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Sunday, February 9, 2025

कर्मयोगी

जन्म और मरण से कोई व्यक्ति परे नहीं है ।परन्तु  व्यक्ति का जन्म कहा होगा ,किस परिवेश में होगा , इसका निर्धारण उस व्यक्ति के संचित पुण्य के आधार पर  होता है l इसी प्रकार से व्यक्ति की पूरी आयु होने के बाद जब वह संसार से जाता है तो उस व्यक्ति को उसके सत्कर्मों और परोपकार के कार्यों से जाना जाता है I इस संसार में कई महापुरुष जन्म लेते है और ईश्वर द्वारा सौंपे गए दायित्वों का निर्वहन कर  संसार से प्रयाण कर जाते है Iउन महापुरुषों के कर्म की कीर्ति भावी पीढ़ी का मार्ग प्रशस्त करती है
        उन्हीं महापुरुषों में से शाकल्य परिवार के पितृ पुरुष ब्रह्मलीन डा, श्रीधर शाकल्य थे l डा, श्रीधर शाकल्य  साहब को सभी लोग वैद्य राज जी के नाम से जानते थे l उन्होंने परोपकार की भावना से चिकित्सक की भूमिका का भली भांति निर्वहन किया I चिकित्सा व्यवसाय के प्रति उनका कितना समर्पण था, इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता था कि उन्हें स्वयं अस्वस्थ होते हुए हमने अशक्त रोगियों के घरों पर वृद्धावस्था में चिकित्सा हेतु जाते आते हुए देखा हैं दूसरों की पीड़ा के सामने उन्हें स्वयं की पीड़ा नगण्य दिखाई देती थीं I
     परम श्रध्देय डा, श्रीधर जी शाकल्य साहब कर्मयोगी थे l जिन्होंने गीता के सार को जीवन में जिया थाl  सांसारिक दायित्वों की पूर्ति करते हुए उन्होंने आध्यात्मिक ऊंचाइयों को भी स्पर्श किया है l मेरी उनसे कई बार भेट हुई थी,पर मुझे कभी नहीं लगा कि वे स्वयं भी अस्वस्थ थे l उनका बाह्य स्वरूप जितना तेजस्वी था , आंतरिक स्वरूप उतना ही दिव्य प्रतीत होता था l उन्होंने गायत्री परिवार के इस आदर्श वाक्य को साकार किया था, कि,,,"गृहस्थ एक तपोवन है जिसमें संयम सेवा और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है"
       कहते है जिस प्रकार लोग तीर्थाटन करते हुए पुण्य अर्जित करते है उसी प्रकार से इस संसार में महापुरुष भी तीर्थ समान होते है l जैन धर्म में महान संतो को तीर्थंकर कहा गया है l मुझे ब्रह्मलीन डा, श्रीधर जी शाकल्य साहब से मिल कर तीर्थ दर्शन की अनुभूति होती थी l यद्यपि ऐसे महापुरुष के लिए कोई स्मारिका उनके कार्य का मूल्यांकन नहीं हो सकती है परन्तु महापुरुष के गुणों स्मरण और प्रकाशन से समाज में सकारात्मकता जागृत होती है l और सद्गुणों को प्रोत्साहन मिलता है 

 ब्रह्म लीन डा श्रीधर शाकल्य साहब के लिए मै अपनी इन पक्तियों से श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहूंगाl
,,,,   "दीन दुखियों का दर्द हरेगा सच्चे ईश को पाएगा 
     मातृ भूमि के चरणों में ही अपना जीवन चढ़ाएगा 
   किया नहीं प्राणों का अर्पण करे समर्पित जो जीवन 
    देश प्रेमी और कर्मयोगी वह कालपुरुष बन जाएगा"

Sunday, December 29, 2024

पर्यावरण उद्यान

 

मानव मन का स्वभाव है उसे सौंदर्य दूरस्थ दिखाई देता है अपने आस पास दिखाई नहीं देता है l बुराइयां अपने निकट रहने वाले व्यक्तियों में दिखाई देती है  l अच्छाईयां  या  तो स्वयं में दिखाईं देती या दूर के लोगों में दिखाई देती है l हमे। चाहिए कि हम अपने आस पास परिवेश में बिखरे सौंदर्य और सद गुणों को देखे l
       सामान्यत यह भी देखा जाता है सौंदर्य पूर्ण  कृतियों को बनाने के लिये महंगी और दुर्लभ  वस्तुएं एकत्र कलाकारों द्वारा की जाती है तदोपरांत संरचनाएं और कृतियां बनाई जाती रही है ,वहीं कोई यह कहे कि दैनिक जीवन  में उपयोग कर फेंकी गई वस्तुओं से भी संरचनाएं और कला कृतियां बनाई जा सकती है तो लोग आश्चर्य करेंगे
    इसे साकार किया है झाबुआ के लोगों ने जिन्होंने  र्प्लास्टिक की बोतल, गाड़ी के टायर ट्यूब,  पुराने कपड़े, टूटे हुए पाइप , फटे हुए जूतों  से पर्यावरण उद्यान में तरह तरह की कृतियां तैयार की है 
                झाबुआ नगर में इन सब चीजों से तैयार कर अम्बेडकर गार्डन में कई प्रकार की संरचनाएं सजा कर रखी गई है l गार्डन मे कही तो प्लास्टिक की पुरानी फेंकी गई बोतलों से हेलीकॉप्टर तो कही शेड बना कर बैठने योग्य स्थान बनाया गया है l पुराने टायरों और ट्यूब से कुर्सियां और टेबल जैसी आकृतियां बनाईं गई है
    इस युग की यह आवश्यकता हैं कि हम आस पास बिखरी बिल्कुल निरूपयोगी हुई चीजों को पर्यावरण के अनुकूल बनाए उन्हें अच्छे प्रयोजन के लिए काम में लाए l इसी प्रकार से समाज से बहिष्कृत उपेक्षित वर्ग को अपनाए उन्हें उचित स्थान प्रदान कर देश और समाज निर्माण में उन्हें भागीदार बनाये 

Wednesday, December 4, 2024

लोक गीत


राजस्थानी लोक गीत हमारी लोक परम्परा और लोक संस्कृति परिचायक है l लोक गीतों के माध्यम से हमारे लोक गायक और गायिकाएं विलुप्त होते  वाद्य यंत्रों से संगीत देकर लोक देवताओं की स्तुति करते है

      इस प्रकार के लोक गीत सुनने में अत्यंत मधुर लगते है l लोक गायक और  गायिकाओं को भले ही औपचारिक रूप से संगीत की शिक्षा न मिली हो, परन्तु उनके स्वर की विशिष्टता हमारे तन मन में ताजगी भर देती है 

Friday, November 15, 2024

हमारी लोक परंपराएं लोक उत्सव

जैसे जैसे हम डिजिटलाइजेशन की और बढ़ते जा रहे है l हम अपनी लोक परंपराओं लोक गीतों लोक उत्सवों लोक कलाओं, लोक देवताओं से परे होते जा रहे है l 
    संध्या उत्सव मालवा और निमाड़ में मनाया जाने वाला लोक उत्सव है l जिन्हें बालिकाएं प्राकृतिक रूप से उपलब्ध गाय के गोबर फूल पत्तियों से दीवारों पर तरह तरह की आकृतियां बनाती है और समूह में इकट्ठी होकर लय में उत्साह पूर्वक लोक गीतों को गाकर लोक देवी संध्या का आव्हान करती है 
       इस प्रकार के लोक उत्सव हमारे सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण के साथ साथ हमारी नई पीढ़ी में सृजनात्मक कौशल भरने का काम भी करते है 

Monday, September 16, 2024

वन भाजी उत्सव-इक नई पहल



पद्मश्री   महेश  जी  शर्मा  द्वारा  स्थापित  और  संचालित  स्वयं  सेवी  संस्था  शिव  गंगा  जो  मध्य  प्रदेश  के  झाबुआ  और  आलीराजपुर  जिले  सहित  गुजरात  और  महाराष्ट्र  प्रांत  के  सीमावर्ती  जनजाति  जिलों  में  पर्यावरण  सरंक्षण  और  हलमा जैसी  पुरातन  परम्पराओं  के  माध्यम  से  परमार्थ  का  कार्य कर  रही  है l

         दिनांक  15 सितंबर  2024  को  इस  संस्था द्वारा वन  भाजी  उत्सव  का  आयोजन  किया  ग़या  l इस  उत्सव  जिले  ग्रामीण  अंचल  से  वनवासी महिलाये  अपने  अपने  घरों  से  इस  अंचल  में  पाई  जाने  वाली  सब्जियां  बना  कर  लाई,  जिन्हें  बाहर से आए  अतिथियों  नें  आहार  के  रूप  ग्रहण  किया l
         इस  कार्यक्रम  के  माध्यम  सामाजिक  समरसता के  उद्देश्य  पूर्ति  हुई  साथ  ही  वन वासी क्षैत्र  व्यंजनों  से  हमारा  परिचय  हुआ l
         उल्लेखनीय  है  कि  जहा  इस  युग  मे  लोग  छोटे   से छोटे कार्य का  श्रेय  लेने  से  नहीं  चुकते वहीं  पद  और  लोकप्रियता  के  मोह  दूर  रह  कर  यह संस्था  देश  के  इस  उपेक्षित  क्षैत्र  में  बिना  किसी  प्रचार्  प्रसार  और  मीडिया  कवरेज  के  जन जातियों  के  स्वावलंबन और  स्वाभिमान  रखते  हुए  बिना  शासकीय  सहयोग  के कार्य कर  रही  हैं l

Thursday, September 5, 2024

, भगवान कृष्ण का ब्रह्मचर्य-एक अनोखा प्रसंग

गीताप्रेस  गोरखपुर  से  प्रकाशित  कल्याण  पत्रिका  से  साभार