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Sunday, May 17, 2015

शिव और रेवा

https://youtu.be/VxWt88YmjRE

Saturday, May 16, 2015

व्यक्तित्व निर्माण की पाठशाला

इस दुनिया में दो प्रकार के स्वभाव वाले व्यक्ति होते है एक प्रकार के वे लोग है जिनको ये पता नहीं होता कि वे क्या बोल रहे है उन्हें क्या बोलना चाहिए ऐसे व्यक्तियो की बात का कोई मूल्य नहीं होता समाज में कोई स्थान नहीं होता भले ही वे स्वयं को कितना ही महत्वपूर्ण व्यक्ति समझ ले बड़ी बड़ी डींगे हांकना अनावश्यक निंदा स्तुति ऐसे व्यक्तियो का स्वभाव होता है  दूसरे प्रकार के वे व्यक्ति होते है जिनके शब्दों का मूल्य होता है अनावश्यक न तो किसी की प्रशंसा करते है न ही किसी की निंदा ऐसे व्यक्ति क्षमता और प्रतिभा से परिपूर्ण होते है उनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं होता  ऐसे व्यक्तियो को स्वयं के बारे में कोई भ्रान्ति नहीं होती अपितु समाज में उनकी बात को ध्यान से सूना जाता है और उसको महत्व दिया जाता है  हमें स्वयं का मूल्यांकन कर सोचना चाहिए कि हमारा स्वभाव क्या है यही मानदंड हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करते है व्यक्तित्व निर्माण की यही पाठशाला है

Tuesday, May 12, 2015

व्यक्ति और व्यक्तित्व

व्यक्ति अपनी छोटी छोटी आदतो पर ध्यान नहीं देता है
जबकि एक ही प्रकार की आदत लंबे समय तक बने रहने पर वह व्यक्तित्व की अंग हो जाती है कई प्रकार की बुरी आदते बुरे व्यक्तित्व का निर्माण कर देता है संसार में जितने भी महान व्यक्तित्व हुए है वे छोटी छोटी बहुत सी  अच्छी आदतो के कारण हुए है
व्यक्तित्व निर्माण एक दीर्घ और सतत् प्रक्रिया है
छोटे छोटे प्रलोभनों के कारण हम अपना कितना बड़ा दीर्घकालिक नुकसान कर बैठते है यह हमारे बौने व्यक्तित्व का ही परिणाम  है मानसिक दरिद्रता और विकलांगता  व्यक्ति के संकीर्ण सोच और सीमित क्षमता का परिचायक है ऐसी संकुचित मनोवृत्ति का व्यक्ति निकृष्ट व्यक्तित्व का प्रतीक होता है

Monday, May 11, 2015

गरीबी ??

आज के युग में सबसे अधिक कोई शब्द प्रचलित हैं तो शायद वह शब्द गरीब होना चाहिये ,
आज - कल लोगों को इससे बहुत लगाव है खासकर के राजनैतिक दलों  का तो अस्तित्व ही इस एक शब्द पर खडा है कुछ एक दलों ने तो इसी के सहारे सत्ता काे बरकरार रखा गरीब और गरीबी है तो सत्ता है यह मंत्र उन्हे कण्ढस्थ है तो गरीबी तो हटनी ही थी ?
खैर इसके लिये केवल राजनैतिक दलों को पुरा दोष देना भी उचित नही
क्योकि व्यक्ति गरीब पैदा अवश्य हो सकता है पर गरीबी में जीना और मरना यह उसके हाथों में हैं
यदि यहा आप गरीबी का आशय आर्थिक दरिद्रता से ही समझ रहे है तो में आपको स्पष्ट कर दूं की यह बहुत संकुचित अर्थ है और इसका अर्थ तो बहुत व्यापक हे
जैसे
मानसिक दरिद्रता
शारिरक दरिद्रता
और सबका परिचित आर्थिक दरिद्रता
आर्थिक गरीबी पाप नहीं है परन्तु मानसिक गरीबी होना बहुत बडा अपराध है यही वह गरीबी है जो व्यक्ति को आजीवन राजनैतिक दलों की निर्भरता और आर्थिक तंगी का मोहताज बनाये रखती है वरना किस की हिम्मत है कि वह मानसिक्ता सम्पन्न व्यक्ति को मुर्ख बना अपनी सत्ता की रोटिया सेंक सके ?
हमारे देश में तो आर्थिक दरिद्रता का कभी उपहास नहीं बनाया गया एसे कई व्यक्ति हुये जो आर्थिक रूप से भलें ही गरीब रहे हो पर उनकी मानसिक सम्पन्नता ने उन्हे लोकपूजक बना दिया आप स्वयं उन नामों को भलीभातीं जानते है
दुसरी शारिरिक गरीबी में यहा यह स्पष्ट कर दूं की में विकलागंता को शारिरिक गरीबी की श्रेणी में नही रखता क्योकि विकलांगता व्यक्ति की गति कम कर सकती हे पर उसे रोक नही सकती एसे भी कई उदाहरण मिल जायेगे जहॉ शारिरिक चुनौति के बावजुद लोगों ने असम्भव कार्य कर दिखाये है
अत: शारिरिक गरीबी वह है जो व्यक्ति को ईश्वर प्रद्त इस अनमोल सम्पदा के प्रति उदासीन रवैया रखने के परिणाम स्वरूप द्रष्टिगत होता है खैर विषय बहुत लम्बा है और समय कम ..............

Tuesday, April 21, 2015

नदी की तरह जिओ

नदी  की तरह व्यक्ति का जीवन हो तो 
जीवन में कभी निराशा का भाव नहीं रह पाता  है 
जीवन में निराशा के पल आ भी जाए तो 
बहती हुई नदी के किनारे बैठ कर 
उसे  निहारने से वह भी चला जाता है 
नदी की उतरती चढ़ती लहरे यह बताती है 
कि जीवन में दुःख और सुख के उतार और चढ़ाव 
कितने भी आ जाए 
व्यक्ति को नदी की तरह गतिशील रहना चाहिए 
जो लोग नदी में कूद कर आत्म ह्त्या कर लेते है 
उन्हें कुछ पल रुक कर नदी के किनारे बैठकर 
अपने निर्णय  कुछ देर अवश्य करना चाहिए 
इस बात की को पुरे विश्वास  के साथ कह सकते हैकि 
व्यक्ति नदी के भीतर की चेतना को निहारने के बाद 
कितना भी निराश हो आत्म ह्त्या नहीं करेगा
 इसलिए कहते है की पवित्र नदी में स्नान से ही नहीं 
अपितु दर्शन मात्र से पुण्य की प्राप्ति होती है 
गतिशील नदी अपने जल का परिशोधन स्वयं करती  है 
वह सक्षम है
 परन्तु उसे किसी प्रकार प्रवाह में अवरोध नहीं चाहिए 
नदी की यह क्षमता व्यक्ति को स्वयं के जीवन में 
आत्मसात करनी चाहिए 
यदि व्यक्ति नदी तरह अपने जीवन में गतिशील रहे तो 
जीवन से सारे विकार शनैः शनै समाप्त हो जायेगे 
ठीक उसी प्रकार से ऊर्जा का संचार हो जाएगा 
जिस प्रकार से नदी के प्रवाहित जल से
 अद्भुत विद्युत ऊर्जा उतपन्न हो जाती है 
नदी अपना रास्ता स्वयं नहीं चुनती मात्र दिशा तय करती  है 
उसे मालुम है उसे कहा जाना है
 रास्तो की जटिलता उसे विचलित कर सकती
 इसके विपरीत रास्तो की भौगोलिक स्थितियां का 
वह लाभ उठा कर प्रवाह को प्रबल कर लेती है 
इसलिए नदी की तरह जिओ

Tuesday, April 14, 2015

झूठ के प्रकार

पहले हम जितने प्रतिबध्द होकर सत्य बोलते थे
उससे कही ज्यादा प्रतिबध्द होकर हम झूठ बोलते है
झूठ बोलने कई कारण हो सकते है और कई प्रभाव हो सकते है
कुछ लोग झूठ केवल मजा लेने के लिए बोलते है
कई लोग झूठ अपनी झूठी शान बढ़ाने के लिए बोलते है
दोनों प्रकार के झूठ से किसी को हानि नहीं होती
पर झूठ बोलने वाले को एक अलग ही  प्रकार की संतुष्टि प्राप्त होती है
कुछ लोग झूठ दूसरो के झूठ को आश्रय देने के लिए बोलते है
इस झूठ को बोलने के कारण भय ,पाखण्ड का प्रसार होता है 
सबसे विषैला और विनाशकारी झूठ वह होता है जो किसी को हानि पहुचाने के लिए बोला जाए 
इस प्रकार के झूठ में हिसा की भावना निहित होती है 
इसलिए धर्म परायण लोगो को चाहिये वे यथा संभव सत्य बोले यदि सत्य बोलना कठिन हो तो वे न बोले 
परंतु दूसरे के झूठ को आश्रय देने के लिए या हानि पहुचाने  के लिए झूठ न बोले 


Tuesday, March 10, 2015

हनुमद शक्ति

 हनुमान जी की भक्ति के वर्तमान में क्या लाभ है ?
त्रेतायुग में हनुमान जी ने जो 
भौतिक रूप में प्रगट होकर कार्य किये 
वह अभी संभव नहीं है 
परन्तु सज्जनो को सरंक्षण करना
 हनुमान जी का सर्वोच्च कार्य है 
जब व्यक्ति के पुण्यो का उदय होता है 
तो वह सज्जनो से वह घिर   जाता है
जब व्यक्ति के दुर्भाग्य का प्रारम्भ है 
 तो  न  चाहते हुए भी वह बुरे लोगो के बीच अपने आप को पाता  है 
हनुमान जी केवल यह कार्य करते है 
 कि  वे एक सज्जन को दूसरे सज्जन व्यक्ति से मिलवाते है 
इस प्रकार कई सज्जन व्यक्तियों की संगठित शक्ति 
हनुमद कृपा के रूप में प्रगट होती है 
इसलिए कहते की जहा कही सुन्दर काण्ड का गायन होता है 
 तो  हनुमान जी वहा सूक्ष्म रूप अवतरित हो जाते है 
सुन्दर  काण्ड अर्थात सुन्दर शुभ कल्याण कारी कार्य
इसका तात्पर्य यह है  कि 
सज्जनो के एकत्रित होकर  
सुन्दर शुभ कल्याण कारी कार्य करने के संकल्प करने पर
 संकल्प की पूर्ति करने हेतु 
एक अद्भुत शक्ति और ऊर्जा   सज्जनो में संचारित होने लगती है 
यही ऊर्जा हनुमद शक्ति कहलाती   है