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Friday, December 23, 2011

समुद्र मंथन से निकला चिंतन


वृहद् लक्ष्य के लिए बहुत अधिक श्रम एवम बल की आवश्यकता होती है
किन्तु वृहद् लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लम्बे संघर्ष  असीम धैर्य भी चाहिए
जब वृहद् लक्ष्य के कई लोग साथ हो तो सभी प्रकार के व्यक्तियों में से किस व्यक्ति की क्या भूमिका रही
उस  भूमिका  से उस व्यक्ति के आचरण का पता चल जाता है
लक्ष्य प्राप्त होने पर लक्ष्य में उसका क्या अंश रहना चाहिए यह देखा जाता है
प्राचीन काल में  समुद्र मंथन का प्रसंग आता है
समुद्र मंथन में अर्थात वृहद् पैमाने पर अमूल्य प्रकार
की कृतियों को प्राप्त करने का उपक्रम था  जिसमे भारी श्रम बल की आवश्यकता थी इसलिए उस युग में विद्यमान समस्त शक्तियों की आवश्यकता थी
रचनात्मक कार्य में जिसका भी सहयोग मिले लेना चाहिए 
उस समय उस व्यक्ति की पृष्ठभूमि को ध्यान में नहीं रखना चाहिए
इसलिए देव दानव सभी गंधर्व किन्नर नाग यक्ष इत्यादि जन समूहों के समग्र प्रयास की आवश्यकता थी
सभी समूहों ने संगठित होकर समुद्र का मंथन प्रारंभ किया 
जिसमे समय समय पर तामसिक प्रवृत्तियों ने अपनी दुष्प्रवृत्तियों को प्रदर्शित भी किया 
समुद्र मंथन का निरिक्षण पथ प्रदर्शन भगवान् विष्णु कर थे  
वे एक एक व्यक्ति की भूमिका एवम उनके आचरण का मूल्यांकन कर समुद्र मंथन में प्राप्त प्रतिफल में उनके अंश को भी निर्धारित करते जा रहे थे 
दैत्य शक्ति के पास बल तो अत्यधिक था 
किन्तु उनके आचरण को दृष्टिगत रखते समुद्र मंथन से प्राप्त प्रतिफल मिलने पर प्रतिफल उनके हाथो में जाने पर दुरुपयोग की संभावना अधिक थी 
इसलिए समुद्र मंथन में दैत्य शक्ति के पर्याप्त सहयोग के बावजूद समुद्र मंथन के दौरान जो उनकी प्रव्रत्तिया उजागर हुई उसे देखते हुए समुद्र मंथन की सफलता के उपरान्त समुद्र मंथन से प्राप्त प्रतिफल से असुरो को वंचित रखा गया 
आशय यह है अच्छे कार्य में सभी लोगो का सहयोग लेना चाहिए
किन्तु अच्छे कार्य से प्राप्त होने वाली उपलब्धियों को गलत हाथो में जाने से लोक हित में जाने रोकना भी आवश्यक है
इससे यह भी स्पष्ट होता है की वृहद् लक्ष्य में सभी लोगो के अच्छे बुरे आचरण सामने आ जाते है
जो लक्ष्य प्राप्त होने मिली उपलब्धियों व् संसाधानो समुचित विभाजन में सहायक होती है