Total Pageviews

Thursday, November 29, 2012

स्वाभिमान


स्वालम्बन का सीधा सम्बन्ध स्वाभिमान से होता है
स्वाभिमानी व्यक्ति को अात्म सम्मान से बहुत अधिक प्यार होता है
वह किसी भी कीमत पर अपने अात्म सम्मान के ठेस लगने पर
समझौता नही करता
अात्मसम्मान को ठेस लगते ही
वह कितने ही बडे प्रलोभन को एक क्षण मे ठुकरा देता है
स्वालम्बन जीवन मे उत्थान का प्रथम लक्षण है
स्वाभिमान व्यक्ति को उर्जा प्रदान करता है
व्यक्ति उसमे निहित क्षमता से स्वयम को प्रमाणित करने हेतु
अतिरिक्त क्षमता से कार्य करता है
स्वाभिमानी व्यक्ति विश्वसनियता की प्रतिमूर्ति होता है
ऐसा व्यक्ति पहली बार देखने मे अभिमानी स्वभाव का प्रतीत होता है
परन्तु शनै :शनै :परिचय होने पर उसका
वास्तविक स्वरुप समझ अा जाता है
मिथ्याभिमान अयोग्यता का प्रतीक होता है
ऐेसा व्यक्ति निरन्तर एक प्रकार की भ्रान्ति मे विचरण करता है
मानो वह बहुत अधिक योग्यता धारण करने वाला व्यक्ति है
ऐसे व्यक्ति अपने मिथ्याभिमान से स्वयम का नुकसान तो करते ही है
साथ ही वह स्वर्णिम अवसरो का लाभ भी नही उठा पाते है
मिथ्याभिमानी व्यक्ति का अभिमान जितनी जल्दी दूर हो जाये वह श्रेयस्कर है

महत्वकांक्षा

-->
अाकांक्षा प्रत्येक व्यक्ति के ह्रदय मे
किसी वस्तु ,विषय,भोग ,उद्देश्य को पाने की इच्छा है
व्यक्ति इच्छाअो का कोई अन्त नही है, 
वर्तमान मे पद ,यश,शक्ति,
अधिक अार्थिक सामर्थ्य को पाने की अाकांक्षा
जिसे महत्वकांक्षा के रूप से संबोधित किया जाता है
चिंतन का विषय है
महत्वकांक्षा यदि व्यक्ति की सामर्थ्य एवम योग्यता के अनुपात मे हो तो
व्यक्ति ऐसी अाकांक्षा को प्राप्त करने के लिये
 अवैध साधनो का प्रयोग नही करता
किसी का शोषण नही करता ,क्रुरता कारित नही करता,
अनावश्यक वैभव का अतिरेक प्रदर्शन नही करता
वास्तविक सामर्थ्य अौर पात्रता के अभाव मे
व्यक्ति अपनी महत्वकांक्षा की पूर्ति के लिये उपरोक्त उपाय अपनाता है
अाचरण से भ्रष्ट होता है
अाचरण से भ्रष्ट होकर व्यक्ति भले ही
अपनी राजनैतिक ,पदिय ,अार्थिक,महत्वकांक्षा की पूर्ति कर ले
परन्तु पद या अाकांक्षा की प्राप्ति के पश्चात न प्राप्ति का मूल्य रहता है
न व्यक्ति का मूल्यवान रह पाता
ऐसे महत्वकाक्षी को इतिहास सदा हेय द्रष्टि से ही देख पाता है
इतिहास साक्षी है ऐतिहासिक व्यक्ति वे ही कहलाये
जिन्होने व्यक्तिगत महत्वकांक्षा को परे रख
समाज राष्ट्र को सर्वोपरि मान कर
अपने पावन उद्देश्य बनाये
समाज मे हम ऐसे व्यक्तियो को भी देखते है
जिन्होने सभी प्रकार के संसारिक भोगो को त्याग दिया परन्तु
लोकेषणा से जुडी अाकांक्षा से मुक्ति प्राप्त नही कर सके
ऐसे व्यक्ति अपने कर्म तथा संस्कारो से समाज मे
पूज्य होकर भी होकर लोकेषणा मे लिप्त दिखाई देते है
भविष्य मे उनके पतन की संभावना इसी प्रव्रत्ति के
कारण बनी रहती है
हम ऐसे महापुरुषौ को भी देखते है
जिन्होने महान अौर समाज उपयोगी कार्य
किसी प्रकार के प्रचार -प्रसार से दूर रह कर
मौन साधक के रूप मे किये
किसी भी पद पर न होने के बावजूद
वास्तव मे महानता के सर्वोच्च शिखर पर पदासीन है
जन-जन के ह्रदय कमल पर अासीन है