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इन्सान दूसरो से वह क्यो चाहता है ?
जो दूसरो को दे नही सकता
मृदु व्यवहार जो उसने दूसरो के साथ नही किया
स्वयम के लिये क्यो चाहता है ?
दूसरो को समस्याओं को देकर
दूसरो की समस्याओं मे
अपने लिये समाधान क्यो तलाशता है ?
दूसरो के जीवन पथ पर कांटे बिछाकर
क्यो अपेक्षा करता है ? कि उसका जीवन
फूलो से भरा रहे
क्यो सारा जग मरूथल की तरह हो
और उसका जीवन हरा भरा रहे
जबकि वह यह अच्छी तरह से जानता है
कि क्रिया की प्रतिक्रिया निश्चय होती है
नकारात्मक मानसिकता विध्वंस के बीज बोती
उसमे स्रजन शीलता कभी भी अंकुरित नही हो सकती है
स्वस्थ एवम सकारात्मक मानसिकता के सहारे ही
इन्सान को सब कुछ मिल पाया है
किसी भी व्यक्ति ने अच्छा बोया है
तो अच्छा फल ही पाया है
क्योकि अच्छाई के प्रतिरुप का ही उत्थान हुआ है
सर्वोच्च शिखर पाया है
उत्क्रष्ट आचरण ही आनंद का आधार है
निक्रष्ट एवम उच्छ्रंखल व्यक्ति ने निरंतर पाया अपमान और तिरस्कार है
कहा मिल पायी प्रतिष्ठा और अधिकार है
इसलिये जो अपने लिये चाहते हो वह पथ दूसरो के लिये भी चुनो
जो घोसला अपने लिए चाहते हो वैसा ही दूसरो के लिए भी बुनो
जटिलता तोड़ो कुटिलता छोड़ो कम बोलो ज्यादा सुनो
इसी व्यवहार में ही ब्रह्मा विष्णु महेश है
इसी मुद्रा में स्थित रहे सदा गणेश है