Total Pageviews

Wednesday, August 22, 2012

व्यक्तित्व

व्यक्तित्व से व्यक्ति बनता है
व्यक्ति का व्यक्तित्व चरित्र से बनता है     
कई सदगुण जब व्यक्ति मे एकत्रित होते है
तब व्यक्ति का चरित्र बनता है
व्यक्ति के व्यक्तित्व मे जब कोई एक
सदगुण का प्रवेश होता है
तो उसके साथ दूसरे सदगुण भी स्वत: अवतरित होने लग जाते है
उदाहरणार्थ-किसी व्यक्ति मे सत्य वादिता का गुण हो तो
व्यक्तिगत जीवन मे ईमानदारी,कर्म के प्रति निष्ठा,
इत्यादि गुण उसमे सहज रूप से पाये जाते है
नियमित जीवन ऐसा गुण है
जो व्यक्ति को अनुशासित बनाये रखता है
बाद मे जाकर यह व्यक्तिगत अनुशासन शनै: शनै:सामाजिक
अनुशासन तदुपरान्त राष्ट्रिय अनुशासन मे परिवर्तित हो जाता है
नियमित जीवन व्यक्ति को शारीरिक एवम मानसिक रुप से
स्वस्थ एवम तनाव मुक्त रखता है
परिणाम स्वरुप व्यक्ति की कार्य क्षमता मे व्रध्दि होती है
कार्य कुशलता विकसित होती है
जीवन तनाव मुक्त होने से स्वभाव शांत होता है
और व्यक्तित्व क्रोध से मुक्त होता है
तन मन प्रफुल्लित एवम प्रसन्न चित्त रहता है
जिससे परिवारिक एवम कार्यालयीन वातावरण अनुकुल बना रहता है
जिससे चमत्कारिक परिणामो की प्राप्ति होती है
इसलिये यह आवश्यक नही कि व्यक्ति सर्व गुण सम्पन्न हो
आवश्यक यह है कि व्यक्ति कोई एक सदगुण हो
पर वह सदगुण ऐसा हो कि वह सम्पूर्ण जीवन एवम परिवेश को आलोकित कर दे