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Sunday, March 31, 2013

श्मशान वैराग्य

श्मशान में हर व्यक्ति को विरक्ति हो जाती है 
जलती हुई शव की चिता को देख कर 
मानव देह मिटटी की देह लगने लगती है 
भौतिक पदार्थो से आसक्ति हटाने लगती है 
रिश्तो और व्यक्तियों से मोह समाप्त होने लगता है 
परन्तु श्मशान से लौटने  के पश्चात 
व्यक्ति अपने दैनिक कार्यो में लग जाता है 
संसार में पूर्ण रूपेण  लिप्त हो जाता है 
भौतिक पदार्थो की    प्राप्ति के लिए अनुचित 
अनैतिक मार्ग अपनाने से भी नहीं चुकता 
इस अवस्था को श्मशान वैराग्य के नाम से
 संबोधित किया जाता है 
कुछ लोग संसार से स्थाई विरक्ति प्राप्त करने हेतु 
संन्यास मार्ग का अनुशरण करते है 
परिवार रक्त संबंधियों से नाते तोड़ लेते है 
पैत्रिक स्थान पैत्रिक गाँव शहर का परित्याग कर देते है 
किसी गुरु से दीक्षा ग्रहण कर लेते है 
किसी अखाड़े आश्रम सम्प्रदाय से जुड़ जाते है 
मोह के नए बंधन निर्मित कर लेते है 
वास्तव में व्यक्ति को सच्ची विरक्ति कैसी प्राप्त हो सकती है 
जब व्यक्ति को सच्ची विरक्ति प्राप्त होती है 
तो उसके लिए वास्तविक मुक्ति का मार्ग 
स्वत  खुल जाता है 
सन्यास क्या है ?  सच्चा सन्यासी वस्त्रो से नहीं 
विचारों और संस्कारों से होता है 
संन्यास में न्यास शब्द होता है 
 विशुध्द न्यास भाव में संन्यास निहित होता है 
न्यास भाव का तात्पर्य यह है की मन में
 किसी व्यक्ति वस्तु के प्रति स्वामित्व का भाव नहीं रखना  है 
सदैव व्यक्ति वस्तु  पदार्थ सम्पत्ति के प्रति यह भाव रखना की 
वह व्यवस्था या सुरक्षा की दृष्टि उसकी अभिरक्षा में है 
न्यास भाव कहलाता है 
इसलिए जिस  व्यक्ति ने न्यास भाव अंगीकार कर लिया हो 
वह सच्चा सन्यासी है