Total Pageviews

Monday, March 3, 2014

श्रीकृष्ण का सखा भाव

यह  सत्य है कि सज्जनों को किसी के भी प्रति 
विद्वेष का भाव नहीं रखना चाहिए 
परन्तु इसका यह तात्पर्य भी नहीं कि
 हम दुष्टो  कि दुष्टता को अनदेखा कर दे 
और सज्जनो को सज्जनता के लिए पुरस्कृत भी न करे 
ह्रदय में क्षमा भाव होना अच्छी बात है 
परन्तु क्षमा भाव को कोई हमारी कमजोरी ही समझ ले 
यह कतई उचित नहीं है 
यदि दुष्टो को समय रहते दण्डित नहीं किया गया 
तो उनकी दुष्टता और अधिक उग्र होती जावेगी 
इसी प्रकार से सज्जनता को पारितोषिक नहीं दिया गया तो 
समाज से सज्जनता लुप्त हो जावेगी 
समाज से सज्जनता लुप्त न हो 
इसलिए जहा भी अवसर मिले
 सज्जनो को सरंक्षण और प्रोत्साहन देना 
हमारा दैवीय दायित्व है
 कभी कभी सज्जन व्यक्ति इतना अधिक अकेला और असहाय 
हो जाता है कि उसका   मनोबल और सत्संकल्प 
टूट कर बिखर जाने कि स्थिति में होता है 
तब हमारा मात्र नैतिक समर्थन उसे नई ऊर्जा और जोश दे सकता है 
तब वह हम में श्रीकृष्ण  का सखा भाव  अनुभव करता है 
 इस पुनीत कार्य से हम  सहजता से देवत्व को प्राप्त कर लेते है 
देवत्व प्राप्त करते ही हमारे लघु प्रयास भी 
वृहद् लक्ष्य को प्राप्त करने हेतु पर्याप्त होते है