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Saturday, December 3, 2016

बुरा जो देखन मैं चला

कबीर दास जी के  दोहे की
 यह पंक्ति बहुत से संत दोहराते है कि
 "बुरा जो देखन जो चला मुझसे बुरा न कोय "
ऐसा कह कर व्यक्ति को
 आत्म आलोचना करने हेतु प्रेरित करते है 
परन्तु व्यवहारिक जगत में
 वास्तव में ऐसा नहीं होता 
कुछ लोग जो मूलतः अपने स्वभाव से बुरे होते है
 वे अकारण ही अच्छे लोगो को हानि पहुचाते रहते है
 हम कभी कभी यह सोचने का 
तलाशने का बहुत प्रयास करते है
कि  जाने अनजाने हमसे ऐसी कौनसी त्रुटि हो गई 
जो सामने वाला व्यक्ति हमारा अहित चाहता है 
कारण तलाशने पर भी पता नहीं चलता 
यदि यह दोहा वर्तमान परिस्थितियो में 
सार्थक होता तो हम अच्छे और बुरे लोगो में 
कोई भेद ही नहीं कर सकते 
हम कोई भी क्षति होने पर 
बुराई की पहचान न कर 
मात्र आत्म विश्लेषण कर लेते ऐसा कर हम बुरे व्यक्तियों को बुरे कर्मो से विमुख न कर 
उन्हें और अधिक स्वच्छंद और उच्छृंखल ही बनाते रहेगे और स्वयम संत्रास झेलते रहेंगे
कबीर दास का यह दोहा 
वर्तमान परिस्थितियों के लिए 
अधिक प्रासंगिक नहीं रहा है 
कबीर दास जी ने इस दोहे की जब रचना की थी
 तब कि परिस्थितियां भिन्न थी 
लोग अकारण भले व्यक्तियों को संत्रास नहीं देते थे परन्तु वर्तमान में ऐसे लोगो की बहुतायत है
 जो अकारण दूसरे व्यक्तियों को क्षुद्र स्वार्थो की पूर्ति हेतु संत्रस्त करते रहते है
 तब भले व्यक्तियों के लिए यह कहना कि 
"बुरा जो देखन मैं चला मुझसे बुरा न कोय"
 उचित प्रतीत नहीं होता है

Sunday, November 6, 2016

राक्षस भगवान् विष्णु की तपस्या क्यों नहीं करते थे?

प्राचीन काल में राक्षस ब्रह्म देव और महादेव शिव की तपस्या कर शक्ति और अमरता का वरदान प्राप्त कर लेते थे \शक्तियों का दुरूपयोग कर संसार में अत्याचार कर आतंक फैलाते है ऐसे दैत्यों का दमन करने के लिए भगवान् विष्णु अवतार धारण करते थे |विचारणीय प्रश्न यह है कि आखिर दैत्य राक्षस भगवान् विष्णु की तपस्या कर वरदान क्यों प्राप्त नहीं करते थे ।इस संबंध में यह कहना उचित होगा कि भगवान विष्णु सृष्टि के पालन कर्ता है | किसी भी व्यक्ति या कृति निर्माण या ध्वंस करना आसान होता है| उसका सरंक्षण संपोषण संवर्धन कठिन होता है ,इसलिए वे अपने दायित्व अनुरूप सृष्टि की संरक्षण संपोषण करने वाली सज्जन शक्तियों के रक्षण हेतु प्रतिबध्द थे वे व्यक्ति की तपस्या को नहीं उनके आशय को देखते है, सदभावना पूर्ण आशय और लोक कल्याण के उद्देश्य रखने वाले भक्त ह्रदय वाले साधक की अल्प साधना ही उन्हें प्रसन्न करने के लिए पर्याप्त है |जबकि महादेव शिव समदर्शी है उन्हें साधक के आशय की अपेक्षा साधक की तपस्या की तीव्रता प्रभावित कर सकती शिव जी स्वभाव से भोले भी है उनकी उदारता की कृपा दुष्ट सज्जन सभी व्यक्तियों पर सामान रूप से बरसती है \ब्रह्मदेव सृष्टि के निर्माता है इसलिए एक बार वे वरदान देने के बाद यह नहीं देखते है \उसका परिणाम क्या होगा इसलिए दैत्य प्राचीन काल में भगवान् विष्णु की साधना न कर महादेव शिव और ब्रह्मदेव की तपस्या कर शक्तियां और अमरता प्राप्त कर लेते थे

Friday, October 28, 2016

लक्ष्य

सौंदर्य उसके लिए है
जो दृष्टि समन्न हो
वैचारिक दृष्टि से नहीं विपन्न  हो
आनंद उसके लिए है
जिसके भीतर अमृत तत्व है 
सकारात्मक सोच हो रमा हुआ सत्व है 
लक्ष्य उनके लिए 
जिन्हें दिखते उतुंग शिखर हो 
बहता हो श्रम सीकर प्रतिभा प्रखर हो
ज्ञान उसके लिए जिन्हें जिज्ञासा हो
सदा रहे अतृप्त अनंत पिपासा हो 
जीवन उसके लिए जो गतिमान हो 
रचते रहे निरंतर अनेक प्रतिमान हो

माँ शारदा का वाहन हंस क्यों है ?

हंस  माँ शारदा का वाहन  है 
परन्तु माँ शारदा ने हंस को ही 
वाहन के रूप में क्यों चुना 
 यह विचारणीय प्रश्न  है
हंस का स्वभाव होता है 
वह दूध  में जल होने पर दूध को पी लेता है 
जल को  छोड देता है 
कंकड़ और मोती के मिश्रण में से 
मोती को चुग लेता है कंकड़ को छोड़ देता है 
सत्पुरुषों का लक्षण यही होता है कि 
 सत  और असत्य का भेद कर
 असत्य  छोड कर सत्य को ग्रहण का लेते है 
ज्ञान और अज्ञान में भेद कर 
अज्ञान को छोड़ ज्ञान को ग्रहण कर लेते है 
सत्पुरुषों का आचरण उज्ज्वल  होता है 
 इसलिए हंस का रूप भी धवल होता है
माँ शारदा उसी व्यक्ति की बुध्दि में 
विराजमान होती है 
हंस के समान सत  और असत  में
 भेद करने में समर्थ होता है 
ऐसे व्यक्ति की बुद्धि नीर क्षीर विवेक से युक्त होने से उसे सहज ही आविष्कारक दृष्टि प्राप्त होती है 
हंस के समान कल्पना और सृजना के पंख 
उसे उपलब्ध होते है

Monday, October 17, 2016

गणित

गणित सबसे कठिन विषय माना जाता है |
 विद्यार्थी गणित की जटिलता से 
भयभीत रहते है| 
परन्तु जीवन में कोई भी व्यक्ति गणित से बच नहीं सकता चाहे कला वाणिज्य या जंतु विज्ञानं हो | 
व्यक्ति गणित से जितना बचने का 
प्रयास करता उतना ही उलझता चला जाता है | 
भूगोल में कौनसी रेखाएं कितने डिग्री से गुजराती है यह गणित की सहायता के बिना असम्भव है| 
अर्थ शास्त्र में महंगाई की दर क्या है ?
मुद्रा स्फीति मुद्रा का अवमूल्यन 
किस प्रकार से होता है | 
इसमें भी गणित का महत्व होता है| 
इतिहास में कौनसे सन  में 
कौनसी घटना घटित हुई 
कौनसा शासक किसका समकालीन था
 इस तथ्य को अंक गणित के ज्ञान से ही 
समझा जा सकता है| 
हिंदी भाषा में तो छंद रचना ही 
मात्राओं के संतुलन आधारित है 
किस छंद की किस पंक्ति में कितनी मात्राएँ होगी 
यह पूर्व निर्धारित रहता है
 सांख्यकी जैसा कलात्मक विषय ही 
गणितीय ज्ञान पर आधारित है| 
चित्रकला हो या वास्तु शास्त्र हो सममिति और त्रिकोणमिति के ज्ञान के बिना
 इनकी  कल्पना करना मुश्किल है |
 इसलिए बंधुवर गणित विषय मत भागो गणित में जीवन की कला है |

Sunday, July 31, 2016

बादशाह हलवाई मंदिर


बादशाह हलवाई मंदिर जबलपुर जो बारहवी शताब्दी का होकर कलचुरी कालीन है इस मंदिर की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें शिवलिग भगवान् के साथ पञ्च मुखी शिव जी की संगमरमर के पत्थर पर उत्कीर्ण अत्यंत सुन्दर और चैतन्य प्राण प्रतिष्ठित प्रतिमा है गर्भ गृह में शिव जी के परिवार में गणेश जी की नर्मदा जी सरस्वती जी पार्वती जी और भैरव बाबा की मुर्तिया भी विराजमान है मंदिर के प्रांगण में नंदी जी और स्तम्भो पर सभी प्रकार के देवी देवताओ की मुर्तिया उत्कीर्ण है
मंदिर एक पहाड़ी पर स्थित है जहा जाने के लिए ऊंचा सीढ़ीनुमा दुर्गम मार्ग है

Friday, July 29, 2016

दक्ष प्रजापति और शिव

दुष्ट लोग अकारण सज्जनो से 
शत्रुता का भाव रखते है
उसका परिणाम क्या होता है 
यह शिव एवम् दक्ष प्रजापति का प्रसंग बताता है 
दक्ष प्रजापति शिव जी के श्वसुर थे 
जो अकारण शिव जी से घृणा करते थे 
जबकि शिव जी ने कभी भी ऐसा कार्य नहीं किया 
जिससे दक्ष प्रजापति को कष्ट पहुचा हो 
शिव जी सदैव संतुष्ट हर प्रकार की परिस्थितियों में 
प्रसन्न रहने वाले लोक कल्याण की 
भावना रखने वाले देवता है 
शिव जी ने कभी भी दक्ष कन्या 
सती को प्राप्त करने का  प्रयत्न नहीं किया 
इसके विपरीत दक्ष कन्या ने स्वयं ही 
तपस्या कर शिव जी का वरण किया था 
इसके बावजूद शिव के प्रति दुर्भावना पूर्ण विचारो के कारण दक्ष प्रजापति दुराग्रह से ग्रस्त रहे 
परिणाम क्या हुआ दक्ष प्रजापति को
 वराह मुख प्राप्त हुआ 
इसलिए अकारण शत्रुता भाव 
सज्जनो के प्रति नहीं रखना चाहिए यह शिव दक्ष प्रजापति की यह कथा सन्देश देती है 

Monday, July 18, 2016

गुरु और गुरुत्व

गुरु और गुरुत्व एक दूसरे के पर्याय है 
गुरुत्व शब्द से आशय आकर्षण से है 
आकर्षण  व्यक्ति या पदार्थ दोनों में हो सकता है 
पदार्थ का आकर्षण व्यक्ति में 
विकार और व्यसन पैदा करता है
परन्तु गुरु सत्ता का आकर्षण व्यक्ति में 
विचार संस्कार उतपन्न करता है
गुरु का गुरुत्व अपने शिष्य को अपनी और खींचता है 
जिस व्यक्ति के व्यक्तित्व में आकर्षण हो 
वही किसी को अपनी और खिंच सकता है
आकर्षण भी कई प्रकार के हो सकते है 
परन्तु गुरु का आकर्षण सात्विक अलौकिक होता है 
व्यक्ति को जो व्यक्ति पतन से उत्थान की 
और ले जाने वाला होता है 
पूर्णिमा के दिन गुरु पूजन का इसलिए विधान होता है 
क्योकि गुरु ही वह व्यक्ति होता है 
जो व्यक्ति को पूर्णता प्रदान करता है

Wednesday, July 13, 2016

सीख

उपयोगिता हाथी बैल ऊंट और घोड़े गधे
से सीखनी चाहिए
निर्भीकता सिंह से सीखनी चाहिए
प्रीती और एकता की प्रतीती पक्षी वानर और हाथी से ग्रहण करनी चाहिए
वफादारी अश्व और कुत्तो से सीखनी चाहिए
स्फूर्ति चीता और घोड़े से सीखनी चाहिए
कायरता दुर्बलता तो भेड़ बकरियो की तरह समूह में जरूर रहती है परन्तु मुसीबत आने पर तितर बितर हो जाती है

Saturday, July 9, 2016

पलायन या वैराग्य

कुछ लोग कर्म से पलायन कर अपनी जिम्मेदारियो से मुह मोड़ कर वैराग्य का वेश धारण कर लेते है
कर्म क्षेत्र में असफलता के कारण धारण वैराग्य वास्तविक अर्थो में वैराग्य न होकर पलायन होता है
ऐसे व्यक्ति जहा जाते वहा अपनी अकर्मण्यता का बोध कराते है व्यक्ति चाहे कही भी रहे किसी भी देश में किसी भी वेश में रहे कर्म कभी उसका पीछा नहीं छोड़ता यह सत्य है कि कर्म का स्वरूप अवश्य बदल जाता है कर्म शील व्यक्ति द्वारा धारण किया गया वैराग्य ही सच्चा वैराग्य होता है व्यक्ति के में शुचिता हो तो वह किसी भी वेश में रहे देश में रहे वैरागी है

Sunday, July 3, 2016

उत्पादकता

किसी देश की जी.डी. पी,उस देश के नागरिको की उत्पादक शक्ति पर निर्भर होती है भारतीय नागरिको की
उत्पादक शक्ति का दुनिया लोहा मानती है उत्पादकता के पैमाने अलग अलग हो सकते है सैनिको की उत्पादकता उनके शौर्य में समाहित होती है विद्यार्थी की उत्पादकता उसके अध्ययन और विषय समझ पाने की सामर्थ्य में खिलाड़ियों की उत्पादकता देश के लिए उनके अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन पर निर्भर होती परन्तु विदेशियो एक षड्यंत्र के तहत हमारी उत्पादकता को कम किया है कभी क्रिकेट के माध्यम से कभी सोशल वेबसाइट के माध्यम से युवा पीढ़ी को अभ्यस्त बना कर नशे का आदि बनाकर देश एवम् समाज विरोधी शक्तियों हमारे नागरिको की उत्पादक शक्ति का ह्रास कर रही है हमें इन सारी नकारात्मक परिस्थितियों से उबरना होगा

Wednesday, June 29, 2016

अभ्यास

स्वाध्याय से ज्ञान की प्राप्ति होती है
परन्तु अभ्यास से ज्ञान के उपयोग का कौशल्य प्राप्त होता है
ज्ञान जब तक व्यवहारिक उपयोगिता प्राप्त नहीं कर पाता
वह विज्ञान का रूप धारण नहीं करता है
इसलिए विज्ञान में प्रयोग होते है
प्रयोग से अभ्यास किया जाता है
निरंतर अभ्यास से विषय में विशेषञता दक्षता प्राप्त होती है
अभ्यास ही गुरु है अभ्यास ही अनुभव है 
अभ्यास से प्रावीण्य है अभ्यास ही एकलव्य है
गुरु केवल मार्ग दर्शन दे सकता है 
परन्तु ध्येय की प्राप्ति अभ्यास से ही संभव है 

Wednesday, June 22, 2016

स्वाध्याय

स्वाध्याय व्यक्ति को निरंतर प्रबुध्द बनाता है 
स्वाध्याय भीतर के अन्धकार को दूर कर 
ज्ञान की रोशनी लाता है 
स्वाध्याय अहम का भाव दूर करता है 
विद्वता  का मिथ्याभिमान चूर चूर करता है 
स्वाध्याय जिज्ञासाएं शांत करता है 
अशांत और अतृप्त कामनाओं से मुक्ति प्रदान करता है 
स्वाध्याय योग मार्ग का वह सूत्र है 
जो आत्मा को परमात्मा से मिलन का एक कारण है 
स्वयं का आत्मनिरीक्षण है
 भ्रांतियों का करता निवारण है 
स्वाध्याय में वह सुख है 
जो हर किसी को नहीं मिल पाता  है 
स्वाध्याय का अनुरागी व्यक्ति 
अध्ययन से ज्ञान की शुध्दि 
और अध्यापन से शिक्षा का उजाला फैलाता है 
स्वाध्याय में स्वयं की चेतना है 
बाह्य और आंतरिक जागरण है 
जीवन में भौतिकता संजो लेना का और आध्यात्मिकता पाने का व्याकरण है 
इसलिए जीवन में मित्र स्वाध्यायी बनो 
ज्ञान के दीप  निरन्तर जलाते हुए 
नित नए सपनो को बुनो

Thursday, June 16, 2016

कोटा, राजस्थान



कोटा राजस्थान का एक प्रमुख औद्योगिक एवं शैक्षणिक शहर है। यह चम्बल नदी के तट पर बसा हुआ है। राजधानी जयपुर से लगभग २४० किलोमीटर दूर सडक एवं रेलमार्ग से। जयपुर-जबलपुर राष्ट्रीय राजमार्ग १२ पर स्थित। दक्षिण राजस्थान में चंबल नदी के पूर्वी किनारे पर स्थित कोटा उन शहरों में है जहां औद्योगीकरण बड़े पैमाने पर हुआ है। कोटा अनेक किलों, महलों, संग्रहालयों, मंदिरों और बगीचों के लिए लोकप्रिय है। यह शहर नवीनता और प्राचीनता का अनूठा मिश्रण है। जहां एक तरफ शहर के स्मारक प्राचीनता का बोध कराते हैं वहीं चंबल नदी पर बना हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्लान्ट और न्यूक्लियर पावर प्लान्ट आधुनिकता का एहसास कराता है कोटा प्राकृतिक सौंदर्य से भरा पूरा है जिसकी सुंदरता का अनुभव आप इस वीडियो को देखकर करेंगे ।

Sunday, May 8, 2016

अक्षय

अक्षय तृतीया हिन्दू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण दिवस है इस दिन बिन मुहूर्त के विवाह किये जा सकते है
बिना मुहूर्त के वाहन संपत्ति क्रय की जा सकती है
अक्षय अर्थात जिसका क्षय न हो व्यक्ति जीवन बहुत कुछ पाता है कमाता बसाता है परन्तु सब कुछ व्यय या क्षय हो जाता है बचता कुछ भी नहीं है अक्षय तृतीया उस प्रव्रत्ति का प्रतीक है जिसमे श्रम है संचय है सदाचार है शुचिता है समृध्दि है सौंदर्य है सृजन है जहा संस्कार नहीं सदाचार नहीं वहा  श्री सम्पदा अक्षय नहीं क्षरण होता रहता है अक्षय हमें यह बताती है कि  विशुध्द साधनों द्वारा अर्जित संचय ही अक्षय रहता है 

Thursday, April 28, 2016

समय

कस्तूरी और दुर्गा दोनों पति पत्नी  न्यायालय बाहर खड़े अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे |उनके रघु द्वारा साथ हुई मारपीट में जो बयान देने के लिए आये थे |थोड़ी देर में उन्हें पुकारा गया भीतर न्यायालय कक्ष में पहुचे रघु के वकील साब जो तारीख बढ़ाने के लिए खड़े थे |इतने देर में ही कस्तूरी और दुर्गा से रहा नहीं गया और बोल पड़े की साहब हम राजीनामा करना चाहते है |जज साहब और वकील साहब दोनों स्तब्ध हो उन्हें देख रहे थे| जज साहब ने पूछा आप राजीनामा क्यों करना चाहते हो| दोनों पति पत्नी बोल पड़े की दिन भर मजदूरी करने के बाद हमें शाम को रोटी मिलती है |हमें इतना वक़्त कहा है कि लड़ाई झगड़ा में अपना समय खराब करे |यह सुनकर अभियुक्त रघु की आँखों में पश्चात्ताप के आंसू आ गए सोच रहा था ,कि एक तरफ तो जिसने अकारण कस्तूरी और दुर्गा के साथ मारपीट की और दूसरी तरफ वे कस्तूरी दुर्गा के पास आजीविका के साधन जुटाने की व्यस्तता में लड़ाई झगड़े का भी समय नहीं है

Sunday, April 17, 2016

महाकाली का श्याम वर्ण क्यों?

महाकाली का वर्ण काला क्यों होता है ?
महाकाली के काले वर्ण का रहस्य क्या है?
महाकाली का उद्भव इसलिए हुआ था कि
अपराजेय दैत्य को परास्त करना देवताओ के
लिए असम्भव हो गया था दैत्य को निशाचर
भी कहा जाता है अर्थात उनकी शक्तिया रात्रि
अधिक प्रभावी हो जाती थी रात के अँधेरे का
लाभ उठाकर अमानवीय अत्याचार करते थे
धोखे देवताओ पर प्रहार कर उन्हें पीड़ित करते थे
इसलिए दैत्यों का परास्त करने उनका समूल नाश
करने के लिए देवी ने श्याम वर्ण धारण किया
और निशाचरों को गहन अंधेरो में छुपने का मौका
नहीं दिया उनका चुन चुन कर वध किया

Thursday, April 14, 2016

नवरात्रि

नवरात्रि देवी का पूजन है
जप है तप है आराधना है
नवरात्रि नवल सृजन है
नवीन संकल्प है कर्म साधना है
नवरात्रि क्रिया शक्ति है महामंत्र है
ओंकार मात्रा है
आंतरिक शक्तियो का जागरण है
आध्यात्मिक यात्रा है
नवरात्रि गहन अन्धकार में
उजाले की आस है
भौतिक जगत के मध्य
नवधा भक्ति है ज्ञान की प्यास है
नवरात्रि भावनाओ का एक क्रम है
संवेदनशीलता है
नवीन अनुभूतिया पाने का उपक्रम है
नवरात्रि मातृ शक्ति का वरदान है
देवी का गुणगान है देवीयता धारण कर ही
व्यक्ति बना महान है

Wednesday, April 6, 2016

आया अब सिंहस्थ

  संत जहां पर मस्त हुए ,दुर्जन दल है पस्त   
 महाकाल उज्जैनी में आया अब सिंहस्थ 
हरसिध्दि भी हरी भरी हरे भरे हो स्वस्थ 
महाकाल उज्जैनी में आया अब सिंहस्थ 
मंगल दंगल हुआ करे मिटे शंख से कष्ट 
महाकाल उज्जैनी में आया अब सिंहस्थ 
संतो का अब संग रहे कभी नहीं हो भ्रष्ट 
महाकाल उज्जैनी में आया अब सिंहस्थ 
सिंह के जैसा भाव रहे गज सा हो मदमस्त 
महाकाल उज्जैनी में आया अब सिंहस्थ 
क्षिप्रा रेवा मिल गई मिले संत से गृहस्थ 
महाकाल उज्जैनी में आया अब सिंहस्थ 
संता बंता ढूँढ  रहे सिध्द मिला न हस्त 
महाकाल उज्जैनी में आया अब सिंहस्थ 
भीड़ में भक्ति  ग़ुम गई कटी जेब से त्रस्त
महाकाल उज्जैनी में आया अब सिंहस्थ
अब तक शाही भोज किया अब शाही स्नान करो
महाकाल उज्जैनी में आया अब सिहस्थ

Wednesday, March 30, 2016

अंत

अंत में संत है महंत है पूर्ण विराम है
अंत में मृत्यु का सत्य है श्रींराम है
अंत में कथा का श्रवण वैकुण्ठधाम है
अंत में क्षीणता दुर्बलता बुढ़ापा है
अनुभव की गहराई है नभ् नापा है
अंत में वैराग है संन्यास है शोक है
शाश्वत और सनातन है श्लोक है
अंत में लक्ष्य है शिखर है सागर गहरा है
अनंत ब्रह्माण्ड के भीतर तम ठहरा है
अंत में कृष्ण गीता है रामायण है
कर्तव्य से विमुख क्यों ? समरांगण है
अंत में लय है प्रलय है ताण्डव है
नर में नारायण सत्य में पांडव है
अंत में नाद है निनाद है नृत्य उत्तम है
शिव का डमरू बजता डम डम है
इसलिए अंत से आरम्भ है
आरम्भ से अंत है
सृष्टि का बीज है बीज में बसंत है

Tuesday, March 29, 2016

आरम्भ और ऊँ

आरम्भ में ॐ है नम: शिवाय है
आरम्भ ही आदि अनादि भीमकाय है
आरम्भ में गंध स्पर्श झंकार है
भीगी हुई अनुभूतिया है निर्विकार है
आरम्भ में कठिनाईया है 
विघ्न है बाधा है
आरम्भ हो गया तो कार्य सफल हो गया आधा है
आरम्भिक अवस्था में
हर व्यक्ति सकुचाता है घबराता है
भय और संकोच के कारण आगे नहीं बढ़ पाता है
आरम्भ में उत्साह है रंग है तरंग है
होती विषम समस्याएं पर जीती जाती जंग है
आरम्भ में अर्पण तर्पण है समर्पण है
आरम्भिक प्रयासों से ही दिख जाता 
भावी का दर्पण है
इसलिए आरम्भ होना चाहिए
 उत्तम और भव्य है
उत्तम और सार्थक प्रयासों से 
मिल जाता गंतव्य है
आरम्भ में साधना है परिश्रम है 
तो जीवन योग है
तृप्त हो जाती सभी कामनाये
 मिल जाता आरोग्य है

Sunday, March 27, 2016

स्वास्थ्य लक्ष्मी और श्रीसूक्त

लोग माँ लक्ष्मी को मात्र धन प्रदान करने वाली देवी के रूप के में ही जानते है ऋग्वेद के श्रीसूक्त को धन ऐश्वर्य प्राप्त करने का माध्यम ही समझते है किसी का भी ध्यान अपने और अपने परिवार के स्वास्थ्य पर नहीं जाता जबकि स्वास्थ्य को धन से बड़ा धन माना जाता है आज हम श्रीसूक्त के उस मन्त्र की और आपका ध्यान आकृष्ट करायेगे जो लक्ष्मी जी से अच्छे स्वास्थ्य की कामना करता है श्री सूक्त मन्त्र  जो इस प्रकार है 
" मनस: कामनाकूति वाच: सत्यमशीमहि 
पशूनां रूप मन्नस्य मयि श्री:श्रयतां यश :
अर्थात हे लक्ष्मी मैं आपके प्रभाव में मानसिक इच्छा एवं सकल्प वाणी की सत्यता गौ आदि पशुओं के रूप {दुग्ध दध्यादि एवं यव  बीहयादी }एवं अन्नो के रूप {अर्थात भक्ष्य भोज्य चोष्य लेह्य चतुर्विध भोज्य पदार्थ }इन सभी पदार्थो को प्राप्त करू ,सम्पत्ति और यश मुझमे आश्रय ले अर्थात मैं  लक्ष्मीवान और कीर्तिवान बनू । 
उपरोक्त मन्त्र में यह कामना की गई है की हे लक्ष्मी जी मुझे ऐसा स्वास्थ्य दीजिये की में सभी प्रकार के भोज्य पदार्थ ग्रहण कर सकु अर्थात चूसने चबाने खाने वाले वाले रस द्रव्य ठोस पदार्थो को दांतो से चबा सकु जिव्हा से रस लेते हुए उन्हें पचा सकू ।अप्रत्यक्ष रूप से उक्त मन्त्र से अच्छे स्वास्थ्य की कामना की गई है जिस व्यक्ति का स्वास्थ्य अच्छा होगा वह अच्छी पाचन तंत्र का होगा ही जिस व्यक्ति के हारमोन एंज़ाइम सक्रीय होंगे वह सभी प्रकार का आहार ग्रहण कर पायेगा ।लक्ष्मी जी इस स्वरूप को स्वास्थ्य लक्ष्मी संबोधित किया जाता है जिस व्यक्ति के स्वयं तथा परिवार का स्वास्थ्य अच्छा होता है वहा बीमारिया नहीं रहती ।बीमारिया दरिद्रता का कारण होती है ।बीमारियो से मुक्त व्यक्ति और परिवार होने से धन का अपव्यय नहीं होता है 

Thursday, March 24, 2016

सत्य की लड़ाई

सत्य की लड़ाई में
आदमी अकेला होता है
सूरज को कभी दीपक दिखाया नहीं जाता
जल का अर्पण किया जाता है
दीपक तो चन्द्रमा को दिखाया जाता है
अँधेरे को भागने के लिए
उजाला लाने के लिये
अँधेरे को दूर कर जो
जग में उजाला भर दे
उसे दिवाकर कहते है
दिवाकर की शरण में
सत्य दूत रहते है
अपराध अन्धकार की तलाश करता है
अँधेरे के भीतर गुप् चुप रहता है
उजाला जगमगाते ही खूब रोता है
अपना अस्तित्व खोता है
इसलिए अन्धकार मिटाने के लिए
सच का उजाला होता जरुरी है

Tuesday, March 22, 2016

मनुष्यता के मापदंड -३

गुण - मनुष्यता गुणों से विकसित होती हे सामान्य व्यक्ति गुण रहित होता हे उसे अवगुणी कहते है गुणों का मनुष्यता के लिए उतना ही महत्व हे जितना की अन्न ,जल , और स्वास  का अवगुणी व्यक्ति मात्र शरीर रूपी बोझ के अतिरिक्त और कुछ नहीं गुण शब्द व्यापकता लिए हुए हे उक्त बताए गुणों के साथ साथ और भी गुण हे जो व्यक्ति को श्रेष्ठ मनुष्य बनाते है कला संस्कृति, संगीत , नृत्य , अभिनय , विज्ञान , नाट्य , शिल्प भोजन-पाक कला  जैसे गुण मनुष्य को प्रकृति में विशेष स्थान देते है एकमात्र मनुष्य ही है जिसके पास चिंतन और कर्म करने की स्वतंत्रता यह गुण निहित है ।
धर्म  - धर्म से आशय मंदिर पूजा नियमों के निर्वहन से नहीं है नाही माला फेर देने से या दान- यज्ञ करना धर्म की शुद्ध परिभाषा  हे धर्म तो कर्म से प्रकृति - स्वभाव से संलग्न है जल का धर्म है शीतलता ,अग्नि का धर्म है दाहकता, वायु का धर्म है प्राण सतत बहना, पृथ्वी अपने धारण धर्म को निर्वहन करती है वृक्ष का अपना एक धर्म है प्रकृति में सभी का एक नियत धर्म है और उसी का ईमानदारी से निर्वहन करना कर्मयोग है जैसा कि गीता में भगवान ने स्पष्ट किया है ठीक इसी प्रकार व्यक्ति को मनुष्यता के मापदंड पर खरा उतरने के लिए अपने नियत धर्म का ईमानदारी से पालन करना चाहिए
उस धर्म को हम इस श्लोक से समझ सकते है-
"ईश्वर अंश जीव अविनाशी चेतन सरल सहज सुख राशि"
जीव ईश्वर का अंश हे वह अविनाशी हे अत: उसे सदैव इसी भाव मे रहना चाहिए वह चेतनता, सरलता और सभी के लिए सदैव सुख का माध्यम बनकर रहना यही उसका धर्म है
" येषा न: विद्या न: तपो न: दानं  न ज्ञानं न: शीलं न: गुणों न: धर्म ते  मृत्युलोके भार भवति: मनुष्य रूपेण: पशु चरंति"

मनुष्यता के मापदंड -२

ज्ञान - विद्या और ज्ञान यह दोनों भले ही एक लगे परन्तु यह दोनों है अलग - अलग यह अवश्य हे कि यह दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हे परस्पर जुड़े हुए पर एक नही
विद्या को प्राप्त किया जाता है और ज्ञान का उपयोग विद्या का परिणाम ज्ञान हे दोनों में बहुत सूक्ष्म भेद हे ज्ञान व्यक्ति को मनुष्य बनाने वाली वह शक्ति हे जिसके उपयोग से मनुष्य स्वयं अपना और विश्व का कल्याण करने का सामर्थ्य रखता हे विद्या ग्रहण कर उससे उत्पन्न ज्ञान का उपयोग कर मनुष्य बहुत सकारात्मक प्रभाव पैदा कर सकता हे जो मनुष्यता को नई ऊँचाईया  देने मे सक्षम है
शील - इस एक ही शब्द में दो गुणों का सामूहिक समावेश है  पहला है चरित्र यह वह गुण है जो व्यक्ति को मात्र मनुष्य ही नही एक श्रेष्ठ मनुष्य बनाता हे चरित्र ही मनुष्य की संचित एकमात्र सम्पति हे जो यद्दपि भौतिक सुख नही क्रय कर सकती परन्तु  व्यक्ति को हजारों धुली - कणों के मध्य प्रकाशित रत्न के रूप में आलोकित करने में सक्षम हे चरित्र से मनुष्यता आती हे यह व्यक्ति को वह शक्ति देता हे जो उसे विकट परिस्थितियों मे भी विचलित नहीं होने देता
दूसरा हे विनम्रता यह मनुष्य का आभूषण हे विनम्रता से मनुष्य लोकपूजक बन जाता है अहंकार मनुष्य का क्षत्रु हे विनम्रता से अहंकार का नाश हो जाता हे और मनुष्य सदैव के लिए आत्मशातिं  (inner peace)
को प्राप्त हो जाता है
                                            शेष .........

Monday, March 21, 2016

होली

होली एक पर्व नहीं
सामाजिक क्रान्ति है
सामाजिक क्रान्ति जो आर्थिक
असमानता को दूर कर करे
सामाजिक क्रान्ति जो जातीयता के
दानव का दहन कर दे
होली एक आंदोलन है
आंदोलन जो सत्य को ग्रहण करे
असत्य को त्यागने को
अहम् के हिरण्यकश्यप का हनन करे
होली एक क्रीड़ा है े
क्रीड़ा वह जो मन की पीड़ा का शमन करे
होली एक अनुभव है आत्मीयता का
आत्मीयता जो मन को आल्हाद दे
आधुनिक प्रह्लाद का सरंक्षण करे
होली एक पिपासा है
पिपासा जो प्रेम का  वरण करे
ईर्ष्या और घृणा का क्षरण करे

Saturday, March 19, 2016

मनुष्यता के मापदंड

कोई भी व्यक्ति तब तक मनुष्य कहलाने योग्य नहीं होता जब तक उसमें शास्त्रों में बताए गये सात गुणों का अभाव हो वह सात गुण है
विद्या - विद्या से आशय किताबी ज्ञान , डिग्रीयों के बडंल या रटंत विद्या से नहीं अपितु उस विद्या से है जो व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करने वाली हो उसे सत-असत का बोध कराती हो उसे राष्ट्र -समाज का आदर्श नागरिक बनाती हो जो उसे अपने ही परिवार  का उत्तम सदस्य बनाती हो सारत: विद्या वह है जो व्यक्ति को मनुष्य बनाती हो
तप - दूसरा गुण है तप यहाँ तप से मतलब हिमालय कि किसी कन्दरा या गहन वन मे एक टांग पर खड़े होकर किये जाने वाले तप से नहीं हे अपितु मनुष्य द्वारा समाज जीवन में किये गए उसके पुरुषार्थ से है पुरुषार्थी पुरूष का हर कर्म स्वत: में ही तप हे चाहे वो कर्म  राष्ट्र के लिए हो समाज के लिए अथवा परिवार  की उन्नति के लिए किया गया हो  पुरुषार्थी व्यक्ति का हर कर्म तप ही होता हे बस उसमें  "में " की भावना का का पूर्ण रूप से अभाव होना चाहिए
दान - किसी भिखारी को जेब में शेष रह गयी रेंजगारी दे देना अथवा पुण्य के स्वार्थ में किया गया कोई एेसा दान जो सतही हो दान नही है , प्रतिकर  की  भावना से किया गया दान दान हो ही नहीं सकता
दान की परिभाषा तो बहुत व्यापक होती है दान का महत्व तभी है जब दाता को उस सम्बधित दान की उतनी ही अधिक आवश्यकता हो जितनी की दान लेने वाले को हे सारत: दान वह है जो प्रतिकर ,स्वार्थ रहित हो तथा जो दाता के लिए उतना ही महत्व रखता हो जितना की वह अदाता के लिए महत्वपूर्ण है  जो स्वयं कष्ट पाकर भी परहित के लिए किया गया हो वही दान व्यक्ति को मनुष्य बनाती है
                                               शेष भाग .........

Friday, March 18, 2016

चिंतन क्या है ?

चिंतन चित का विश्राम  है
मन की तृष्णाओं का होता विराम है 
चिंतन सृजन का स्त्रोत है 
निर्माण की चेतना है 
चिंतन दुस्साहस नहीं साहस है 
अध्यात्म की ऊर्जा है 
खुल जाते है पंच कोष 
जुड़ जाते है सद विचार 
विस्फुरित होती कुण्डलिनी
खुल जाता पुर्जा पुर्जा है
चिंतन चिंता का करता हरण  है 
मिट जाते है सभी विकार 
 अनाहद के भीतर होता अमृत तत्व
तरल अमृत का होता निरंतर झरण  है
चिंता में होती वेदना है 
चिंतन से जगती  संवेदना है
चिंतन का वरदान उसी को मिलता है 
जिसके चित्त सरोवर में 
ह्रदय का कमल खिलता है 
चिंतन मोक्ष दायिनी गंगा 
पुण्य सलिला मैया नर्मदा है 
मिल जाती है कष्टो से मुक्ति 
आनंदित रहते सर्वदा है 
इसलिए चिंतन उसी को मिला है 
जो भगवद  सत्ता के समीप है 
जप तप  का लंबा सिल सिला है
चिंतन एक भगत  की भक्ति है 
साधक की शक्ति है 
चिंतन के रथ पर होकर सवार 
जीवन के  कर्म क्षेत्र से हर युक्ति मिल सकती है 
चिंतन वासना का विराम है 
किंकर्तव्य विमूढ़ मन का घनश्याम है 


Wednesday, March 16, 2016

सीमित विश्वास और जीवन प्रबंधन

विश्वास करना या न करना 
व्यक्ति व्यक्ति पर निर्भर करता है 
परन्तु किसी पर एकदम से 
 अविश्वास कर लेना 
और हर किसी पर विश्वास करना 
भी उचित नहीं है 
जो व्यक्ति हर किसी पर
 जरुरत से अधिक विश्वास कर लेता है
 विश्वास घात उसी व्यक्ति के साथ होता है
 और जो व्यक्ति किसी पर भी
 विश्वास नहीं करता 
वह सदा संशयग्रस्त रहता है 
जीवन में व्यवहारिक दृष्टि से असफल रहते है
एक बहुत पुरानी कहावत है 
सीमित संपर्क ,सीमित विश्वास, 
सर्वोपरि आत्मविश्वास ,
सीमित विश्वास का तात्पर्य यह है कि
 किसी कार्य के लिए कौनसा व्यक्ति उपयुक्त है
 यह निर्धारित करने के बाद
 किसी व्यक्ति की कार्य क्षमता 
और उसके व्यक्तिगत गुणों का आकलन कर 
उस पर विश्वास करना 
जीवन प्रबंधन का यही सर्वश्रेष्ठ मार्ग है 
इसी मार्ग से समूह का नेतृत्व कर 
दक्षता पूर्वक समूह के
 प्रत्येक सदस्य से कार्य लिया जा सकता है

Saturday, March 12, 2016

गति एवम् उपासना

गतिशीलता जीवन का पर्याय है
गति में प्राण में है
जो गतिमान नहीं है वह निश्चेत है
नदी गतिशील है तो निर्मल है
गतिशील नदी में जल परिशोधन की क्षमता है
स्थिर होने पर नदी का जल प्रदूषित है
इसी प्रकार से बहती वायु में ताजगी है
मंद या स्थिर वायु में बैचेनी है घबराहट है
विचार शून्यता व्यक्ति को चिंता प्रदान करती है
नवीन विचारो का सृजन जीवन को
नई दिशा और ऊर्जा प्रदान करते है
विज्ञान ने गति के कई नियम
और सिध्दांत प्रतिपादित किये
गति के स्त्रोत का अनुसंधान करने हेतु  तत्वों को
अणु परमाणु इलेक्ट्रान प्रोटान न्युट्रान में
विभाजित किया
परन्तु इलेक्ट्रान प्रोटान को ऋण आवेशित
और धन आवेशित ऊर्जा
कहा से निरन्तर प्राप्त हो रही है
इस पहेली को सुलझा नहीं पाये
प्राचीन ऋषि महर्षियो ने गति के
ऊर्जा के स्त्रोत को अध्यात्म में खोजा
साधना के बल पर उन्हें प्राप्त करने की
प्रक्रियाएं बताई ।उन्ही प्रक्रियाओ में से
शक्ति की उपासना महत्वपूर्ण है
नवरात्रि में इसलिए जीवन में
ऊर्जा भरने के लिए
गति की उपासना की जाती है
क्रिया के तीनो रूपों के स्त्रोत एवम्
प्रेरक शक्तियो से चैतन्यता प्राप्त की जाती है

लोकतंत्र से राजतंत्र तक

सत्ता  के शीर्ष से
 अव्यवस्था दिखाई नहीं देती है
सत्ता के आस पास जो आभा मंडल होता है
वह शासक को वास्तविकता देखने ही नहीं देता है
सत्ता पर बैठते ही व्यक्ति पर 
अहंकार सवार हो जाता है
बहुत से सत्ताधीशो को देखा है 
जो किसी जमाने में जिन मुद्दो के लिए संघर्ष रत थे
सत्ता के शीर्ष पर बैठते ही 
उनकी प्राथमिकताएं बदल गई
सत्ता शोषण का प्रतीक तब बन जाती है
 जब शासक निज सुखो को 
अधिक महत्व देने लगता है
प्राचीनकाल में अच्छे शासक वेश बदल कर जनता के बीच उनके सुख दुःख देखने चले जाते थे
वर्तमान में सुरक्षा  चक्र के नाम पर 
शासक जनता से दूर हो चुके है
निर्वाचित होते ही जनता की 
समस्याओ से पूरी तरह कट जाते है
क्षुद्र और निहित स्वार्थ साधना में लिप्त हो जाते है
उच्च शब्दावलियों में लम्बे व्याख्यान 
भ्रांतिपूर्ण नारेबाजी में उलझकर कोई भी 
लोकतांत्रिक प्रक्रिया से निर्वाचित नेता 
खुशामदी किस्म के व्यक्तियों के 
पाखंडपूर्ण महिमामंडन से गौरवान्वित हो
 आत्ममुग्ध हो जाता है 
और यही से उसके पतन की शुरुआत होती है 
 

Tuesday, March 8, 2016

आदि शंकराचार्य और मंडन मिश्र

 
आदि शंकराचार्य शिव के अंश माने जाते है |
जब देश कई प्रकार के अंध विश्वासो 
कर्म कांडो से घिरा हुआ था |
वैदिक ज्ञान लुप्त होने लगा था |
 ब्राह्मण वर्ग स्वयं को श्रेष्ठ और शास्त्रो के ज्ञाता समझने लगा  था  |
शास्त्रो के अर्थ अपने स्वार्थ के अनुरूप निकाल कर धर्म को शोषण का साधन बनाने लगे था  |
तब आदि शंकराचार्य के रूप में 
भारतीय आध्यात्मिक क्षितिज पर 
एक ऐसा महापुरुष पाया |
जिन्होंने सनातन वैदिक संस्कृति को 
जीवन दान दिया |
धर्म को सभी प्रकार के आग्रहों से मुक्त किया 
विशुध्द वैदिक मार्ग समाज को बताया |
                तत्कालीन समय में शास्त्रार्थ के द्वारा पाखण्ड और गलत परम्पराओ से 
मुक्त करने हेतु 
उन्होंने काशी के महत्वपूर्ण विद्वानों को 
 पराजित कर उन्हें अपना अनुयायी बनाया |
 सम्पूर्ण देश में अपनी धर्म ध्वजा को 
फहराने के बाद जब देश में एक मात्र विद्वान पंडित मंडन मिश्र शेष रहे |
तब आदि शंकराचार्य 
मंडन मिश्र की नगरी मंडलेश्वर पहुचे 
और उन्हें अपने अकाट्य तर्कों से परास्त किया |
मंडन मिश्र की भार्या द्वारा 
शास्त्रार्थ की चुनोती देने पर 
उन्होंने गृहस्थाश्रम संबंधी प्रश्नो के 
जबाब देने के लिए परकाया प्रवेश का मार्ग अपनाया |गृहस्थाश्रम का ज्ञान लेकर 
पुनः निज शरीर में प्राण प्रविष्ठ कर 
गृहस्थाश्रम के सभी प्रश्नो के जबाब दिए |
आज भी मंडलेश्वर में गुप्तेश्वर नामक शिव मंदिर स्थित है |
जहाँ आदि शंकराचार्य ने गृहस्थाश्रम 
संबंधी प्रश्नो के उत्तर देने के लिए 
परकाया प्रवेश हेतु निज देह से प्राण निकाले 
और पुनः प्रविष्ठ किये थे |
वीडियो में दर्शित स्थल उन पलो का साक्षी है जो 
गुप्तेश्वर महादेव के नाम से 
मण्डलेश्वर नगर में जाना और पहचाना जाता है |  

Monday, March 7, 2016

शिवरात्रि

भारतीय संस्कृति में
 वैराग्य का अत्यंत महत्व है
वैराग्य में वह बल है 
जो अनंत आकाश में निहित 
 शिव सत्ता तक पहुंचा सकता है
शिव क्या है ?
शिव वैराग्य के प्रतीक है 
पार्वती क्या है ?
पार्वती समर्पण का भाव है 
शिवरात्रि वह पर्व है
 जो वैराग्य को अपने सारे सुख
 समर्पित कर दे वह उत्सव है
शिवरात्रि पर पार्वती संग शिव ने विवाह रचाया था 
पार्वती रूपी समर्पण ने सुख अपने अर्पित कर
 कठोर तप  से वैराग्य को पाया था 
वैराग्य शिव तत्त्व की नीव है 
भोग में रोग है 
अभिलाषा में प्राप्ति में है 
प्राप्ति में कहा सुख है 
प्राप्ति में रहा दुःख है 
,प्राप्ति से परमात्मा विमुख है 
इसलिए शिव को पाना है 
तो जीवन में वैराग्य को लाओ 
सेवा समर्पण के अलंकृत हो 
शिवरात्रि पर्व पर 
आत्म बल का जागरण करते जाओ 



Saturday, March 5, 2016

अकर्मण्ये साधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन

कर्मशील लोग कर्म को पूजा मानते है 
परन्तु अकर्मण्य और निकम्मे लोग 
कर्म को शर्म का विषय मानते है
कोई सा भी काम उनको दे दो 
उन्हें लगता है 
वे जिस काम के लिए बने 
वो यह काम नहीं है जो उन्हें दिया गया है
 जिस काम को करने के लिए 
उनका इस जगत में आविर्भाव प्रादुर्भाव हुआ है 
वह एक विशेष और अद्भुत कार्य है
 जिसके लिए ईश्वर ने उनका चयन किया है 
इसलिए वे दूसरा काम क्यों करे? 
छोटे मोठे काम करने में उन्हें संकोच होता है 
छोटेपन का अहसास होता है 
उनका संकल्प है कि
 वे जब भी कोई काम करेंगे, बड़ा काम करेंगे
 उनके काम से उन्हें पहचाना जाएगा 
तब लोगो को पता चलेगा कि 
यह बड़े काम का आदमी है 
ऐसी सोच के बल पर वे कितने ही 
छोटे छोटे कामो को करने से बच जाते है 
और अपने इस आदर्श वाक्य का 
कि " अकर्मण्ये साधिकारस्ते माँ फलेषु कदाचन "
को चरितार्थ कर 
स्वयं को कृतार्थ समझते है
इसी विचार धारा से प्रेरित हो 
उन्होंने कितनी हाथ में आई
 छोटी छोटी नोकरिया छोड़ दी उन्होंने 
यह अतिशयोक्ति नहीं होगी लात मार दी 
उन्होंने ऐसी नोकरिया जो 
उन्हें छोटेपन का अहसास दिलाती थी
बड़े बड़े विषयो पर लंबे लंबे व्याख्यान 
चर्चाये परिचर्चाएं में जो उन्हें सुख मिलता है 
वे बड़प्पन के अहसास से भरपूर है 
बहुत अच्छा लगता है
 उन्हें यह सुनकर कि 
अपने देश इस प्रतिभा का कोई पारखी नहीं
 इसलिए प्रतिभाये विदेश पलायन कर रही है