
विजयादशमी राम और रावण
विजयादशमी अर्थात विजय का दिन अधर्म पर धर्म की विजय का दिन , असत्य पर सत्य की विजय का दिन रावण पर राम की विजय का दिन .
रावण - रावण अति विद्वान पंडित, सास्त्रो का ज्ञाता, ज्योतिष्य विद्या मैं निपुण , महान कवि , एक अच्छा संगीतकार ,
शिव का परम भक्त ,
युद्ध एवं राजनीती का कुशल . अति बलवान , अस्त्र सस्त्र और सास्र्त्रो का धनि , स्वर्ण लंका का स्वामी. देवो पर विजय प्राप्त .
और भी अनेक गुणों और कलाओ मैं महारथी रावण सर्वगुण सम्पन्न ,
एक ही व्यक्ति मैं जब इतने गुण हो जितने दस लोगो मैं होते हैं तो उसे दसानंद कहने मैं कोई अतिश्योक्ति नही हैं . रावण ने अपने पुरसार्थ
के द्वारा इतनी योग्यता प्राप्त की के देवता भी उससे भयभीत रहते सारी धरा उसकी शक्ति के आगे डोलने लगती परन्तु जब एसा ज्ञानवान गुणवान बलवान व्यक्ति अपने ज्ञान और बल का प्रोयोग दुसरो को कष्ट देने दुसरो का मान सम्मान हरने और सम्पूर्ण धरा जन जीवन पर अतिक्रमण करने के लिए करे , अपने अहं और भोगजनित वासनाओ की पूर्ति के लिए करे तो उत्तम कुल मैं जन्म लेने के बाद भी एसा व्यक्ति असुर अर्थात राशस हो जाता हैं जेसा रावण के साथ हुआ पुल्स्थ ऋषि के उत्तम वंश मैं उत्तपन होने के बाद भी हम रावण को राशस के रूप मैं ही याद रखते हैं. और जिसकी मृत्यु पर संसार हर्ष मनाता हैं . इसलिए हमे रावण से सीखना चाहिए के किस प्रकार एक व्यक्ति अपने पुरसार्थ
से सम्पूर्ण धरा को भी अपने अधीन कर सकता हैं परन्तु हमे चाहिए की हम अपने ज्ञान और बल का उपयोग सबके हित मैं करे कल्याण के लिए करे जेसा की श्री राम ने किया .
राम - रघुकुल सिरोंमणि , आदर्श की प्रतिमूर्ति , सत्य के प्रतीक , धर्म के रक्षक , धनुर्धरो मैं सर्वश्रेष्ट , ज्ञान और बल मैं सम्पूर्ण, सदाचारी , विनम्र , महान त्यागी , दुसरो के लिए कष्ट सहने वाले परमार्थी, छोटे से छोटे व्यक्ति को भी समान सम्मान देने वाले. आज्ञाकारी पुत्र , आदर्श पति. आदर्श भाई , आदर्श मित्र, नरो मैं नरोतम , पुरषों मैं पुर्शोतम , दीनदयाल , सबके कष्ट हरने वाले , श्री राम.
श्री राम के यही गुण उन्हें विश्व मैं पूजनीय भगवान् बनाते हैं श्री राम ने हमे सिखाया की किस प्रकार एक मनुष्य अपने धर्म का पालन करते हुए सत्य पर अडिग रहकर विश्व और समाज के हित मैं अपने व्यक्तिगत सुखो का त्याग कर के मनुष्य से इश्वर बन जाता हैं मनुष्य को चाहिए की धन से अधिक धर्म को प्राथमिकता दे,
जेसे श्री राम ने पिता की आज्ञा और तत्कालीन परिस्थितयो को देख कर अयोध्या का राज्य त्याग कर वन गमन किया रावण वध उनका व्यक्तिगत शत्रुता का युद्ध नही था ,
क्योकि जब ऋषि विस्वामित्र ने उन्हें तत्कालीन समस्याओ से अवगत कराया के किस प्रकार राक्षस लोग जो की रावण के बल की छत्रछाया मैं सज्जन, व् साधू लोगो को कष्ट देते हैं उनकी क्रूर हत्या करते हैं,
गौ माता किस प्रकार दुखी हैं किस प्रकार वह लोग बलात माताओ व बहिनों का हरन कर उनका शील भंग करते हैं यज्ञ आदि धर्मिक अनुष्ठानो मैं विघ्न पहुचाते हैं , तो श्री राम को यह सब देख सुन कर बहुत दुःख हुआ और उन्होंने उसी वक्त धरती को निसाचर दुष्ट राक्षसों से मुक्ति दिलाने का संकल्प लिया ,
" निशिचर निकल सकल मुनि खाए देख रघुवर नयन जल आये" "निसिचर हिन् करहु जग माहि भुज उठाये किंह पर्ण ताही"
अत : ये कोई व्यग्तिगत युद्ध नही अपितु धर्म युद्ध था .
इसीलिए हम विजयदसमी पर्व मनाते हैं हमे चाहिए की अपने अंदर के रावण को मारे और राम के आदर्शो का पालन करे
जय श्री राम
Ati sundar atyant upyogi raam raavan ki paribhaashaa
ReplyDelete