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Monday, April 30, 2012

ज्योतिर्लिग में निराकार पर ब्रह्म का वास

भगवान् शिव के मंदिर में शिव जी के दर्शन ज्योतिर्लिंग के रूप में होते है 
 ज्योतिर्लिंग अर्थात निराकार  ईश्वर जिसका कोई आकार नहीं हो 
जो ज्योति स्वरूप हो ज्योतिर्लिंग के रूप में उसकी मंदिर में स्थापना का उद्देश्य यह नहीं है 
कि हम अनावश्यक कर्मकांड में लिप्त रहे 
अनावश्यक कर्मकांड से मुक्ति से मानव रहे 
इसलिए ज्योतिर्लिंग की आराधना 
प्रकृति में सहज उपलब्ध जल एवम बिल्ब पत्र से की जाती है 
 हम देखते है की शिव जी के ज्योति स्वरूप की परिक्रमा पूर्ण रूपेण नहीं की जाती है
हठ योग में ज्योति के समक्ष साधक द्वारा की गई साधना को त्राटक कहा गया है 
त्राटक साधना के साधक को अद्भुत परिणाम प्राप्त होते है
 शिव जी के ज्योति स्वरूप के दर्शन करने के बाद यह विधान है 
कि मंदिर के गर्भ गृह के बाहर आकर नंदी के नेत्रों के स्तर तक आकर दर्शनार्थी ज्योतिर्लिंग के दर्शन करे
 इसका यह तात्पर्य यह है कि 
 नंदी जी निराकार ईश के समक्ष समर्पण भावना को द्योतक है 
समर्पण के अभाव में ईश्वरीय तत्व से साक्षात्कार नहीं हो सकता है 
इसलिए साधक की नंदी के समान समर्पण भावना बनी रहे 
इस प्रक्रिया को शिव मंदिरों ज्योतिर्लिग के समक्ष नंदी को दंडवत करते हुए बताया गया है 
यदि हम शिव मंदिर में दर्शन करते हुए उपरोक्त भावना को आत्मसात कर पाए 
तो शिव के ज्योति स्वरूप से सहज ही साक्षात्कार संभव है 
अन्यथा हमारा जीवन अनावश्यक आडम्बरो में पडा रहेगा  

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