सृष्टि कितनी ही बार नष्ट हो ब्रह्मा जी उसे बार बार निर्मित करते है
ब्रह्मा जी से यह सूत्र सीखने को मिलता है की हमें कभी निराश नहीं होना चाहिए
जितनी बार हमारे प्रयत्न निष्फल हो हार न मानते हुए पुन नव निर्माण में लग जाना चाहिए
ब्रह्मा जी का निवास कमल पुष्प पर होता है कमल को पंकज भी कहा जाता है
पंकज संस्कृत के पंक +अज दो शब्दों से मिल कर बना होता है
अर्थात वह पुष्प जिसका जन्म कीचड़ से हुआ हो
हम सभी यह जानते है की कमल तालाब अर्थात सरोवर में उगते है
जिस तालाब में जितना कीचड़ होता है वहा उतनी ही मात्रा में कमल खिलते है
तालाब का जल स्थिर जल होता है अर्थात प्रवाहमान जल में कमल का अंकुरित होना असम्भव होता है
ब्रह्मा जी का आसन कमल होना यह दर्शाता है की असुविधाओ के कीचड़ में प्रतिभाये पैदा होती है
इतिहास साक्षी है की विश्व में जितने में प्रतिभावान महान व्यक्ति उत्पन्न हुए है
वे घोर दरिद्रता ,असुविधाओ में ,विषम परिस्थितियों में पले बड़े है
ज्ञान अर्जन हेतु कठिन साधना और परिश्रम करना पड़ता है प्रतिभाये साधनों की मोहताज नहीं होती
जिस प्रकार स्थिर जल में कमल पैदा होता है
उसी प्रकार प्रतिभा संपन्न व्यक्ति को भी ज्ञान अर्जन हेतु अपनी दैनिक दिन चर्या को संयमित और मति को स्थिर रखने की आवश्यकता होती है
जीवन में स्थिरता प्राप्त किये बिना किसी भी संकल्प का साकार नहीं किया जा सकता है
इस प्रकार ब्रह्मा जी के चार मुख होते है
इसका आशय यह है व्यक्ति को ज्ञान के सभी क्षेत्रों में जिज्ञासु होना चाहिए
जहा से जैसे भी हो ज्ञान के प्रति जिज्ञासा शांत करने के प्रयत्न करने चाहिये
इसलिए ब्रह्मा जी तरह जो व्यक्ति असुविधाओ के कीचड़ में उत्पन्न प्रतिभा रूपी कमल आसन पर विराजमान होकर ज्ञान के अध्ययन से सभी विषयो समग्र ज्ञान प्राप्त करने के लिए के लिए प्रयत्न रत होता है
वह स्वयं का ही नहीं समस्त लोगो का हित साधने की क्षमता रखता है
ऐसा व्यक्ति उसके स्वप्न कितनी बार टूटे फिर नए संकल्प के साथ नवीन सृजन कर्म करने को उद्यत हो जाता है