निष्क्रिय व्यक्तियो के न तो शत्रु होते है न ही आलोचक
व्यक्ति के चारो और शत्रुओ के संख्या में वृध्दि हो रही हो
इसका सदा नकारात्मक आशय नहीं निकाला जा सकता
व्यक्ति जब प्रवाह के प्रतिकूल चलता है
उत्थान कि और अग्र सर होता है तो
जाने अनजाने कितनी ही विपदाओ से सामना करना पड़ता है
न चाहते हुए भी उसके अनगिनत शत्रु बन जाते है
परन्तु यह भी सत्य है ऐसे व्यक्ति के जिस अनुपात में शत्रु होते है
उसी अनुपात में मित्र और समर्थक भी तैयार हो जाते है
हम समाज में ऐसे बहुत से ऐसे व्यक्तियो को पहचानते है
जिनका कोई शत्रु नहीं होता
फिर ऐसे व्यक्ति के साथ अनपेक्षित घटनाएं घटित होने लगती है
इसका कारण यह है
ऐसे व्यक्ति ने अपने मित्रो कि संख्या में तो काफी वृध्दि कर ली
पर मित्रो में कौन उसके प्रति शत्रु भाव रखता है
उसे समझ नहीं पाया परख नहीं पाया
विश्वास घात कि घटनाएं भी ऐसे व्यक्ति के साथ ही होती है
जो बहुत अधिक मित्रो से घिरा होता है
मित्रता के कवच में अपने आप को सुरक्षित महसूस करता है
इसलिए इस बात को चिंता नहीं होनी चाहिए कि
हमारे कितने कम मित्र है
चिंता इस बात कि होनी चाहिए कि
हमारे कितने मित्र विश्वसनीय है
चिंता इस बात कि नहीं होनी चाहिए
कि हमारे कितने अधिक शत्रु है
चिंता इस बात कि होनी चाहिए कि
कही हमारे मित्रो में कोई शत्रु तो नहीं है