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Tuesday, July 29, 2014

सम्मान और गरिमापूर्वक जीने का अधिकार

जीने के अधिकार में सम्मान और गरिमापूर्वक
 जीवन यापन करने का अधिकार भी शामिल है 
हमें ध्यान रखना चाहिए की हमारी व्यक्तिगत स्वतंत्रता 
किसी व्यक्ति के इस अधिकार को तो नहीं छीन रही है 
संसार में गरीब से गरीब व्यक्ति के लिए 
सबसे अधिक कोई मूल्य वान वस्तु  है
 तो वह सम्मान और गरिमापूर्ण 
जीवन यापन का अधिकार
 हमें चाहिए की हम स्वयं सम्मान पूर्ण जीवन जिए 
और हमारे किसी कृत्य से दूसरे व्यक्ति के आत्मसम्मान 
एवं  सामाजिक सम्मान को क्षति न पहुंचे 
अध्यात्म का मूल सूत्र ही यह है की 
विश्व के समस्त प्राणियों में प्रभु सत्ता का वास है 
इसलिए हम चाहे कितने ही धर्म का आवरण ओढ़  ले
  यदि हमने  अपने जीवन में जाने अनजाने 
चाहे अनचाहे अपने कृत्य से
 किसी व्यक्ति  के सम्मान से जीवन जीने के अधिकार को 
क्षति पहुचाई है तो हम पाखंडी है 
ईश्वर पाखण्ड से की गई पूजा को स्वीकार नहीं करता
 मन आशाये उसी व्यक्ति की पूरी होती है
 जो जीवन में ईश्वरीय गुणों का समावेश कर लेता है

Wednesday, July 16, 2014

शिव पूजा

श्रावण मॉस में शिव पूजा पर 
 अधिक जोर दिया जाता है 
शिव जी को प्रसन्न करने के लिए
 भक्त तरह तरह की साधना और अनुष्ठान करते है 
शिव जी आशुतोष अर्थात शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता है 
परन्तु शिव जी वास्तव में 
वर्तमान की परिस्थितियों से प्रसन्न है 
यदि ऐसा है तो शिव जी से जुड़े तीर्थ केदारनाथ 
पर ध्वंस क्यों हुआ था 
शिव जी को वास्तव में प्रसन्न करना चाहते है तो 
हमें ह्रदय में श्रीराम को बसाना होगा 
क्योकि शिव जी का एक नाम रामेश्वर भी है 
श्रीराम बन कर उनके आचरण को आत्मसात कर 
यदि हम शिव जी की अल्प साधना भी करेंगे 
तो शिव जी सच मुच प्रसन्न होगे 
उल्लेखनीय है की रावण भी शिव भक्त था 
परन्तु उसकी शिव भक्ति में राम जैसी सादगी नहीं थी 
वैभव था शक्ति प्रदर्शन था अहंकार था शिव जी की साधना 
रावण जैसे दुर्गुणों से युक्त व्यक्ति करे तो 
वह शिव पूजा का कितना ही पाखण्ड कर ले
पर सही अर्थो में शिव जी के आशीष 
उसको नहीं मिल पायेगा 
श्रीराम जैसी शिव भक्ति करने से 
जिस प्रकार से श्रीराम जी को शिव जी के अंशावतार 
हनुमान जी प्राप्त हुए थे 
उसी प्रकार से शिव अर्थात  दुसरो के कल्याण करने वाले 
 व्यक्तियों का सानिध्य सहयोग और हमें प्राप्त होगा
इस बिंदु पर दृष्टिपात किया जाना आवश्यक है 

Tuesday, July 8, 2014

अच्छाई का आंदोलन

लोग अच्छाई की बाते करते है
 पर अच्छे व्यक्तियों को पसंद नहीं करते है 
तथा कथित अच्छे लोगो को 
बुरे लोगो में अच्छाई दिखाई देती है 
अच्छे लोगो की अच्छाई उन्हें दिखाई नहीं देती 
क्योकि अच्छे लोगो को अपनी अच्छाई 
प्रचारित करना नहीं आती
 बुरे लोगो बुराइयो को भी अच्छाइयों का 
आवरण पहना कर सस्ती लोकप्रियता अर्जित कर लेते है 
अच्छे लोगो को लोग पसंद करने लगे 
अच्छाइयों को प्रोत्साहित करने लगे 
 बुरे लोगो में भी अच्छा व्यक्ति बनने की प्रेरणा जाग्रत हो जाए
 तब बिना किसी प्रकार के आंदोलन के ही 
सब कुछ अच्छा होने लग जाएगा 
वर्तमान में सारे आंदोलन बुराईयो के विरोध पर आधारित है
 जिससे बुराईया चर्चित हो जाती है
 बुरा बन कर लाभ प्राप्त करने के सारे तरीके से
 लोग अवगत हो जाते है 
बुराईयो का जाने अनजाने विस्तार होता  जाता है 
इस प्रकार के आंदोलन नकारात्मक सोच पर
 आधारित आंदोलन होते है 
हमें एक ऐसे आंदोलन की आवश्यकता है 
जो सकारात्मक सोच पर आधारित हो 
अच्छे व्यक्तियों को प्रोत्साहन 
अच्छे कार्यो की सराहना और सहयोग 
सच्चाई और अच्छाई को बल प्रदान करते है 
शनै :शनै : अच्छाई की जड़े  विस्तार पा जाती है 
बुराई के विरुध्द आंदोलन करने के बजाय 
बुराई को अनावृत्त करने की आवश्यकता है
 क्योकि बुराई किसी भी प्रकार की हो उसे आवरण चाहिए 
बिना आवरण के कोई भी बुरा कार्य नहीं  सकता

Friday, July 4, 2014

सद्गुरु और क्षमतावान शिष्य

गुरु पूर्णिमा  पर शिष्य अपने अपने 
गुरुओ की पूजा करते है 
बहुत से गुरु इस पर्व पर 
शिष्यों को दीक्षा प्रदान करते है 
बहुत ऐसे व्यक्ति जिनके कोई गुरु नहीं है
 वे सद्गुरु की खोज में लगे रहते है 
परन्तु जितना मुश्किल है सद्गुरु का मिल पाना 
उतना ही मुश्किल है 
एक अच्छे गुरु की योग्य शिष्य की तलाश कर पाना
बहुत से गुरु शिष्यों की संख्या में विश्वास करते है
 शिष्यों की गुणवत्ता में नहीं 
बहुत से गुरु यह गर्व अनुभव करते है
 की कोई नामी व्यक्ति उनका शिष्य है 
महत्वपूर्ण यह है गुरु की आध्यात्मिक साधना कितनी है
 वह कितना ज्ञानी  है 
इसी प्रकार से महत्व इस बात का भी है की 
शिष्य की आध्यात्मिक साधना क्या है 
यदि एक ऐसा व्यक्ति जिसकी कोई आध्यात्मिक साधना नहीं है 
और धनी और प्रतिष्ठित हो तो 
उसे जो भी गुरु मिलेगा 
वह उस गुरु पर भार ही होगा
 गुरु की आध्यात्मिक शक्ति का क्षरण ही करेगा 
इसके विपरीत एक ऐसा शिष्य जिसके अध्यात्म का स्तर उन्नत हो 
 वह अपने से अल्प स्तर के व्यक्ति को गुरुता प्रदान करता है 
तो ऐसे शिष्य की आध्यात्मिक शक्तिया  क्षीण होगी 
इसलिए एक सद्गुरु को संभावना से 
परिपूर्ण शिष्य की तलाश रहती है 
यह उसी प्रकार से है जिस प्रकार से एक अच्छे विद्यालय को 
अच्छे छात्रों की तलाश रहती है 

Wednesday, July 2, 2014

पूजा साधना और योग

व्यक्ति पूजा से श्रेष्ठ प्रतीक पूजा है
पूजा से श्रेष्ठ है  योग साधना है 
योग कई प्रकार के होते है 
मुख्यत योग में ज्ञान योग हठ योग नाद योग सहज योग (राजयोग ) कर्म योग  ध्यान योग आदि है 
योग में महत्वपूर्ण यम नियम है 
यम और नियम के बिना समस्त योग व्यर्थ है
यम और नियम आचरण द्वारा की गई साधना है
भौतिक पदार्थो की प्राप्ति हेतु की गई साधना से श्रेष्ठ आत्म कल्याण के लिए की गई साधना  होती है 
आत्म कल्याण के लिए की गई साधना श्रेष्ठ 
लोक कल्याण हेतु की गई साधना होती है