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Sunday, November 11, 2012

धन तेरस एवं कुबेर देव

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दीपावली के त्यौहार पर धन तेरस की तिथि पर
लोग स्थावर अथवा चल संपत्ति का क्रय -विक्रय करते है
मान्यता है की धन तेरस को कुबेर देवता की
पूजा किये जाने से स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है
प्रश्न यह है कि कुबेर देवता की पूजा से
स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति क्यों होती है ?
कुबेर देवता देवताओं के कोषाध्यक्ष है
देवताओं का कोष अक्षय रहता है
संपत्ति अक्षय रहे इसके लिए संपदा का
दैविक होना अनिवार्य है
आसुरी संपदा सरलता से प्राप्त हो सकती है
क्षणिक सुख सुविधाए प्रदान कर सकती है
परन्तु उसकी अक्षयता और स्थिरता
उसकी प्राप्ति किये जाने के साधनों पर निर्भर रहती है
कुबेर देव रावण के भ्राता थे तथा स्वर्णिम लंका के अधिपति थे
 लंका की रचना भगवान् विश्वकर्मा द्वारा
 पवित्र साधनों से अर्जित धन संपदा से की गई थी
लंका में सम्पूर्ण रूप से वैभव सुख सुविधाओं से
सुसज्जित होकर चहु और सिन्धु जल से सुरक्षित थी
परन्तु रावण द्वारा अपनी आसुरी शक्ति के बल पर
अपने भ्राता कुबेर से छीन लिया गया
कुबेर देव राज्य विहीन हो गये
किन्तु उन पर माता महालक्ष्मी की असीम आशीष था
इसलिए वे देवताओं के कोषाध्यक्ष बने
उन्हें देवताओं का अक्षय कोष प्राप्त हुआ
कालांतर में कुबेर देव से छीन ली गई
स्वर्णिम लंका और अवैध रूप एकत्र किये गये धन को
मारुतिनंदन हनुमान द्वारा भस्म कर दिया गया
अर्थात रावण आसुरी संपदा का स्वामी था
जो क्षयशील अवस्था में रही
कुबेर देव दैविक संपदा के स्वामी थे
इसलिए उनसे छल-बल पूर्वक संपदा
रावण द्वारा हर लिए जाने के बावजूद
उन्हें देवताओं का अक्षय राज कोष प्राप्त हुआ
तात्पर्य यह है की स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए
यह आवश्यक है की
उसकी प्राप्ति श्रेष्ठ साधनों द्वारा की जाय
तथा कुबेर देव जैसी सात्विक मानसिकता रखी जाय
लुटी हुई किसी से छीनी गई ,चुराई गई संपदा
कभी भी स्थिर और अक्षय नहीं रहती है




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