Total Pageviews

Monday, January 16, 2012

चारित्रिक नैतिकता एवं अर्जुन


महाभारत में एक प्रसंग आता है 
जब अर्जुन वनवास काल के दौरान अपने मानस पिता इन्द्र के यहाँ स्वर्ग में गये थे 
अपने मानस पुत्र के कष्टों को दूर करने के लिए इन्द्रराज ने अर्जुन के लिए स्वर्ग में मनोरंजन एवम सुख सुविधा के सारे प्रबंध किये थे
इन्द्र की सभा में नृत्य करने वाली अप्सरा उर्वशी थी 
जो नृत्य संगीत में अत्यंत कुशल होकर सुन्दरता की प्रतिमूर्ति थी
इन्द्र ने अपने मानस पुत्र अर्जुन की सेवा हेतु अपनी अप्सरा उर्वशी को भेजा 
इंद्र के आदेशानुसार उर्वशी अर्जुन की सेवा हेतु अर्जुन के समक्ष उपस्थित हुई
अर्जुन धीर वीर ही नहीं अपितु जितेन्द्रिय चरित्र का दृढ व्यक्ति थे 
उन्होंने उर्वशी को यह निवेदन किया की चूँकि वह इंद्र की सेविका होकर उनकी उपभोग में आनेवाली महिला है
इंद्र उसके मानस पिता होने से उर्वशी उसकी माता के सामान है
इसलिए वे माता सामान स्त्री से किसी प्रकार से स्त्री-पुरुष के सम्बन्ध नहीं बना सकते
इस पर उर्वशी अप्सरा कुपित हो गई एवम अर्जुन को नपुंसकता का श्राप दिया 
जो परम वीर अर्जुन ने सहर्ष स्वीकार किया किन्तु स्वर्ग जैसी जगह पर पतित कर्म करने से स्वयं को रोका
पश्चातवर्ती घटनाक्रम में अज्ञातवास के दौरान नपुंसकता का श्राप अर्जुन को काम आया 
और उन्होंने विराट राज्य की राजकुमारी उत्तरा को नृत्य एवम संगीत का प्रशिक्षण दिया 
अज्ञातवास पूर्ण होने पर जब विराट के राजा ने जब उत्तरा से विवाह करने करने का प्रस्ताव अर्जुन के समक्ष रखा
तो अर्जुन जैसे पराक्रमी वीर ने फिर चारित्रक प्रबलता दर्शाई 
और उन्होंने विराटराज के प्रस्ताव को यह कह कर इनकार कर दिया की उन्होंने उत्तरा को शिक्षा दी है 
इसलिए उत्तरा एवम उनके मध्य गुरु शिष्य के सम्बन्ध बन चुके है
गुरु के शिष्या से विवाह नैतिक दृष्टि से उचित नहीं है
वीर अर्जुन जिन्होंने भले ही सुभद्रा ,गंधर्व कन्या ,नागकन्या ,द्रोपदी से विवाह कर बहु विवाह किये हो 
किन्तु उन्होंने जो रिश्तो की मर्यादा स्थापित की है वह अत्यंत दुर्लभ है
वर्तमान में  भी यह कथा प्रासंगिक होकर अनुकरणीय है
आशय यह है की उत्तम श्रेणी के पुरुष उत्तम स्थान पर सुविधाए पाकर पतित नहीं होते है 
अपितु पवित्र स्थान पर आचरण की पवित्रता बनाए रखते है 
जो व्यक्ति रिश्तो का आदर करते है ऐसे व्यक्ति को ही सभी प्रकार की विद्याये तथा कुशलताए प्राप्त होती है 
और उन्हें वासुदेव श्रीकृष्ण एवम इंद्र देव जैसे देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है