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Sunday, September 16, 2012

सक्रियता

नदिया जल का प्रवाह है
प्रवाह में ही जीवन है प्राण बसते है
प्राण बिन जीवन नहीं
होता है
 परिवेश श्मशान होता है
पल पल डसते है
जड़ता व्यक्ति को अकर्मण्य और पंगु बना देती है
निष्क्रियता क्षमताये मिटा देती है
सक्रियता बूंद को समुन्दर आस्थाये कंकर को शंकर का रूप देती है
बहती हुई नदिया गहराई लेती है
गहराई में सब कुछ समा लेती है
इसलिए गहरा और सामर्थ्यवान होने के लिए जीवन में प्रवाह  होना अनिवार्य है
जीवन में निरंतर सक्रिय रहने से ही सुधारे सभी कार्य है
सक्रियता में ही रहता कर्म और धर्म है
जीवन में रहो सक्रिय यही जीवन का मर्म है