स्नेह
जब ममत्व का रूप धारण करता है
तो
ममता कहलाता है
स्नेह
जब करूणा का रूप धारण करता है
तो
मानवता कहलाता है
स्नेह
जब पीठ थपथपाकर अाशीष देता
है
तो
पित्रत्व का
भ्रात्रत्व
का
भाव कहलाता है
स्नेह
जब मधुर भावना से अाहार खिलाता
है
अाहार
मे सौहार्द सदभाव मिलाता है
तो
भीतर से उर्जा को बाहर ले अाता
है
स्नेह
के कई रूप होते है
कभी
शीतल सी भावना तो कभी तेज
अौर
अोज की धूप होते है
स्नेह
कभी भगवान क्रष्ण बनते है
राधा
के रूप मे सम्वेदना के तार
बुनते है
स्नेह
बनता है शबरी तो ,झुठे बैर
श्रीराम खाते है
जात
-पात अस्पर्श्यता
की दूरियो को वे मिटाते है
योगेश्वर
श्रीक्रष्ण का समस्त जीवन
स्नेह से भरा है
स्नेह
शुन्य व्यक्तित्व तो मरा है अधमरा
है