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Monday, November 12, 2012

बन्धु,बन्दुक और बंधुवर

http://www.cs.northwestern.edu/~holger/WWWMasters/Project/graphics/cartoon.GIF 
एक बहुत प्रचलित कहावत है
दूसरे के कंधे पर बन्दुक रखकर
चलाना
अर्थात दूसरे व्यक्ति को अपने हित के लिए
 इस्तेमाल  करते हुए
उस व्यक्ति से
किसी तीसरे व्यक्ति को क्षति कारित करना

यह एक अत्यंत प्राचीन कला है
जिसे कूटनीति के रूप में

राजा महाराजाओं द्वारा समय समय पर
इसका प्राचीनकाल में  इस्तेमाल किया जाता रहा है

वर्तमान में इस कला का इतना व्यापक प्रचार प्रसार हो गया है कि
बड़े बड़े राज नेताओं से लगाकर छुटभैये नेता तक
इसका उपयोग करने में लगे हुए है

यहाँ तक कि हर व्यक्ति बन्दुक चलाने के लिए
दूसरे के कंधे का ढूँढने में लगा हुआ है  
 इस कला का उपयोग अक्सर उन लोगो द्वारा किया जाता है
जो स्वयं किसी प्रकार कि बुराई नहीं लेना चाहते 
परन्तु अपने स्वार्थ के लिए दूसरो को बुरा बनाना चाहते है
समाज में ऐसे लोगो को स्वयं को बन्धु कहलाने का 
ज्यादा शौक होता है 
विश्व बंधुत्व का सन्देश देते हुए 
ऐसे लोग बंधुत्व कि भावना का प्रचार का आभास भी देते रहते है
बन्दुक तो प्रतीक है
बन्दुक का आशय किसी प्रकार का आग्नेय अस्त्र नहीं है

बन्दुक कि गोली से अधिक मारक क्षमता तो
जिव्ह्वा कि बोली में होती है

इसलिए जब कोई कहे कि उस व्यक्ति द्वारा
दुसरे के कंधे पर बन्दुक रख दी गई है

तब यह समझना उचित होगा है
अपने हित या दूसरे के हित को क्षति कारित करने

का वक्तव्य उसने स्वयं न देकर
किसी अन्य व्यक्ति से दिलवाया है

इस कला का लाभ यह है कि
 सम्बंधित व्यक्ति को सन्देश भी पहुँच जाय

सन्देश कि तीक्ष्णता भले ही
पीड़ित व्यक्ति को कितना भी घायल कर दे

उसे अहसास भी नहीं हो पाता है
कि वास्तव में सन्देश या दुराशय किसका है
इस कला का यह पक्ष यह भी है कि
पीड़ित
पक्ष में वह व्यक्ति भी शामिल होता
जिसके कंधे पर बन्दुक रखकर चलाई गई है 



रूप चौदस या नरक चौदस

दीपावली पर महालक्ष्मी पूजन अर्थात अमावस्या के एक दिन पूर्व
चौदस की तिथि को रूप चौदस या नरक चौदस के रूप में 
संबोधित किया जाता है
मान्यता है की रूप चौदस को श्रृंगार पक्ष पर
 विशेष ध्यान दिया जाता है
जब हम रूप या श्रृंगार के विषय पर विचार करते है तो
अच्छे स्वास्थ्य के बिना रूप की कल्पना तक नहीं की जा सकती है 
स्वास्थ्य की अनदेखी कर कोई भी व्यक्ति रूपवान नहीं हो सकता है
स्वास्थ्य के बिना किया गया श्रृंगार कृत्रिमता लिए हुए होगा
 रूप  चौदस के एक दिन पूर्व को  धन तेरस को
धन्वन्तरी जयंती के रूप में भी मनाया जाता है

धन्वन्तरी आयुर्वेदाचार्य थे तथा सम्राट विक्रमादित्य के समकालीन थे
उज्जैन जिले के महिदपुर नगर के निकट 
धन्वन्तरी महादेव का मंदिर विद्यमान है
जहां भगवान् शिव माता पार्वती के साथ 
प्रतिमा रूप में दृष्टिगत होते है
मान्यता है की मंदिर के समीप कुए के जल कई रोग दूर होते है
माना जाता है की इस स्थान पर 
धन्वन्तरी की प्रयोगशाला स्थित थी
इसलिए कुए में ओषधिय रसायन की 
संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है
रूप चौदस के एक दिन पूर्व स्वास्थ्य को ठीक रखने हेतु
आयुर्वेदाचार्य धन्वन्तरी से आशीष लेकर 
अच्छे स्वास्थ्य की कामना करने से
जो रूप मिलेगा उसमे कृत्रिमता नहीं होगी नैसर्गिकता रहेगी
नैसर्गिकता भरे रूप में ही शिव शंकर पार्वती विराजमान रहते है
 इसलिए आयुर्वेदाचार्य  धन्वन्तरी  की महिदपुर स्थित
अनुसंधानशाला
पर महादेव पार्वती का मंदिर विद्यमान है
रूप केवल व्यक्ति के बाहरी आकार
प्रकार से निर्धारित नहीं होता है
आतंरिक गुणों का अत्यधिक महत्त्व होता है

इसलिए रूप चौदस को नरक चौदस के रूप में भी 
सम्बोधित किया जाता है
ऐसा इसलिए भी कहा जाता है कि
भगवान् कृष्ण ने भौमासुर नामक ऐसे राक्षस का वध 
 इस दिन किया था
जिसने भिन्न -भिन्न राज्यों की रूपवान राजकुमारियो का 
हरण कर बंदी बनाया था
राक्षस ने रूपवान राजकुमारियो के रूप का
उनकी इच्छा के विरुध्द उपभोग किया था

भगवान् कृष्ण द्वारा इस दिन भौमासुर राक्षस के वध का 
आशय यह है कि रूप हो या अच्छा स्वास्थ्य हो 
वह भोग कि नहीं योग कि विषय वस्तु है
जो व्यक्ति अच्छे स्वास्थ्य का आश्रय ले सुन्दर रूप का 
 उपभोक्ता प्रवृत्ति से उपभोग करेगा
उसका शीघ्र विनाश सुनिश्चित है योग में भगवान कृष्ण है
भोग में भौमासुर है भोग से अंत है जैसा कि भौमासुर का हुआ था
योग में योगेश्वर है योगेश्वर शिव है कृष्ण है