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Wednesday, October 30, 2013

महा सरस्वती ,महालक्ष्मी , महाकाली

महा देवियो में महा सरस्वती महालक्ष्मी  
महाकाली मान्य है 
महालक्ष्मी  महा सरस्वती  और महाकाली के मध्य में
 विराजित होती है 
सभी लोग इस चित्र को देखते है पूजते है 
 परन्तु महालक्ष्मी  महा सरस्वती  और महाकाली के मध्य में 
विराजित क्यों रहती है ?
इस रहस्य को जानने और समझने का 
कोई प्रयास कोई नहीं करता 
प्राचीन काल से हमारे ऋषि मुनि तरह तरह से
 जीवन में अध्यात्मिक उपलब्धियों के साथ -साथ 
भौतिक उपलब्धियों को सहेजने के सूत्र बताते आये है 
हमने उन्हें समझने और सीखने के पूर्व ही 
पूजना  प्रारम्भ कर दिया 
आज इस महालक्ष्मी  महा सरस्वती  और महाकाली के चित्र को ही परिभाषित करने का प्रयास करते है 
महालक्ष्मी धन कि प्रतीक होती है 
महाकाली शक्ति और महा सरस्वती विद्या ज्ञान 
और सद बुध्दि कि प्रतीक  होती  है
जब  धन को बुध्दि का सरंक्षण प्राप्त होता है 
तो उसका संवर्धन होता है 
और जब धन को शक्ति का सरंक्षण प्राप्त होता है 
तो उसका सुरक्षा होती है 
ऐसा धन जिसे शक्ति का सरंक्षण प्राप्त नहीं हो
 उसका  हरण  हो जाता है 
अपराधी तत्वो के हाथो पहुच जाता है 
बुध्दि और ज्ञान का सरंक्षण जब धन को प्राप्त होता है 
धनवान व्यक्ति उसे सही प्रकार से निवेश करता है 
व्यसनो में लिप्त नहीं होता 
सही प्रकार से निवेश किये जाने से 
धन में संवर्धन होने लगता है 
तब धन सम्पदा में दिन दुगुनी 
और रात चौगुनी वृध्दि होने लगती  है 
इसलिए महालक्ष्मी  को   महा सरस्वती  और महाकाली कि सुरक्षा दी गई है 

Monday, October 28, 2013

नेतृत्व

नेतृत्व  वह गुण है 
जो समूह  की  शक्ति को जाग्रत करता है 
संगठित शक्ति देश हो समाज या कोई संस्था हो 
 में क्रांतिकारी परिवर्तन ला सकती है 
नेतृत्व का सम्बन्ध लोग राजनीति से जोड़ते है 
जबकि यह तो नेतृत्व का एक पक्ष है 
नेतृत्व के कई आयाम होते है 
नेतृत्व प्रदान करने वाले व्यक्ति को 
नेता के रूप सम्बोधित किया जाता है 
जबकि कोई औद्योगिक का प्रबंधक 
जब मजदूरो यंत्रियों उपयंत्रियो के कार्य कौशल्य का 
बेहतरीन इस्तेमाल करता है 
प्रत्येक श्रमिक यंत्री लिपिक कि 
व्यक्तिगत क्षमताओ के बीच समुचित सामंजस्य
 समन्वय स्थापित करता है 
तो समग्र  व्यक्तिओ कि क्षमताओ एकत्रितकरण से 
जो ऊर्जा प्रस्फुटित होती है 
तो देखते देखते ही छोटी सी औद्योगिक ईकाई 
विशाल औद्योगिक समूह बन जाता है 
अकेले व्यक्ति द्वारा अपनी प्रतिभा के अनुसार कार्य करना आसान है 
बहुत से व्यक्ति व्यक्तिगत क्षमता के कारण 
किसी क्षैत्र में निपुणता से कार्य करते है 
परन्तु नेतृत्व क्षमता के अभाव  में वे 
बहुत से लोगो से कार्य नहीं ले पाते है 
नेतृत्व के गुण से परिपूर्ण व्यक्ति भले 
अपनी कार्य क्षमता का अच्छा प्रदर्शन  न कर पाये पर 
वह अपनी टीम के प्रत्येक सदस्य कि क्षमता का 
समुचित दोहन कर कीर्तिमान बना लेते है 
                    अच्छे नेतृत्व के परिवेश के ऐसे कई उदाहरण है 
                     उनसे प्रेरणा ग्रहण करने कि आवश्यकता है
 

Friday, October 25, 2013

कल्पना

नदी कि धारा कि तरह हो जीवन 
जिसमे बहता हुआ हो आज 
निखारा हुआ हो कल
लहरो कि तरह हो उमंगें 
जो नीचे गिरने  पर भी 
 उठने  को हो आतुर 

पर्वत कि चोटियों कि उंचाइयो सी 
महती आकांक्षा
 जिसमे नभ छूने  के हो हौसले
सागर कि गहराईयो  सी हो प्रीत
 जिसमे डूब जाए कोई प्रियतम
पवन कि चंचलता सी हो स्फूर्ति
 तन मन में जो नस नस में भर दे चेतना 
और भर पुर ऊर्जा 

पखेरू सी उड़ती  हुई हो कल्पनाये
 जो सपनो को देखती ही नहीं हो 
उन्हें बाहो में भर लेती हो
हो चन्द्रमा सी मन में हो शीतलता 
जो बिखरा दे परिवेश में शान्ति और सद्भाव 

प्रकृति के अनेक रूपो और प्रतीकों सा रहे 
मेरा मन चिंतन
तभी तो प्रकृति रूपी माता का मै  सुत  कहलाऊ
प्रकृति माँ कि गोद में रह कर 
जीवन में सहज ही अध्यात्मिकता  पा जाऊ

Monday, October 21, 2013

पुण्य-लघु कथा

पवित्र नदी  के किनारे जब सब लोग स्नान कर पूजा पाठ कर रहे थे| मूर्तियों का विसर्जन कर नारियल प्रवाहित कर नदी के घाट  पर कर्मकांड में व्यस्त थे| तभी एक व्यक्ति आया जिसके पास एक जोड़ कपडे थे| जो भी उसने पहन रखे थे पहने हुए कपडे उतार कर वह नदी में कूद पडा| ताजगी लिए लिए नदी से बाहर निकला |शरीर  को पोछने के लिए कोई वस्त्र नहीं होने के कारण वह धूप  में इधर -उधर टहलने लगा |थोड़ी ही देर में उसके शरीर  से पानी सूख चुका था और उसके द्वारा स्नान पूर्व धोया हुआ बनियान भी |उसने धुप में सूखे बनियान को पहना और वहा -वहा दृष्टि पात किया जहा थोड़ी ही देर पहले लोग पूजा कर पूजा सामग्री छोड़ गए थे| उस व्यक्ति को अवशेष के रूप में पड़ी पूजा सामग्री में दस रूपये का नोट नजर आया |इधर -उधर लोगो की निगाह से बचते हुए वह नोट चुपचाप अपनी जेब में रख लिया |उसको नदी के किनारे से कोई पुण्य  प्राप्त हुआ हो या नहीं जीने के लिए थोड़ा सा आर्थिक संबल प्राप्त हो चुका था |

Thursday, October 17, 2013

जीवन में शिक्षा का महत्व

किसी भी व्यक्ति के जीवन में शिक्षा का अत्यधिक महत्व होता है
 व्यक्ति की बौध्दिक क्षमता उसके द्वारा ग्रहण की गई 
शिक्षा पर निर्भर करती है 
व्यक्ति कितनी भी आयु और अनुभव प्राप्त कर ले 
उसके द्वारा शिक्षा के प्रति की गई उपेक्षा   तकलीफ देह होती है 
व्यक्ति का प्रत्येक वस्तु  व्यक्ति विषय को समझने  नजरिया
परिस्थितियों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण
 उसके शैक्षणिक योग्यता को परिलक्षित करता है 
जो लोग यह सोचते है की शिक्षा मात्र रोजगार पाने का साधन है
 भारी त्रुटी करते है 
अल्प शिक्षित व्यक्ति कभी भी उच्च स्तर  के विचारों का 
सृजन नहीं कर सकता 
शिक्षा पाने के  ओपचारिक और अनौपचारिक तरीके हो सकते है 
ज्ञान का उच्च स्तर  ओपचारिक शिक्षा का मोहताज नहीं होता 
कला कौशल साहित्य संगीत में निपुणता 
अनौपचारिक शिक्षा से अत्यंत कारगर तरीके पाए जा सकते है
 अनौपचारिक शिक्षा में भले व्यक्ति को कोई
उपाधि प्राप्त न हो 
परन्तु अध्ययन में समर्पण और रूचि होने के कारण व्यक्ति में 
काल्पनिकता और आविष्कार प्रवृत्ति का उद्भव होता है 
 अशिक्षित या अल्प शिक्षित व्यक्ति अपने 
निम्न कोटि के सोच के फलस्वरूप 
एक स्तर के ऊपर सोच ही नहीं सकता 
अनौपचारिक शिक्षा के का कारण 
जो सद्गुरुओ  के सान्निध्य में रह कर
 तुलसी सूर कबीर मीरा ने वो साहित्य रचा 
जो केवल पाण्डित्य  पूर्ण ज्ञान से प्राप्त नहीं हो सकता

समस्या प्रबंधन

लोग अलग अलग समस्याओं के लिए 
अलग ग्रहों की शान्ति के उपाय करते है
कुछ लोग राहू  केतु तो कुछ लोग शनि मंगल ,को 
प्रसन्न करने के लिए ज्योतिषियों से मंत्रणा करते है
भूल जाते है की नव गृह का मुखिया सूर्य देव है
 फिर क्यों नहीं लोग मात्र सूर्य की उपासना से 
अपने सारे कष्ट कर लेते है 
समझदार व्यक्ति समस्याओं के निवारण के लिए
 समस्याओं की परिधि को स्पर्श न कर 
समस्याओं के केंद्र का संधान करते है
 इससे व्यर्थ के परिश्रम में अपव्यय होने वाली ऊर्जा से 
बचा जा सकता है 
जीवन समस्याओं से घिरा हुआ है
 परन्तु सभी समस्याओं  की जड़ 
कोई एक मुख्य समस्या हुआ करती  है 
मुख्य समस्या हल होते ही शनै शनै आनुषांगिक समस्याए 
निराकृत होने लगती  है
 इसलिए समस्याओं से उबरने का सही उपाय है
 मुख्य समस्या का समाधान करे 

Wednesday, October 16, 2013

महान तपस्वी महर्षि अगस्त्य

महर्षि अगस्त्य महान तपस्वी थे कहा जाता है 
की उन्होंने अपने तपोबल के द्वारा 
अपने आश्रम की सीमाओं को बाँध रखा था 
महर्षि अगस्त्य की अनुमति के बिना कोई भी निशाचर 
उनके आश्रम में प्रवेश नहीं कर सकता था 
महर्षि अगस्त्य विन्ध्याचल के गुरु थे 
एक बार विन्ध्याचल पर्वत निरंतर 
अपनी उंचाई बढाता जा रहा था 
निरंतर ऊंचाई पाने के कारण 
सृष्टि में अन्धकार छाता जा रहा था 
जीव जंतु व्याकुल होते जा रहे थे
विन्ध्याचल पर्वत की ऊंचाई रोकने के सारे प्रयास विफल हो गए थे उस समय देवताओं के आग्रह पर
 लोक कल्याण के हित में महर्षि अगस्त्य 
जो उत्तर भारत में निवास रत थे ने 
दक्षिण भारत की और प्रस्थान किया
 रास्ते में उनका शिष्य विन्च्ध्याचल पर्वत 
निरंकुश गति से ऊंचाई ग्रहण करते हुए मिले 
महर्षि अगस्त्य ने विन्ध्याचल से रास्ता देने को कहा
 और वापस लौटने तक उसी स्थिति में रहने का आदेश दिया 
लोक कल्याण में महर्षि अगस्त्य दक्षिण भारत से 
वापस दक्षिण भारत से आज तक नहीं लौटे
 कहते है वह स्थान दतिया जिले में सेवढा  तहसील के समीप आधारेश्वर महादेव के निकट स्थित है 
 महर्षि अगस्त्य के बारे में कहा जाता है की 
उन्होंने लोक हित में समुद्र को पी लिया था 
जिसमे राक्षसों ने शरण ले रखी  थी
ऐसे महान तपस्वियों की तपो भूमि हमारा देश रहा है 
जहा उत्तरी भारत को योगियों की भूमि कहा गया है 
वही  दक्षिण भारत को तपस्वियों की तपो भूमि कहा जाता है 

Saturday, October 5, 2013

सीधे बनो सच्चे बनो अच्छे बनो

पुरानी धारणा यह थी की सीधे लोगो का ज़माना नहीं है 
परन्तु आधुनिक अवधारणा यह है 
की सीधे लोगो का ही ज़माना है 
सीधे लोग की अपेक्षा वे लोग अधिक नुकसान उठाते है 
 जो कपटी और धूर्त होते है 
क्योकि कपटी और धूर्त लोगो के मित्र कम और शत्रु अधिक होते है 
हितैषी कम और अहित की कामना करने वाले अधिक होते है 
सीधे मार्ग पर चलने वाला पथिक विलम्ब से ही सही गंतव्य पर पहुँच जाता है जबकि सफलता के लिए संक्षिप्त मार्ग अपनाने वाला राही राह से भटक जाता है उसे डाकू लुटेरो का ख़तरा रहता है 
सीधे व्यक्ति पर कोई भी सहज विश्वास कर सकता है 
त्रुटी होने पर भी सद्भावना के कारण दया पात्र हो जाता है 
इसके विपरीत चालाक व्यक्ति पर कोई विश्वास नहीं करता है
 कोई भी महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व सौपे जाने पर
 उसके कृत्यों पर निरंतर लोगो की निगाह रहती है 
त्रुटी किये जाने पर उसके साथ 
अपराधी जैसा बर्ताव किया जाता है 
यह उपधारणा की जाती है 
उसने गलती जान बूझ कर की होगी है 
इसलिए सीधे बनो सच्चे बनो अच्छे बनो