Total Pageviews

Monday, November 19, 2012

त्रिदेव और लोकतंत्र तीन स्तम्भ


-->
The image “https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjRwJe-6n4hhqcba6J1RjX_JJFmE6cueaXAtU9cVDA7M4ipdmVYdSMnkBCW3utJRwwpYtcDHBgwzVVKaUnTb2emECKGOsu5VYtcmAodF58Z2Nzs6PL6ttSQqgWMHXbRAokZVY74qcfVqJ4/s1600/Hindu+GOD+image.jpg” cannot be displayed, because it contains errors.


लोकतंत्र के मुख्य रूप से तीन स्तम्भ
विधायिका ,कार्यपालिका,न्यायपालिका है
कभी हमने सोचा है कि त्रिदेव ब्रह्मा,विष्णु ,महेश,के
व्यक्तित्व से भी तीनो स्तम्भो की भूमिका को हम भली भाॅती समझ सकते है,
यदि विधायिका का कार्य एवम अाचरण अौर भूमिकाब्रह्म देव के समान हो
तथा कार्यपालिका अर्थात प्रशासनिक अधिकारियो का कार्य एवम
अाचरण अौर भूमिका भगवान विष्णु के समान हो
व न्यायपालिका की भूमिका महेश अर्थात शिव के समान हो
तो तीनो स्तम्भ एक दूसरे के पर्याय रहेगे
एेसा लोकतंत्र के स्वास्थ्य के लिये शुभ रहेगा
जिस प्रकार प्रत्येक कल्प के ब्रह्मा अलग-अलग होते है
उसी प्रकार से प्रत्येक पाच वर्षो के अन्तराल के पश्चात
जनता निर्वाचन प्रक्रिया के माध्यम से नई विधायिका का गठन करती है
विधायिका अर्थात लोकसभा ,राज्य सभा ,विधान सभा
जिस प्रकार से समय समय पर अावश्यकता के अनुरूप विधेयको को पारित कर
अधिनियमो का निर्माण करते है
उसी प्रकार से ब्रहम देव स्रष्टि मे अावश्यकता के अनुरुप
जीवो,वनस्पतियो,ग्रहो ,उपग्रहो,ब्रह्माण्ड की रचना कर उनकी अायु अाकार प्रकार
अौर भूमिका निर्धारित करते है
विधायिका देश के सभी समुदायो का प्रतिनिधीत्व कर
उनके हितो के प्रति जबाब देह होती है
उसी प्रकार से ब्रह्म देव उनके नर ,दानव ,देवता,गन्धर्व इत्यादि को
उनके प्रारब्ध अौर पुरुषार्थ के अनुसार वरदान अौर उचित योनि मे जन्म प्रदान करते है
परिणाम चाहे जो हो वे अपने विधान को बदलते नही है
विधायिका के सदस्यो अर्थात जन प्रतिनिधियो को
उसी प्रकार से अपने चिन्तन ,ग्यान अौर दर्शन की
चहू दिशाये तथा सम्वाद के सभी मार्ग खुले रखने चाहिये
जिस प्रकार से बह्म देव चारो दिशाअो मे चार मुखो से अौर अाठ अाॅखो से
स्थितियो का समुचित अध्ययन करते रहते है तथा सम्वादरत रहते है
ब्रह्मदेव का कमल अासन पर विराजित होना हाथो मे किसी प्रकार का
अस्त्र नही होकर वेद ग्रन्थ होना इस तथ्य का प्रतीक है कि
विधायिका मे बाहुबली या अपराधी तत्वो को निर्वाचित नही होना चाहिये
सज्जन अौर ऐसे सतोगुणी का निर्वाचित होने चाहिये
जिन्हे विधी या सामाजिक सन्दर्भो से जुडे विषयो का पर्याप्त ग्यान या
अनुभव हो या जो इनमे रूचि रखते हो
विधायका को कार्यपालिका अौर न्याय पालिका के प्रति उसी प्रकार से
सम्मान का भाव रखना चाहिये जिस प्रकार से ब्रह्मदेव
भगवान विष्णु अौर शिव के प्रति रखते है
हम यह देखते है कि भगवान विष्णु प्रत्येक प्रकार का कार्य करने हेतु
तत्पर रहते है तथा उन्होने जितने अवतार धारण किये है
उतने किसी भी अन्य देवता ने अवतार धारण नही किये है
अवतारो के माध्यम से भगवान विष्णु ने निरन्तर समाज को समधान प्रदान किये है
उसी प्रकार से कार्यपालिका को विविध अायामो मे प्रवेश कर समाज अौर देश की
समस्याअो को सुलझाने हेतु तत्पर रहना चाहिये
भगवान शिव जो लोकतंत्र के तीसरे स्तम्भ अर्थात न्याय पालिका
के प्रतीक के रूप मे है का व्यक्तित्व यह बताता है
न्याय पालिका के कनिष्ठतम से वरिष्ठतम न्यायाधीश का व्यक्तित्व कैसा होना चाहिये
भगवान शिव जैसा वैरागी स्वभाव , सर्वहारा वर्ग के लिये संवेदना की भावना
,समाज के अभिजात्य वर्ग से लगाकर उपेक्षित वर्ग तक समानता का भाव
,गरिमापूर्ण अाचरण शिव जी को सभी देवो मे विशिष्ट बना कर महादेव बनाता है
उसी प्रकार से न्यायपालिका का सच्चा प्रतिनिधि शिव के व्यक्तित्व का न्यायाधिश
समाज के प्रत्येक व्यक्ति मे न्याय के प्रति श्रद्धा की भावना उत्पन्न करता है