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Sunday, January 17, 2016

आक्रोश एवं क्रोध

आक्रोश वैचारिक विरोध  और अन्याय 
शोषण के कारण परिलक्षित होता है 
क्रोध व्यक्तिगत स्वार्थ पर
  आघात होने कारण प्रगट होता है 
दीर्घ कालीन आक्रोश क्रान्ति और परिवर्तन का 
कारक होता है
असहमति की उग्रता मानसिक हिंसा का रूप
 धारण करती  है
 तब क्रोध में परिणित हो जाती  है 
क्रोध जब शाब्दिक हिंसा का रूप धारण 
तब विवाद और कलह में परिणित होता है 
क्रोध जब दीर्घ काल तक बना रहता है तो वह शारीरिक आक्रमण के  रूप में सामने आता है 
हिंसा में परिवर्तित हो जाता है 
व्यक्ति जब क्रोधित होता है 
तो वह भीतर में पल रही 
नकारात्मक ऊर्जा का मात्र
 २०प्रतिशत ही क्रोध के कारण ही प्रगट हो पाती है 
इसका आशय यह है करने वाला व्यक्ति क्रोध अभिव्यक्त करने के पूर्व
 अपने भीतर भीषण नकारात्मक ऊर्जा को झेलता है 
जो अभिव्यक्त होने वाले क्रोध से 
५ गुना अधिक होती है 
भीतर की नकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति के
 हारमोन को विपरीत रूप से प्रभावित करती है 
व्यक्ति धीरे धीरे रोग ग्रस्त होने लगता है
 शारीरिक दौर्बल्य को प्राप्त कर हीनता की 
भावना से ग्रस्त हो जाता है
अध्यययन में सामने आया है 
की शारीरिक रूप से पुष्ट व्यक्ति 
क्रोध की प्रवृत्ति अल्प होती है 
क्रोध के एक स्वाभाविक प्रक्रिया है 
परन्तु क्रोध को सृजनात्मक दिशा दी जाए 
तो व्यक्ति में अपरिमित क्षमताये उदित हो जाती है