उन्हीं महापुरुषों में से शाकल्य परिवार के पितृ पुरुष ब्रह्मलीन डा, श्रीधर शाकल्य थे l डा, श्रीधर शाकल्य साहब को सभी लोग वैद्य राज जी के नाम से जानते थे l उन्होंने परोपकार की भावना से चिकित्सक की भूमिका का भली भांति निर्वहन किया I चिकित्सा व्यवसाय के प्रति उनका कितना समर्पण था, इसका अंदाज इसी बात से लगाया जा सकता था कि उन्हें स्वयं अस्वस्थ होते हुए हमने अशक्त रोगियों के घरों पर वृद्धावस्था में चिकित्सा हेतु जाते आते हुए देखा हैं दूसरों की पीड़ा के सामने उन्हें स्वयं की पीड़ा नगण्य दिखाई देती थीं I
परम श्रध्देय डा, श्रीधर जी शाकल्य साहब कर्मयोगी थे l जिन्होंने गीता के सार को जीवन में जिया थाl सांसारिक दायित्वों की पूर्ति करते हुए उन्होंने आध्यात्मिक ऊंचाइयों को भी स्पर्श किया है l मेरी उनसे कई बार भेट हुई थी,पर मुझे कभी नहीं लगा कि वे स्वयं भी अस्वस्थ थे l उनका बाह्य स्वरूप जितना तेजस्वी था , आंतरिक स्वरूप उतना ही दिव्य प्रतीत होता था l उन्होंने गायत्री परिवार के इस आदर्श वाक्य को साकार किया था, कि,,,"गृहस्थ एक तपोवन है जिसमें संयम सेवा और सहिष्णुता की साधना करनी पड़ती है"
कहते है जिस प्रकार लोग तीर्थाटन करते हुए पुण्य अर्जित करते है उसी प्रकार से इस संसार में महापुरुष भी तीर्थ समान होते है l जैन धर्म में महान संतो को तीर्थंकर कहा गया है l मुझे ब्रह्मलीन डा, श्रीधर जी शाकल्य साहब से मिल कर तीर्थ दर्शन की अनुभूति होती थी l यद्यपि ऐसे महापुरुष के लिए कोई स्मारिका उनके कार्य का मूल्यांकन नहीं हो सकती है परन्तु महापुरुष के गुणों स्मरण और प्रकाशन से समाज में सकारात्मकता जागृत होती है l और सद्गुणों को प्रोत्साहन मिलता है
ब्रह्म लीन डा श्रीधर शाकल्य साहब के लिए मै अपनी इन पक्तियों से श्रद्धांजलि अर्पित करना चाहूंगाl
,,,, "दीन दुखियों का दर्द हरेगा सच्चे ईश को पाएगा
मातृ भूमि के चरणों में ही अपना जीवन चढ़ाएगा
किया नहीं प्राणों का अर्पण करे समर्पित जो जीवन
देश प्रेमी और कर्मयोगी वह कालपुरुष बन जाएगा"