Total Pageviews

Monday, June 25, 2012

कर्म की आराधना

भगवान् विष्णु के जितने भी अवतार हुए है 
सभी कर्म के अवतार है
भौतिक जगत में कर्म तीन प्रकार की क्षमता से किये जाते है 

प्रथम ज्ञान द्वितीय धन तृतीय बल  
तीनो क्षमताये कर्म के बिना जड़ अवस्था में रहती है ज्ञान का प्रसार न किया जाय तो 
ज्ञान मात्र पुस्तकों एवं ग्रंथो में ही सजा हुआ रहता है ज्ञान का सक्रिय स्वरूप गुरु, शिक्षक,विद्यालय ,महाविद्यालय ,विश्वविद्यालय ,प्रयोगशालाए ,चिकित्सालय ,अनुसंधान केंद्र होते है 
इसलिए ज्ञान के देव ब्रह्मा जी अपने ज्ञान को चारो दिशाओं में चार मुखो के द्वारा विस्तारित करते है
द्वितीय क्षमता 
धन, धन की क्षमता चाहे कितना भी अधिक हो यदि वह सक्रिय अवस्था में न हो 
तो एक स्थान पर पड़ा रहता है 
ऐसा धन गड़ा हुआ धन या अवैध स्त्रोतों से अर्जित कर गुप्त रूप से रखा गया  धन होता है 
ऐसा धन काले धन की श्रेणी का  भी हो सकता है ऐसा धन जड़ अवस्था वाला धन होता है 
धन का कर्म  एवं सक्रिय स्वरूप  उद्योग ,कृषि ,व्यापार ,इत्यादि होता है 
जिसमे धन निरंतर प्रवाहमान होता है 
 इसलिए धन की देवी लक्ष्मी की अष्ट रूपों  रूपो में पूजा की जाती है 
जिस किसी रूप में पूजा की जाती है 
उसी रूप में फल देती है 
तृतीय क्षमता बल होती है
 बलवान पहलवान व्यक्ति यदि वीर ,साहसी ,दिन दुर्बल की मदद न करे तो 
उसका बल जड़ अवस्था वाला होता है 
 सक्रिय बल कर्म रूप होकर सदा अन्याय का प्रतिकार हेतु तत्पर रहता है 
तीनो प्रकार की क्षमताओं के सक्रिय रूप में ईश्वरीय तत्व समाहित होता है
 तीनो क्षमताओं के सक्रिय एवं कर्म रूप की चैतन्यता प्राप्ति हेतु 
हम ईश की साधना एवं देव दर्शन करते है 
जिससे हमारी क्षमताओं में चेतना उत्पन्न होती है और हम अपनी क्षमताओं का पूरा उपयोग कर पाते है यदि हम अपनी क्षमताओं में पूर्ण कार्य कुशलता चाहे तो हमें ओजस्विता के देव भगवान् सूर्य की भी आराधना करनी चाहिए
 क्योकि ओजस्विता से किये कर्म से ही उत्कृष्ट परिणाम प्राप्त हो सकते है
पवन पुत्र हनुमान भगवान् शिव का  कर्म रूप है
 पवन पुत्र उसी प्रकार से सक्रिय रहते थे
  जिस प्रकार से पवन निरंतर गतिमान रहती है उन्होंने अपने कर्म में पूर्ण कार्य कुशलता विकसित करने हेतु भगवान् सूर्य से ओज प्राप्त किया था