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Friday, March 9, 2012

PARSURAM BHAG -1







परसुराम भाग - एक

भगवान परशुराम भगवन विष्णु के दस अवतारों मैं से एक हैं. जिनका अवतार दुष्ट अत्याचारी शक्त्रिया राजाओ के विनाश  के लिए हुआ . शक्त्रियो को वर्ण व्यवस्था मैं ऊँचा स्थान  मिला हुआ था राज्य करने का अधिकार उन्ही  के पास सुरक्षित था क्यों की वो वीर युद्ध करने वाले होते सम्पूर्ण समाज की रक्षा का दायित्व इन्ही शक्त्रियो पर था इन्ही की तरह बाकी अन्य तीनो वर्ण भी अनपे अपने कार्य को भली प्रकार से कर के समाज और राष्ट्र के लिए अपना दायित्व निभाते,
ब्रहामन वर्ण यज्ञ धर्म और समाज को ज्ञान का मार्ग दिखता 
वैश्य वर्ण व्यापार आदि करके  लोगो की आवश्यकताओ की पूर्ति करता 
और शुद्र वर्ण समाज के सेवा करता 
इन चारो मैं से यदि एक भी अपना धर्म नहीं निभाए तो समाज की रचना संभव नहीं हो सकती थी परन्तु कुछ ऐसा ही हुआ 
हैहय वंश के शक्त्रिया अपने दायित्व को भूल गए और मनमानी करने लगे अपनी शक्ति और पद का दुरपयोग करने लगे वे अत्याचारी हो गए जिस कारण समाज का संतुलन बिगड़ गया और इसी संतुलन को पुनह स्थपित करने के लिए भगवान परसुराम का जन्म हुआ 
जिसकी कथा इस प्रकार हैं.............................................................१ 

रिचिक ऋषि नाम के एक बहुत तपस्वी युवा सन्यासी थे जो यज्ञ आदि अनुष्ठान करते  वे महान सिधियो के स्वामी थे इश्वर की उन पर विशेष कृपा थी और ये सब उनके तप का ही प्रभाव था.
उनका ये समाज कल्याणकारी तपो यज्ञ इसी तरह चल रहा था एक दिन वो ध्यानमग्न होकर प्रभु का चिंतन कर रहें थे उसी  समय उन्हें एक इश्वानी सुनाई दी हे ऋषिवर ध्यान से सुनिए आपको एक महान कार्य करना हैं रिचीक बोले प्रणाम प्रभु आप किस कार्य की  बात कर रहें हैं, इश्वानी ने कहा सुनिए ऋषि आज  समाज का  संतुलन बिगड़ चूका हैं शक्त्रिया अपनी मर्यादाओ को लाँघ चुके हैं और अपने दायित्व को भूल गए हैं, अतः  अब पुनह समाज को संतुलित  कर और इन दुष्टों का  नाश कर इन्हें दंड देने का समय आ गया हैं इसके लिए अब स्वयं मैं ( भगवान् विष्णु ) अवतार लूँगा और धर्म की संस्थापना करुगा. ऋषि बोले हे प्रभु आप आज्ञा करे .
सुनिए रिचिक आपको गधिक नामक धर्मात्मा राजा की पुत्री से विवाह करना होगा.
ऋषि आश्चर्य से बोले प्रभु मैं तो सन्यासी हु ब्र्म्चारी हूँ  मैं विवाह केसे कर सकता हु प्रभ बोले हे रिचिक कभी कभी धर्म की रक्षा के लिए और समाज कल्याण के लिए अपने संकल्पों  मैं परिवर्तन करना आवश्यक हो जाता हैं ,इस वक़्त आप का तप - यज्ञ और संन्यास नहीं हैं इस समय आप का दायित्व समाज के संतुलन मैं सहायता करना हैं और इस के लिए आपका विवाह करना अतिआवश्यक हैं.
रिचिक इस मर्म को समझ गए और प्रभु की आज्ञा और समाज कल्याण के पथ पर गधिक महराज की राज्य सभा की और चल दिए.....................................................! (शेष भाग कुछ ही समय बाद  ) 

5 comments:

  1. बहुत सुन्दर जानकारी के साथ ,--बहुत-बहुत धन्यवाद.

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  2. nmskaar, aap ko lekh aacha lga ye jankar prsanta hui'

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  3. This comment has been removed by the author.

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  4. जीवन की आंतरिक दृष्टि को दिखाने वाला आत्मिक लेख..... वैचारिक दृष्टि के धनी लेखक को बहुत आभार व्यक्त

    Piyush from kota

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  5. पीयूष जी के उदारपूर्ण विश्लेषण के लिए ह्रदय से धन्यवाद

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