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Wednesday, December 30, 2015

जिज्ञासा एवम् मूल्यांकन

सीखना एक सतत प्रक्रिया है कोई व्यक्ति यह नहीं कह सकता है कि वह परिपूर्ण हो चूका है अब सीखने की कोई उसे कोई आवश्यकता नहीं है सीखता वही है जिसमे जिज्ञासा अर्थात जानने सीखने की लगतार प्रवृत्ति होती है जो व्यक्ति यह मान लेता है कि वह परिपूर्ण हो चुका है वह समग्र रूप से कुशलता प्राप्त हो चुका है उसमे उत्थान की सम्भावनाये समाप्त हो जाती है व्यक्ति कितना भी कुशल हो जाए उसके कार्य में दोष निकाला जा सकता है जो लोग दूसरे लोगो का मूल्यांकन करते है और भिन्न भिन्न प्रकार की कमिया निकालते है वही कार्य उनसे करवाये जाने पर वे भी उतनी ही त्रुटियों करते पाये जायेगे क्योकि कार्य का मूल्यांकन आदर्श परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते किया जाता है यथार्थ के धरातल वास्तविक समस्याएं कल्पना से परे पाई जाती है उनका हल तत्कालिक व्यवहारिक परिस्थितियों को देख कर तत्क्षण निर्णय लेकर ही किया जा सकता है इसलिए जब भी किसी व्यक्ति के कार्य का मूल्यांकन करो स्वयं को उस व्यक्ति के स्थान पर रखते हुए करो कि आप उस व्यक्ति के स्थान पर होते तो क्या करते ऐसी स्थिति जो भी मूल्यांकन करेंगे वह वास्तविक और सटीक मूल्यांकन होगा