बल ही जीवन हैं
" अस्व नेति गजं नेति व्याग्रः नेति च नेति च

इस श्लोक का अनुवाद - घोड़े की बलि नहीं दी जाती हाथी की बलि नहीं दी जाती और सिंह की बलि नहीं नहीं सिंह की बलि तो असम्भव हैं देवताओं को भी अजा ( बकरा ) जेसे निर्बल प्राणी की ही बलि दी जाती हैं लगता हैं जेसे देव स्वयं भी निर्बल की ही घात करते हैं.
"स्वामी विवेकानंद ने कहा हैं -
बल ही जीवन हैं निर्बलता मृत्यु,
बल ही परम आनंद हैं सात्विक और अमर जीवन "
Balvaan honaa achchi baat hai
ReplyDeletepar balvaan hokar ahinsak honaa shreshth hai