है
इसलिए गहरा और सामर्थ्यवान होने के लिए जीवन में प्रवाह होना अनिवार्य है
जीवन में निरंतर सक्रिय रहने से ही सुधारे सभी कार्य है
सक्रियता में ही रहता कर्म और धर्म है
जीवन में रहो सक्रिय यही जीवन का मर्म है
प्रवाह में ही जीवन है प्राण बसते है
प्राण बिन जीवन नहीं होता है
परिवेश श्मशान होता है
पल पल डसते है
जड़ता व्यक्ति को अकर्मण्य और पंगु बना देती है
निष्क्रियता क्षमताये मिटा देती है
सक्रियता बूंद को समुन्दर आस्थाये कंकर को शंकर का रूप देती है
बहती हुई नदिया गहराई लेती है
गहराई में सब कुछ समा लेती है
इसलिए गहरा और सामर्थ्यवान होने के लिए जीवन में प्रवाह होना अनिवार्य है
जीवन में निरंतर सक्रिय रहने से ही सुधारे सभी कार्य है
सक्रियता में ही रहता कर्म और धर्म है
जीवन में रहो सक्रिय यही जीवन का मर्म है