पुरातन काल में राक्षस ऋषि मुनियों को परेशान करते थे
उनके अग्निहोत्र यज्ञादि अनुष्ठानो में विघ्न उत्पन्न करते थे
त्रेता युग में इस समस्या से मुक्ति पाने के लिए
उनके अग्निहोत्र यज्ञादि अनुष्ठानो में विघ्न उत्पन्न करते थे
त्रेता युग में इस समस्या से मुक्ति पाने के लिए
महर्षि विश्वामित्र ने अयोध्या के राजा दशरथ से
उनके पुत्र राम और लक्ष्मन को माँगा था
इस प्रसंग को हम भले सामान्य वृत्तांत मान ले
इस प्रसंग को हम भले सामान्य वृत्तांत मान ले
परन्तु इस वृत्तांत में
वर्तमान में विद्यमान समस्याओं के समाधान है
वर्तमान में भी श्रेष्ठ कर्म में रत रहने वालो को
वर्तमान में विद्यमान समस्याओं के समाधान है
वर्तमान में भी श्रेष्ठ कर्म में रत रहने वालो को
दैत्य और राक्षस प्रवृत्ति वाले लोग
तरह तरह से परेशान करते है
महर्षि विश्वामित्र अर्थात ऐसा स्वभाव
महर्षि विश्वामित्र अर्थात ऐसा स्वभाव
जो विश्व को मित्रवत बना सके
हमें ऐसा स्वभाव स्वयं का विकसित करना चाहिए
जिससे हमारे मित्रो की संख्या में वृध्दि हो सके
ऐसे स्वभाव को प्राप्त करने के पश्चात हमें
हमें ऐसा स्वभाव स्वयं का विकसित करना चाहिए
जिससे हमारे मित्रो की संख्या में वृध्दि हो सके
ऐसे स्वभाव को प्राप्त करने के पश्चात हमें
हमारी तन मन की अयोध्या के दशरथ से
श्रीराम रुपी धनुर्धर को मांगना होगा
श्रीराम रुपी धनुर्धर को मांगना होगा
तब ऐसा श्रीराम रूपी धनुर्धर अपने भ्राता
लक्ष्मन अर्थात लक्ष्य जिसेश्रेष्ठ उद्देश्य भी कहते है के माध्यम से सद प्रव्रत्ति रूपी ऋषि मुनियों को सरंक्षण करते है