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Saturday, July 6, 2013

चरित्र और नियति -लघु कथा

 एक अत्यंत  रूपवान कन्या के माता  पिता ने बहुत प्रयास के पश्चात  कन्या के लिए  सुयोग्य  और गुणवान   वर  की तलाश  की|  विवाह  उपरान्त  कन्या अपने  पति  के घर  पहुंची  पति  व्याख्याता  के पद  पर  कार्यरत  था|  व्याख्याता  के निवास  स्थान  के पास  एक  व्यक्ति निवास करता था जो राजस्व विभाग में  पटवारी के रूप में पदस्थ  था , वह  न तो रूप में था न गुणवान था परन्तु भ्रष्ट आचरण में लिप्त होकर अवैध धनार्जन  की और  उन्मुख था | रूपवान  कन्या उस व्यक्ति  की आय को देख कर विचलित  हो  उठी  अपने  पति को  छोड़  उस व्यक्ति को  अपना  सर्वस्व लुटा कर  उसके साथ  रहने  लगी  कालान्तर  में  लोकायुक्त  के  दल ने पटवारी  को रिश्वत  के आरोप  में धर  दबोचा पटवारी  अपनी  आजीविका  खो चुका  था और रूपवान  कन्या धन  लिप्सा  में अपना  चरित्र  

दान से धन की शुध्दि

 जब हम यह कहते है दान से धन की शुध्दि होती है 
तब यह भी प्रतिध्वनित होता है की
 अशुध्द साधनों से अर्जित धन भी दान योग्य हो सकता है
 इस प्रकार के विचार से 
धर्म और समाज सेवा के क्षेत्र में  
ऐसे धन के  दान की प्रवृत्ति बदती है 
जो शोषण और अपराध  द्वारा अर्जित किया गया हो 
तब धर्म और समाज सेवा क्षेत्र में इस प्रकार की घटनाएं होने लगती है जो पहले न तो कभी पढ़ी और न कभी सुनी थी
 इसलिए इस दृष्टि कोण में बदलाव आवश्यक है 
अन्यथा धर्म और समाज सेवा के क्षेत्र में
 कालेधन का प्रवेश होता जाएगा 
ऐसी स्थिति में धर्म व्यवसाय का रूप धारण कर लेगा
 वर्तमान में धार्मिक क्षेत्र में हो रहे पतन का कारण 
इसी प्रकार की व्यवसायिक प्रवृत्ति है 
यदि हमें धर्म को बचाना है तो 
इस मानसिकता पर अंकुश लगाना होगा 
और  दान में ऐसे धन को ही बढ़ावा देना होगा 
जो शुध्द हो पवित्र हो 
शास्त्रों में दान को यग्य  की संज्ञा दी गई है 
यग्य में जो द्रव्य के रूप में  घृत की अवस्था होती है 
वही अवस्था दान में धन की होती है 
यग्य में अशुध्द घृत का प्रयोग नहीं किया जा सकता 
तो फिर दान में अशुध्द साधनों से अर्जित धन को 
कैसे लिया जा सकता है