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Sunday, October 14, 2012

संघर्ष और भगवद सत्ता

संघर्ष के कई रूप होते है
जिनमे धर्म ,जाती ,वर्ग ,नस्ल ,के आधारों पर होने वाले संघर्ष महत्वपूर्ण है
सभी संघर्षो के पीछे स्वयं को श्रेष्ठ तथा अन्य को निकृष्ट मानना है
व्यक्ति हो ,समाज हो,जाती हो ,धर्म हो ,कुल हो ,वर्ग हो, या क्षेत्र विशेष हो ,
अथवा नस्ल हो सभी प्रकार से भेद करके व्यक्ति स्वयं को श्रेष्ठ दूसरो को निकृष्ट बताने के उद्यत रहता है
इसके लिए कई प्रकार के तर्क कुतर्को का सहारा लेता है
जबकि श्रेष्ठता के आधार ये नहीं है
सभी समुदायों में क्षेत्रों में अच्छे,बुरे लोग हो सकते है
इस तथ्य को प्रमाणित करने के लिए
ईश्वर ने भिन्न -भिन्न वर्गों में ,धर्मो में ,वर्णों में क्षेत्रों में
,नस्लों में अलग -अलग समय पर
अवतार धारण किये अपने अंशो को धरती पर भेजा
प्राचीनकाल में जब क्षत्रिय वर्ण में श्रेष्ठता का भाव
 जब अहंकार में परिवर्तित होने लगा था तो
भगवान् विष्णु ने क्षत्रिय वर्ण के अहम् का नाश करने के लिए
ब्राह्मण वर्ण में परशुराम  अवतार लिया
जब ब्राह्मण वर्ण में श्रेष्ठता का भाव अहंकार के रूप में बदल गया
और रावण जैसा विद्वान ब्राहमण दर्प ,दंभ ,के रूप में 

सिर उठाने लगा तो
भगवान् विष्णु ने क्षत्रिय वर्ण में भगवान राम के रूप में अवतार धारण किया
कालान्तर में ब्राह्मण क्षत्रिय में श्रेष्ठता की भावना का 

अतिरेक होने लगा तो
भगवान् विष्णु ने यदुकुल अर्थात ग्वाला समाज में 

जन्म लेकर ब्राह्मण एवं क्षत्रिय
वर्ण की श्रेष्ठता के दर्प का नाश किया
महर्षि वेदव्यास भी जो भगवान् विष्णु के अंशावतार थे 

ने शूद्रवर्ण की मत्स्यकन्या के गर्भ से जन्म लेकर यह प्रमाणित किया की श्रेष्ठता किसी वर्ण ,धर्म ,जाती की मोह ताज नहीं होती 
 इसलिए श्रेष्ठता की भावना के कारण किसी समाज धर्म में संघर्ष की की स्थिति निर्मित हो तो
व्यक्ति को सदा यह सोचना चाहिए की भगवद सत्ता चहु और विद्यमान है
वह कभी भी कही भी किसी भी रूप में किसी वर्ण में समाज में नस्ल में धर्म में प्रगट हो सकती है

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