आक्रोश वैचारिक विरोध और अन्याय
शोषण के कारण परिलक्षित होता है
क्रोध व्यक्तिगत स्वार्थ पर
आघात होने कारण प्रगट होता है
दीर्घ कालीन आक्रोश क्रान्ति और परिवर्तन का
कारक होता है
असहमति की उग्रता मानसिक हिंसा का रूप
धारण करती है
तब क्रोध में परिणित हो जाती है
क्रोध जब शाब्दिक हिंसा का रूप धारण
तब विवाद और कलह में परिणित होता है
क्रोध जब दीर्घ काल तक बना रहता है तो वह शारीरिक आक्रमण के रूप में सामने आता है
हिंसा में परिवर्तित हो जाता है
व्यक्ति जब क्रोधित होता है
तो वह भीतर में पल रही
नकारात्मक ऊर्जा का मात्र
२०प्रतिशत ही क्रोध के कारण ही प्रगट हो पाती है
इसका आशय यह है करने वाला व्यक्ति क्रोध अभिव्यक्त करने के पूर्व
अपने भीतर भीषण नकारात्मक ऊर्जा को झेलता है
जो अभिव्यक्त होने वाले क्रोध से
५ गुना अधिक होती है
भीतर की नकारात्मक ऊर्जा व्यक्ति के
हारमोन को विपरीत रूप से प्रभावित करती है
व्यक्ति धीरे धीरे रोग ग्रस्त होने लगता है
शारीरिक दौर्बल्य को प्राप्त कर हीनता की
भावना से ग्रस्त हो जाता है
अध्यययन में सामने आया है
की शारीरिक रूप से पुष्ट व्यक्ति
क्रोध की प्रवृत्ति अल्प होती है
क्रोध के एक स्वाभाविक प्रक्रिया है
परन्तु क्रोध को सृजनात्मक दिशा दी जाए
तो व्यक्ति में अपरिमित क्षमताये उदित हो जाती है