एक से अधिक अक्षर मिलकर शब्द बनता है
शब्दों का सुसंगठित समूह वाक्य होता है
सार्थक शब्दों का समूह काव्य कहलाता है
काव्य यदि आत्मा को परमात्मा से जोड़े तो वह मन्त्र कहलाता है
काव्य यदि आत्मा को परमात्मा से जोड़े तो वह मन्त्र कहलाता है
हम अनुभव करते है की एक मन्त्र जब सिध्द होता है तो आस -पास के परिवेश में सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करता है
भिन्न -भिन्न प्रभाव हेतु भिन्न भिन्न मन्त्र
उपयोगी होते है
उपयोगी होते है
मन्त्र सिध्द कब होता है ?
प्रारंभ में जब कोई साधक मन्त्र का जाप करता है
तो मन्त्र परिवेश में अधिक प्रभाव उत्पन्न नहीं करता है
यहाँ तक की मन्त्र का प्रभाव शून्य भी होना दृष्टिगत होता है साधक निराश होने लगता है
ऐसा नहीं होना चाहिए
मन्त्र का सीधा सम्बन्ध स्वर ,तथा ध्वनि विज्ञान से होता है
विज्ञान ने प्रमाणित किया है
कि जिस प्रकार से प्रकाश की गति होती है
उसी प्रकार से ध्वनि की भी गति होती है
प्रकाश की गति की अपेक्षा ध्वनि की गति कम होती है
साधक जब मन्त्र साधना करता है
तो एक निश्चित स्वर एवं ध्वनि में संतुलन निर्धारित कर मन्त्र को उच्चारित किया जाता है
मन्त्र में निहित आशय एवं साधक में मन में चलने वाले विचार तथा पलने वाले संकल्प
मन्त्र की ध्वनि के साथ अनंत ब्रहमांड की यात्रा करते है
यह देखने में आता है की कोई मन्त्र दीर्घ कालावधि अर्थात कई वर्षो के पश्चात सिध्द होता है
मन्त्र अपना प्रभाव दिखाना प्रारम्भ कर देता है इसका तात्पर्य यह है कि
मन्त्र में निहित शब्द एवं शब्दों में निहित अक्षर की यात्रा पूर्ण हो चुकी है
व्यवहारिक जीवन में यह अनुभव आता है कि
व्यवहारिक जीवन में यह अनुभव आता है कि
हम जिस प्रकार के शब्दों का प्रयोग दूसरो के प्रति करते है
सामने से हमें उन्ही शब्दों में उत्तर मिलता है
यहा पर भी शब्द में निहित अक्षर की अविनाशी प्रकृति सामने आती है
इसलिए हमें यह ध्यान रखना होगा की
हमें दूसरो के प्रति उन शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए
जिनकी हम अपने लिए दूसरो से अपेक्षा नहीं करते है
हमारे नियमित व्यवहार में अच्छी शब्दावली हमारे व्यक्तित्व को सुन्दर बनाती है
जो जीवन में हमारी सफलता का पैमाना होती है इसलिए अक्षर की महिमा का हमें सदा स्मरण रखना चाहिए
शब्द को ब्रहम की संज्ञा इसलिए भी दी गई है
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