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Saturday, October 3, 2015

एकांत

आज रमेश बहुत थका हारा था 
कोचिंग क्लास से आकर उसने हाथ मुंह धोया और चाय पी 
काफी दिन हो गए थे 
उसे अपने साथियो के साथ 
रूम पार्टनर के रूप में रहते 
माँ बाप ने बड़ी उम्मीदों के साथ बड़े शहर पढने के लिए भेजा था की बेटा कलेक्टर बनेगा 
रमेश की भी महत्कांक्षा थी की वह आई.ऐ ,एस न सही राज्य प्रशासनिक परीक्षा ही उत्तीर्ण का ले 
पर यह उसका तीसरा साल था प्रारंभिक परीक्षा में तो वह उत्तीर्ण हो जाता था
 परन्तु मुख्य परीक्षा में असफल | दोस्त ऐसे की वे उसे कम्पनी दे सकते थे पर हौसला नहीं 
रमेश को इसी में संतोष था की वह प्रयास तो कर रहा है देखते देखते उसके कई सहपाठी अपने 
माता पिता के साथ रहते पढ़ाई करते हुए कई अच्छे प्रशासनिक पदो पर आसीन हो चुके थे 
पर रमेश था कि  उसे अपने परिवार से अलग रह कर पढ़ाई करने के लिए उपयुक्त वातावरण उचित कोचिंग 
और एकांत चाहिए था | इस दौड़ भाग कोलाहल की जिंदगी में उसे महानगरीय मित्रो के बीच कहा एकांत मिल पाता  रमेश की आँखे खुल चुकी थी कि सफलता के लिए एकांत और कोचिंग की नहीं एकाग्रता और स्वाध्याय की आवश्यता थी