जीवन में धन का महत्व है
किन्तु सदैव धन ही महत्वपूर्ण नहीं होता
कभी कभी धन वे कार्य नहीं कर सकता
जो व्यक्ति का आचरण उसके कर्तव्य और व्यक्ति की क्षमता कर देते है
धन की प्रचुरता आवश्यक है
परन्तु स्थान समय और व्यक्ति के साथ धन की
भूमिका बदल जाती है
अपात्र व्यक्ति को प्रचुर धन प्राप्त होने पर धन विष का कार्य करता है
ऐसा व्यक्ति धन की प्राप्ति होने पर दुराचरण की और अग्रसर होता है
और अपना चरित्र स्वास्थ्य ज्ञान विवेक के साथ प्रतिष्ठा तक गँवा देता है
सुपात्र और ऊँचे शील वाले व्यक्ति के लिए धन अमृत का कार्य करता है
प्रचुर मात्रा में धन प्राप्त होने पर वह धन का अपव्यय नहीं करता
मितव्ययी होकर वह धन का सदुपयोग करता है
स्वयं के कल्याण के साथ वह धन के माध्यम से परिवार समाज और राष्ट्र का कल्याण भी करता है
इसलिए धन का प्रचुरता महत्वपूर्ण नहीं होती
महत्व पूर्ण होता है की वह किन हाथो में है
धन चाहे राज्य का हो या समाज अथवा परिवार का उसकी सार्थकता
धन को धारण करने वाले व्यक्ति पर निर्भ्रर होती है
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